मुख्यपृष्ठस्तंभइस्लाम की बात : मियां, महंगाई और मोदी!

इस्लाम की बात : मियां, महंगाई और मोदी!

सैयद सलमान मुंबई

वर्ष २०२४ में होनेवाले लोकसभा चुनावों की तैयारियों में सभी पार्टियां जुट गई हैं। मोदी सरकार को सत्ता से बेदखल करने के लिए २६ विपक्षी दल ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस’ (इंडिया-INDIA) के बैनर तले एकजुट हुए हैं। भाजपा भी अपने नए-पुराने ३८ एनडीए साथियों के साथ तैयार है। छोटे से छोटे दल की भी पूछ बढ़ी है। ऐसे में देश की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले मुसलमानों पर भी नजरें लगी हुई हैं। हालांकि, मुस्लिम तुष्टिकरण के दुष्प्रचार के कारण कोई भी दल खुलकर मुसलमानों का पक्ष लेने से कतरा रहा है। हां, मतों का ध्रुवीकरण हो इस मकसद से भाजपा मुस्लिम मुद्दा कुछ अलग अंदाज में जरूर उठा रही है। मुसलमानों को लेकर भाजपा के कई बड़े नेताओं के बयान ऐसे होते हैं, जिनसे मुसलमानों के प्रति नफरत बढ़े। ताजा मामला असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का है, जिन्होंने महंगाई को लेकर मुसलमानों को जिम्मेदार ठहराया है। दरअसल, असम में महंगी सब्जियों के बहाने उन्होंने तर्क दिया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में सब्जियों की कीमत कम है, लेकिन शहरों में आते-आते कीमतें बढ़ जाती हैं। सीएम सरमा का दावा है कि सभी विक्रेता दरें बढ़ा रहे हैं और इनमें ज्यादातर ‘मियां’ यानी मुस्लिम हैं। मुस्लिम समाज के प्रति हिमंत बिस्वा को कितनी नफरत है, यह इस बयान से साफ जाहिर हो जाता है। हिमंत बिस्वा खुले तौर पर सब्जी विक्रेता और किराणा की दुकान जैसे मुसलमानों की आजीविका के मामूली संसाधनों को भी जबरन छीन लेने के लिए लोगों को उकसा रहे हैं। आश्चर्य है कि यह शख्स एक राज्य का मुख्यमंत्री होकर ऐसा बयान दे रहा है और भाजपा के बड़े नेता चुप हैं। खैर, चुप तो सारे दिग्गज मणिपुर हिंसा और मॉब लिंचिंग जैसे मुद्दों पर भी हैं।
एक तरफ बिस्वा मुसलमानों को लेकर इस तरह की नफरत बांट रहे हैं तो दूसरी तरफ भाजपा मुसलमानों को झांसे में लेने का भी प्रयास कर रही है। अपनी रणनीति को बदलते हुए वह आगामी लोकसभा चुनाव में मुस्लिम वोट बैंक का इस्तेमाल करने की फिराक में है। इसके लिए मुस्लिम समुदाय के बीच से प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र में पांच हजार ‘मोदी मित्र’ बनाने का लक्ष्य रखा गया है। भाजपा की नजर मुसलमानों की आबादी में लगभग ८५ फीसदी भागीदारी रखने वाले पसमांदा मुसलमानों यानी पिछड़े मुसलमानों पर है। इस वर्ग को अपने साथ लाने का मंत्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा कार्यकर्ताओं को दिया था। प्रधानमंत्री की चाहत है कि भाजपा जमीनी स्तर पर मुस्लिम वोट हासिल करने की रणनीति पर भी काम करे। कम से कम उनसे संवाद तो कायम करे ही। उसी के आधार पर ‘मोदी मित्र’ का यह फॉर्मूला तैयार किया गया है। अब यह भाजपा का दोमुंहापन नहीं तो और क्या है कि बिस्वा जैसों से जख्म दो और ‘मोदी मित्र’ के नाम पर मरहम लगाओ। क्या पिछड़े मुसलमान इतने मूर्ख हैं?
मुसलमानों को लेकर भाजपा का फैलाया गया यह जहर कोई नया नहीं है। कोविड काल के दौरान कोरोना वायरस पैâलाने का इल्जाम भी मुसलमानों पर ही लगा था। मामला कोर्ट तक पहुंचा तो सभी बातें निराधार साबित हुईं। इस बार महंगाई को लेकर केंद्र की मोदी सरकार या उसकी गलत नीतियों को छुपाते हुए बिस्वा ने मुसलमानों को निशाना बनाया है। महबूबा मुफ्ती ने न्यायपालिका से गुहार लगाईं है कि हिमंत बिस्वा सरमा की टिप्पणियों पर उसे स्वत: संज्ञान लेना चाहिए। बदरुद्दीन अजमल और असदुद्दीन ओवैसी जैसे अन्य मुस्लिम नेताओं ने भी बिस्वा के बयान को दो समुदाय के बीच भेदभाव करनेवाला बयान बताते हुए उसकी निंदा की है। अखिलेश यादव जैसे गिने-चुने अन्य नेताओं के भी निंदा करनेवाले बयान आए हैं। असम के मुख्यमंत्री द्वारा महंगाई के लिए मुसलमानों को जिम्मेदार ठहराना दरअसल, बेरोजगारी, महंगाई और विकास की कमी पर भाजपा की पूर्ण विफलता पर पर्दा डालना है। इस पर प्रधानमंत्री की चुप्पी निराशाजनक है। मोदी मित्र बनाने से पहले प्रधानमंत्री को ‘मित्र’ की परिभाषा समझनी और अपने नेताओं को समझानी होगी। उन्हें अपने अनाप-शनाप बोलनेवाले नेताओं पर अंकुश लगाना होगा। लेकिन जिस व्यक्ति ने खुद ‘कपड़ों से पहचाने जाने’ की बात की हो, कब्रिस्तान और श्मशान की बात की हो उस से उम्मीद बेमानी है। ‘मोदी मित्र’ नाम का यह झुनझुना चापलूस और स्वार्थी लोगों को शायद रास आए, लेकिन आम मुसलमान इस चाल से अवगत है और हां, बिस्वा से एक सवाल जरूर पूछा जाना चाहिए कि असम की सब्जियां तो मियां लोगों की वजह से महंगी हैं, बाकी देश में उसका कारण कौन है? देशभर की महंगाई किसके कारण है?

(लेखक देश के प्रमुख प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार, राजनीतिक विश्लेषक व मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं।)

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