सैयद सलमान
मुंबई
सावन के महीने में निकलने वाली कांवड़ यात्रा को लेकर कुछ तत्वों ने अब भी विवाद जारी रखा है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कांवड़ यात्रा के दौरान दुकानों के नाम प्रदर्शित करने के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है। न्यायालय ने कहा कि दुकानदारों को सिर्फ खाने के आइटमों के प्रकार के बारे में जानकारी देनी चाहिए, अपने नाम के बारे में नहीं। इस बीच मुस्लिम दुकानदारों ने कांवड़ियों को सभी आवश्यक सुविधाएं प्रदान की हैं, जिससे एक सकारात्मक माहौल बना है। यही बात कुछ सियासी तत्वों को रास नहीं आ रही। इतने विवाद के बीच भी मुजफ्फरनगर जैसे इलाकों में मुस्लिम समुदाय ने कांवड़ियों पर फूल बरसाए और उन्हें पानी पिलाया, साथ ही उनके आराम की व्यवस्था भी की। मुस्लिम दुकानदारों ने कांवड़ियों के लिए खाने-पीने की चीजें उपलब्ध कराने में मदद की, जिससे भाईचारा और सहयोग का माहौल बना है।
जिस कांवड़ को लेकर विवाद पैदा करने की कोशिश हो रही है, उस कांवड़ से मुसलमानों का बहुत पुराना नाता है। हरिद्वार में कई मुस्लिम परिवार दशकों से कांवड़ बनाने का कार्य कर रहे हैं, जो हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है। ये परिवार रमजान के बाद कांवड़ बनाने का काम शुरू करते हैं और पिछले कई दशकों से शिवभक्तों के लिए सुंदर कांवड़ तैयार कर रहे हैं। इस प्रक्रिया में वे दो महीने तक कड़ी मेहनत करते हैं, जिससे उन्हें रोजगार भी मिलता है और कांवड़ यात्रियों को सजी हुई सुंदर कांवड़ भी। कांवड़ यात्रा के दौरान, ये परिवार अपने कौशल से एकता और सहिष्णुता का संदेश पैâलाते हैं। ऐसे में बजाय विवाद पैदा करने के इस एकता को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों पर सरकार जोर देती तो माहौल खराब न होता, लेकिन वोटों की राजनीति जो न करवाए वो कम है। कांवड़ के माध्यम से हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने के लिए सरकार कुछ ऐसे कार्यक्रम आयोजित कर सकती थी, जिससे अमन भी बना रहता और किसी के मन में किसी प्रकार की नफरत पनप ही नहीं पाती। शायद इसी में ‘सबका विश्वास’ भी समाहित होता।
कांवड़ यात्रा शुरू होने से पहले सांस्कृतिक मेलों का आयोजन किया जा सकता था, जिसमें दोनों समुदायों के कलाकारों का योगदान होता और वे करीब आते। मुंबई में देखा गया है कि गणपति जुलुस हो, दुर्गा विसर्जन हो, मुहर्रम या ईद-ए-मिलाद का जुलुस हो या साई पालखी, हिंदू-मुस्लिम समाज एक-दूसरे के इन पर्वों पर रास्ते में पानी, बिस्कुट, वड़ा-पाव, चाय, शरबत का इंतजाम करते हैं। उसी प्रकार ऐसा माहौल बनाया जाए कि मुस्लिम समुदाय द्वारा कांवड़ियों का स्वागत फूलों और उपहारों से किया जाए। पूर्वी दिल्ली सहित यूपी, उत्तरखंड के कई इलाकों में ऐसा किया भी गया, लेकिन इसी प्रयास को अगर प्रशासनिक सहयोग मिल जाए तो आयोजकों के हौसलों में बढ़ोतरी होती है। त्योहारों के दौरान दोनों समुदायों के बीच संवाद सत्र आयोजित किए जाएं, जहां वे एक-दूसरे की परंपराओं और विश्वासों को समझ सकें। मुंबई जैसे शहरों में प्रत्येक पुलिस स्टेशन की मोहल्ला कमिटियां इस काम को बखूबी करती हैं। कोशिश हो कि कांवड़ यात्रा के दौरान जरूरतमंदों की मदद करने के लिए संयुक्त रूप से सेवा कार्य किया जाए, जैसे कि जल और भोजन वितरण। हां, शुद्धता और धार्मिक शुचिता का पालन जरूर हो। कांवड़ यात्रा शुरू होने से पहले स्कूलों और कॉलेजों में एकता पर कार्यशालाएं और सेमिनार आयोजित किए जा सकते हैं, ताकि बच्चों में नफरत न पनपने पाए। इन छोटे-छोटे प्रयासों और कार्यक्रमों के माध्यम से एकता और भाईचारे को बढ़ावा दिया जा सकता है।
दरअसल, कोई भी त्योहार केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं होते, बल्कि ये संस्कृति, परंपरा और मानवता के मूल्यों को भी दर्शाते हैं। विभिन्न धर्मों के त्योहारों का एक साझा उद्देश्य होता है, एकता, प्रेम, और भाईचारे को बढ़ावा देना। त्योहार विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों के बीच संवाद का एक माध्यम होते हैं। जब लोग एक साथ मिलकर त्योहार मनाते हैं, तो वे एक-दूसरे की परंपराओं और विश्वासों को समझने का अवसर पाते हैं। इससे आपसी सम्मान और सहिष्णुता का विकास होता है। कई त्योहार ऐसे होते हैं, जो विभिन्न धर्मों में समानता दिखाते हैं। जैसे, दीपावली, ईद, गुरुपर्व और क्रिसमस मीठे पकवानों और प्रकाश के माध्यम से रिश्तों में मिठास और आशा का प्रतीक साबित होते हैं। त्योहार विभिन्न धर्मों के बीच की दूरी को कम करते हैं और एक सामंजस्यपूर्ण समाज की स्थापना में मदद करते हैं। यानी सभी त्योहार प्रेम, करुणा, दया और मानवता के मूल्यों को उजागर करते हैं। सभी त्योहार हमें याद दिलाते हैं कि हम सभी पहले इंसान हैं फिर और कुछ। त्योहारों का यह उद्देश्य हमें एकजुट करता है और एक-दूसरे के प्रति संवेदनशील बनाता है। जब हम एक साथ मिलकर त्योहार मनाते हैं, तो हम एक बेहतर और अधिक सहिष्णु समाज की दिशा में कदम बढ़ाते हैं। कांवड़ यात्रा भी उन्हीं में से एक है, जिसे दुर्भाग्यवश विवादित बना दिया गया है।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)