• डॉ. बालकृष्ण मिश्र
• गुरुजी, मेरा विवाह कब तक होगा। यदि कोई दोष है तो उपाय सुझाएं?
-अनमोल यादव
(जन्म- २१ मई १९८५, समय- दिन में ११:४५, स्थान- अजमेर, राज.)
अनमोल जी, आपका जन्म कर्क लग्न एवं वृष राशि में हुआ है। यह समझ में आ रहा है कि विवाह का कारक ग्रह बृहस्पति एवं शुक्र होता है। आपकी कुंडली में बृहस्पति सप्तम भाव पर नीच राशि का हो करके बैठा है। इस योग के कारण अनुकूल पत्नी का प्राप्त न होना तथा बार-बार किसी-न-किसी कारण असुविधा का प्राप्त होना ज्योतिष शास्त्र में इस योग को बताया है कि ‘स्थान हानि करो जीव:’ अर्थात बृहस्पति जिस स्थान पर रहता है उस स्थान को कमजोर बना देता है, वैसे ही शनि संबंध बनाने में अड़चन भी डालता है। गहराई से देखा जाए तो आपकी कुंडली में चंद्र मांगलिक भी है। शनि का उपाय कराएं विवाह का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा। जीवन की अन्य गहराइयों को जानने के लिए संपूर्ण जीवन दर्पण भी बनवाएं।
• गुरुजी, भविष्य में मेरा विकास वैâसे होगा। कोई उपाय बताएं?
-सुभाष त्रिपाठी
(जन्म- ५ नवंबर १९७५, समय- रात्रि २:३५, स्थान- गोरखपुर उत्तर प्रदेश)
सुभाष जी, आपका जन्म सिंह लग्न एवं वृश्चिक राशि में हुआ है। लग्नेश सूर्य है तो नीच राशि का, लेकिन पराक्रम भाव में बैठ करके भाग्य भाव को पूर्ण उच्च की दृष्टि से देख रहा है। अत: आप भाग्यशाली हैं लेकिन पराक्रम भाव पर राहु ने सूर्य के साथ बैठकर ग्रहण योग बना दिया है तथा भाग्य भाव पर केतु बैठ करके भाग्य ग्रहण दोष बना दिया। सूक्ष्मता से अवलोकन करने पर पितृ दोष भी बन रहा है। भाग्य ग्रहण दोष के कारण आप अपने परिश्रम का पूर्ण पारिश्रमिक प्राप्त नहीं कर पाते हैं। इस समय शुक्र की महादशा चल रही है। शुक्र आपकी कुंडली में पराक्रमेश एवं कर्मेश है, उसी की महादशा चल रही है जो आपके लिए अच्छा समय है और जीवन की अन्य गहराई को जानने के लिए संपूर्ण जीवन दर्पण बनवाएं।
• गुरुजी, मैं पढ़ना चाहता हूं। मेरे भाग्य में पढ़ाई है या नहीं, आगे पढ़ूंगा या नहीं, कोई उपाय बताएं?
-प्रमोद सिंह
(जन्म- २६ अक्टूबर १९९९, समय- रात्रि ९:२५, स्थान- मालाड मुंबई)
प्रमोद जी, आपका जन्म वृष लग्न एवं वृष राशि में हुआ है। शनि ने आपकी कुंडली में भाग्येश एवं कर्मेश हो करके नीच राशि का होते हुए व्ययभाव में बैठकर भाग्य भाव एवं कर्म भाव को कमजोर बना दिया। आपकी शिक्षा स्थान का स्वामी बुध दो अंश का हो करके सप्तम भाव में बैठा है तथा पराक्रम भाव में राहु एवं भाग्य भाव पर केतु बैठ करके भाग्य ग्रहण दोष भी बना रहा। भाग्य ग्रहण दोष के साथ-साथ पितृदोष भी बन रहा है। आप धीरे-धीरे अथक परिश्रम करते हुए शिक्षा को अर्जित कर सकते हैं लेकिन जीवन को कष्ट से मुक्ति दिलाने के लिए भाग्य ग्रहण दोष की पूजा भी आवश्यक है। जीवन की अन्य गहराई को जानने के लिए संपूर्ण जीवन दर्पण बनवाएं तथा शिक्षा की और मजबूती के लिए गणेश जी को दूर्वा अर्पित करें, शिक्षा का मार्ग भी प्रशस्त हो जाएगा।
• गुरुजी, मैं बहुत ही परेशान हूं। कृपया कारण एवं निवारण बताएं?
-अरुण चतुर्वेदी
(जन्म- २७ जुलाई १९८०, समय- प्रात: ७:३५, स्थान- सोनभद्र उ.प्र.)
अरुण जी, आपका जन्म सिंह लग्न एवं मकर राशि में हुआ है। आपकी राशि पर इस समय शनि की साढ़ेसाती चल रही है। शनि ग्रह आपकी कुंडली में सप्तमेश शुक्र के लग्न में बैठा है, जिस कारण आपकी परेशानियां और आर्थिक तंगी भी बढ़ गई होगी। शनि के द्वारा अनुकूल फल प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन पीपल के वृक्ष की परिक्रमा ५ मिनट करें तथा हनुमान चालीसा का पाठ करें। शनि के द्वारा शुभ फल प्राप्त होने लगेगा। आपकी कुंडली को सूक्ष्मता से अवलोकन किया गया। लग्नेश सूर्य-चंद्र यह दोनों ग्रह राहु एवं केतु से दुष्प्रभावित हैं, अत: आपकी कुंडली में ग्रहण योग भी बना दे रहा है। इस कारण आपकी व्यग्रता भी बढ़ जाती होगी। जीवन की अन्य गहराइयों को जानने के लिए संपूर्ण जीवन दर्पण बनवाएं।
• गुरुजी, क्या मेरी कुंडली में चंद्र ग्रहण एवं सूर्य ग्रहण है। यदि है तो उपाय क्या करें?
-अनिल गुप्ता
(जन्म- ३ फरवरी १९९०, समय- ९:३५, स्थान- जौनपुर उत्तर प्रदेश)
अनिल जी, आपका जन्म मीन लग्न एवं मेष राशि में हुआ है। आपकी कुंडली का सूक्ष्मता से अवलोकन किया गया। द्वितीयेश एवं भाग्येश मंगल ने दशम भाव में बैठ करके आप को भाग्यशाली बनाया है लेकिन आपकी कुंडली में पंचम भाव पर केतु एवं लाभ भाव पर सूर्य के साथ में राहु ने बैठकर सूर्य ग्रहण योग बना दिया है तथा सूक्ष्मता से अवलोकन करने पर कालसर्प योग भी बन रहा है।