एम. एम. सिंह
एक जमाने में लाल बहादुर शास्त्री नाम के एक सज्जन इंसान हुआ करते थे, जो देश के दूसरे प्रधानमंत्री बने। स्वभाव से एकदम सरल, सीधे और ईमानदारी की साक्षात प्रतिमा। शास्त्री जी एक गरीब परिवार से नाता रखते थे, जो बारिश के दिनों में स्कूली कपड़ों को उतारकर नदी पार करके स्कूल पहुंचते थे। उन्होंने पढ़ाई का अर्थ समझा और शास्त्री की उपाधि ग्रहण की। हालांकि वे जाति से श्रीवास्तव थे, लेकिन जातिसूचक शब्द का उपयोग उन्होंने उचित नहीं समझा और हमेशा के लिए शास्त्री बने रहे। स्वभाव से सरल थे, लेकिन देशभक्ति और देश हित के मामले में सर्वोत्तम। १९६५ में अप्रत्याशित रूप से हुए भारत-पाक युद्ध में राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी, जिसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी सपने में भी नहीं की थी।
शास्त्री जी किसानों का दर्द समझते थे। अकाल के दिनों में जब देश में भुखमरी की त्रासदी से बचने के लिए शास्त्री जी ने एक दिन का उपवास शुरू किया और देश के नागरिकों से भी अपील की जनता ने उनकी अपील को सिर-माथे पर लिया। शास्त्री जी जवानों और किसानों का महत्व समझते थे। उन्होंने `जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया।
`जय जवान, जय किसान और जय विज्ञान’ का नारा हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने भी दिया है। जय विज्ञान की बात करें तो उनकी वैज्ञानिक सोच पर बहुत कुछ कहा जा सकता है, लेकिन बात करते हैं `जय जवान, जय किसान’ की जहां पर आकर उनके तीसरे कार्यकाल की गाड़ी हिचकोले खाने लगती है। हालांकि, इस तीसरे कार्यकाल में विपक्ष नाम की चिड़िया जो पिछले १० साल से गायब थी संसद में लौट आई है और अपना वजूद भी दिखाने लगी है। इसलिए शायद प्रधानमंत्री किसानों की जय जयकार लाठी डंडे से न कर पाएं और जय जवान बोलकर अग्निवीरों को औने-पौने दामों में रणभूमि रूपी खेत में उतारने में पूरी तरह सफल न हो पाएं।
दो दशकों से मोदी ने अपनी छवि किसानों और सेनाओं के रहनुमा की बना रखी है, लेकिन इस बार के चुनाव में मोदी कृत भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा, राजस्थान और पंजाब तक जैसे राज्यों में जो करारी शिकस्त मिली है, उसने उनकी छवि की कलई खोल दी। गौरतलब है कि ये सब वो राज्य हैं, जो कृषि प्रधान माने जाते हैं और जो सेना को सबसे ज्यादा सैनिक भी देते हैं।
भारतीय स्टेट बैंक के आर्थिक शोध डिवीजन की रिपोर्ट बताती है कि एमएसपी से किस तरह केवल गिनती के किसानों को ही फायदा मिलता है और यह मात्र ६ फीसदी कृषि उपज पर ही लागू होती है। इसलिए कहीं ज्यादा बड़े सुधारों की जरूरत है और एमएसपी से हट कर बाजार की ओर रुख करने की जरूरत है, न कि इसकी उलटी दिशा में जाने की। सरकार की ही एक इकाई एसबीआई की यह रिपोर्ट आंख खोलने के लिए काफी है।
फौज की पेंशन पर बढ़ते खर्च पर काबू करने और सेना के आधुनिकीकरण के लिए ज्यादा पैसा उपलब्ध कराने के नाम पर अग्निवीरों की स्कीम जिस किसी महानुभाव की सोच है, उसे देश के लिए शहीद हुए जवानों और उनके परिवारों का सादर नमन। क्योंकि अग्निवीर योजना पर इतना कहा जा चुका है, लिखा जा चुका है बावजूद इसके उनकी आंखें खुलने का नाम नहीं ले रही हैं।
एक बार फिर शास्त्री जी की सादगी और ईमानदारी पर, वे अपने फटे हुए कुर्ते का रुमाल बनाते थे, सरकारी गाड़ी का इस्तेमाल बच्चों तक को नहीं करने देते थे। उन्होंने सरकारी कूलर लेने से और किसी रईस मिल मालिक द्वारा उनकी पत्नी को गिफ्ट में मिली साड़ी दोनों ने लेने से मना कर दिया। उनमें विनम्रता, दृढ़ता, सहिष्णुता एवं जबर्दस्त आंतरिक शक्ति जैसे महान गुण थे, जिसकी जरूरत आज के शासकों को है। बस इस वीकेंड पर इतना ही।