सैयद सलमान
मुंबई
उत्तर प्रदेश से आए एक आलिम साहब से मुलाकात हुई। वे पारंपरिक रूप से दीन, दुनिया और इस्लाम के अकायद पर गहरी बातें रख रहे थे। जब उनका बयान खत्म हुआ और अनौपचारिक चर्चा शुरू हुई तो हमने उनसे मुसलमानों की बदहाली पर सवाल किया। वे कुछ देर खामोश रहे, फिर उसी पुराने ढर्रे पर आ गए कि मुसलमान ने दीन का दामन छोड़ दिया है, वगैरह-वगैरह। वे बातों को उलझा रहे थे और हम बातों की कड़ी खोलना चाह रहे थे कि आखिर वर्तमान में मुसलमानों की सबसे बड़ी समस्या क्या है और उसका निदान क्या है? वह कहने लगे मुसलमान मस्जिदों से दूर हो गया है। हमने स्वीकार किया। फिर कहा उसमें इस्लाम को लेकर कोई जज्बा नहीं रहा। हमने कहा क्या सड़कों पर उतर कर नारेबाजी ही इस्लाम के प्रति जज्बा दिखाने का तरीका है? उन्हें शायद बात बुरी लगी और वह इजाजत लेकर चलते बने। बचे हुए लोगों को भी शायद बात अखर रही थी, लेकिन कहने से हिचकिचा रहे थे। मुसलमान आज भी मस्जिदों का रुख करता है। उसे करना चाहिए। इस्लाम के लिए जज्बा होना चाहिए, लेकिन वह सलामती और अमन के लिए क्योंकि इस्लाम का अर्थ ही सलामती और शांति है, लेकिन मौलवी हजराज दीन के नाम पर जितना मुसलमानों को उलझाते हैं, उतना ही वह खुले जेहन का होने से कतराता है।
देखा जाए तो आज मुसलमानों की सबसे बड़ी समस्या अशिक्षा है। गरीबी, बेरोजगारी और व्यवस्था में कम हिस्सेदारी जैसी परेशानियों का मूल कारण अशिक्षा है। मुस्लिम समाज को आजादी के इतने वर्षों बाद भी शिक्षा से दूर रहकर कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इस समस्या का निदान मुस्लिम समुदाय में शिक्षा को बढ़ावा देना है। मुसलमानों में बौद्धिक वर्ग का अभाव है, क्योंकि उनके लिए राजनीति सबसे पहले आती है। कुछ बौद्धिक लोग राजनीति की डगर पर चलकर मुसलमानों को गुमराह करते हैं। मुसलमानों की शैक्षिक स्थिति बेहद खराब है। एक अनुमान के अनुसार मुसलमानों की ४३ प्रतिशत आबादी एकदम अनपढ़ है, जो एससी / एसटी समुदाय से भी कम है। मुस्लिम महिलाएं सबसे कम शिक्षित हैं। मुस्लिम स्कूल ड्रॉप आउट सबसे अधिक हैं। उच्च शिक्षा में मुसलमान बहुत पीछे हैं। गरीबी उच्च शिक्षा की सबसे बड़ी बाधा है। डिप्लोमा हासिल करने में भी मुसलमान पिछड़े हुए हैं। उत्तर भारत में स्कूलों की कमी के कारण मुसलमान उच्च शिक्षा में पीछे हैं, जबकि दक्षिण भारत की स्थिति अलग है। आखिर हैं तो दोनों ही मुसलमान तो फिर यह फर्क वैâसा?
मुसलमानों की एक बड़ी समस्या गरीबी और बेरोजगारी भी है। मुसलमानों में गरीबी और शिक्षा की कमी बेरोजगारी का प्रमुख कारण है। शहरी क्षेत्रों में मुस्लिम युवाओं की बेरोजगारी दर अन्य धर्मों के मुकाबले ज्यादा है। इससे उनकी कमाई भी अन्य की तुलना में कम हो जाती है। सरकारी नौकरियों में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व बेहद कम है। सरकार को उन्हें नौकरियों में शामिल करने के लिए कदम उठाने चाहिए। कॉर्पोरेट क्षेत्र में भी मुसलमानों को उचित अवसर नहीं मिलते। इस दिशा में भी सुधार की आवश्यकता है। मुसलमानों में बेरोजगारी एक जटिल समस्या है, जिसका समाधान समाज और सरकार के सहयोग से ही संभव है। ऐसे मौलवी हजरात जो महफ़िलों में बयानात देते हैं, उन्हें मुसलमानों में जागरूकता लाने के लिए प्रेरित करना चाहिए। शिक्षा, रोजगार में समानता और भेदभाव मुक्त माहौल के लिए सभी को मिलकर प्रयास करने होंगे।
मुसलमानों के शैक्षिक और कौशल विकास को सुनिश्चित करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने की जरूरत है। मुस्लिम जनप्रतिधि इस दिशा में सरकार से तालमेल बिठाकर मुसलमानों को आगे बढ़ने में मदद कर सकते हैं। हां, अगर महज वोट बैंक बनाकर रखना है तो अशिक्षित, गरीब और बेरोजगार मुसलमान ही काम का है। मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में स्कूलों और कॉलेजों की संख्या बढ़ाकर शिक्षा की पहुंच को बेहतर बनाना एक अच्छा कदम हो सकता है। मुस्लिम छात्रों के लिए छात्रवृत्ति और वित्तीय सहायता बढ़ाना चाहिए। मुस्लिम महिलाओं के लिए विशेष शिक्षा कार्यक्रम शुरू कर उनकी शिक्षा दर को बढ़ाना चाहिए। मुसलमानों के लिए कौशल विकास के कार्यक्रम शुरू करना चाहिए। मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में कौशल विकास केंद्रों की स्थापना कर रोजगार के अवसर पैदा किए जा सकते हैं। मुस्लिम युवाओं को उद्यमिता के लिए प्रोत्साहित करके स्वरोजगार के अवसर देना चाहिए। आर्थिक रूप से पिछड़े मुस्लिम युवाओं को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देकर रोजगार के अवसर बढ़ाना भी मुसलमानों के लिए फायदेमंद होगा। मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में व्यावसायिक शिक्षा और कला-कौशलों की शिक्षा को बढ़ावा देना मुसलमानों के विकास के नए द्वार खोलेगा। कुल मिलाकर मुस्लिम समुदाय में कौशल विकास के लिए सरकार और समाज को मिलकर प्रयास करने होंगे। शिक्षा, रोज़गार और कौशल विकास के माध्यम से ही मुस्लिम समाज का समग्र विकास संभव है। तभी किसी मौलवी की रटी-रटाई बातों का जवाब दिया जा सकता है।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)