मुख्यपृष्ठस्तंभझांकी : चांडी की चांदी

झांकी : चांडी की चांदी

अजय भट्टाचार्य।
केरल के पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी को यौन उत्पीड़न के एक मामले में क्लीन चिट मिलने के बाद केरल की राजनीति गरमा गई है। अदालत में दाखिल रिपोर्ट में सीबीआई ने महिला द्वारा यौन शोषण की शिकायत के संदर्भ में भाजपा नेता ए पी अब्दुल्लाकुट्टी को भी दोषमुक्त करते हुए एक अन्य रिपोर्ट दाखिल की। कुट्टी के खिलाफ मामला २०१४ में तब दर्ज किया गया था, जब वह कन्नूर से कांग्रेस विधायक थे, लेकिन बाद में वह भाजपा में शामिल हो गए। सीबीआई ने पिछले साल चांडी, पूर्व केंद्रीय मंत्री केसी वेणुगोपाल और अन्य राजनीतिक नेताओं के खिलाफ आरोपी महिला की ओर से लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोप से जुड़े मामलों की तफ्तीश अपने हाथ में ली थी। यूडीएफ सरकार के दौरान हुए कई करोड़ रुपए के सौर ऊर्जा पैनल घोटाले की मुख्य आरोपी महिला की शिकायत पर चांडी और छह अन्य के खिलाफ पिछले कुछ वर्षों में मामले दर्ज किए गए थे, जिनकी छानबीन केरल पुलिस की अपराध शाखा ने की। अब सीबीआई ने पाया कि यह बिना सबूत वाला मामला है। कांग्रेस की मांग है कि पिनराई विजयन को चांडी और अन्य नेताओं की जांच की सिफारिश केंद्रीय एजेंसी से कराने के लिए माफी मांगना चाहिए।

अथ इति हास कथा…!
नेहरू के बाद उनकी सबसे बड़ी खुन्नस इतिहास को लेकर है। पूरा कुनबा इतिहास के बहाने हिंदू-मुस्लिम की अलख भी जगाए रखना चाहता है और मुस्लिम-इसाई मंच बनाकर उनके वोट भी पाना चाहता है। इतिहास खोदने से भले कुछ न मिले पर वोट जरूर मिल जाता है। वैसे मजाक में यह भी कहा जाता है कि जब हास की इति होती है तब इतिहास बनता है। वैसे भी जब से भाई लोग गद्दीनशीं हुए हैं देश के आम आदमी के हास की इति तो हो ही गई/चुकी है। अब केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने भी हुजूरे आला के सुर में सुर मिलाते (जो वर्तमान भक्तिकाल में जरूरी भी है) हुए देश के इतिहास को बदलकर फिर से लिखने की बात कही है। रही-सही कसर चैनलिया चतुर पूरी कर देंगे। फिलहाल बिहार के वित्त मंत्री एवं जदयू के वरिष्ठ नेता विजय के मुताबिक इतिहास की घटनाओं को बदला नहीं जा सकता। घटनाओं की व्याख्या एवं निष्कर्ष कोई अपना निकाल सकता है लेकिन उसे भी तथ्यों एवं विश्लेषण की कसौटी पर खरा उतरना पड़ता है। बगैर प्रामाणिकता के कोई लेखन अथवा सामग्री इतिहास नहीं बन सकती। पिछले कुछ दिनों से केंद्र सरकार द्वारा समय-परीक्षित इतिहास को बदलने की बात जोर-शोर से कही जा रही है। दरअसल, इतिहास में कोई भूमिका नहीं होने के कारण भाजपा के लोग अब बेचैनी महसूस कर रहे हैं। देश गवाह है कि आजादी की लड़ाई में भी इन लोगों की कोई भूमिका नहीं थी, बल्कि जिन्ना की तर्ज पर ये भी कट्टरता एवं सांप्रदायिक भावनाओं को हवा दे रहे थे और अंग्रेजों की धुन पर नाच रहे थे। इन्हीं के द्वारा रचित दुर्भावना के सांप्रदायिक माहौल की परिणति गांधी की हत्या के रूप में हुई। प्रश्न है कि अब इतिहास को फिर से लिख देने से सच्चाई वैâसे बदलेगी? जनादेश की अपेक्षा एवं सम्मान राष्ट्र का भविष्य बनाकर होता है, इतिहास बदल कर नहीं।

त्रिपुरा में सातवां विकेट गिरा
त्रिपुरा भाजपा में पलायन जारी है। २०१८ के विधानसभा चुनावों से पहले तीन बार कांग्रेस के टिकट पर चुने गए भाजपा विधायक दीबा चंद्र हरंगखाल विधानसभा से इस्तीफा देने वाले त्रिपुरा में सत्तारूढ़ गठबंधन के आठवें विधायक बन गए हैं। हरंगखाल ने अपने इस्तीफे के लिए `व्यक्तिगत मामलों’ को जिम्मेदार ठहराया। एक महीने पहले भाजपा की सहयोगी इंडिजिनस पीपुल्स प्रâंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) के पूर्व मंत्री मेवार कुमार जमातिया ने सरकार के खराब प्रदर्शन का हवाला देते हुए इस्तीफा दे दिया था। पिछले दो वर्षों में गठबंधन के आठ विधायकों में से पांच भाजपा के थे। खास बात यह है कि हरंगखाल की पालकी ढोते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व विधायक आशीष साहा, कांग्रेस के युवा नेता बाप्तु चक्रवर्ती और पार्टी प्रवक्ता प्रशांत भट्टाचार्य विधानसभा अध्यक्ष के यहां पहुंचे थे। मुख्यमंत्री पद से बिप्लव देब की विदाई में हरंगखाल उस मंडली में शामिल थे, जिसकी अगुवाई सुदीप रॉय कर रहे थे। रॉय पहले ही भाजपा को राम-राम कर वापस कांग्रेस में घुस चुके हैं। हरंगखाल भी उसी लीक पर आगे बढ़ चुके हैं।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और देश की कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में इनके स्तंभ प्रकाशित होते हैं।

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