मुख्यपृष्ठस्तंभझांकी : राबड़ी के घर पहुंचे मेहमान

झांकी : राबड़ी के घर पहुंचे मेहमान

अजय भट्टाचार्य
जमीन के बदले नौकरी देने के मामले में दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने पूर्व केंद्रीय मंत्री लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी और १४ अन्य के खिलाफ १५ मार्च के लिए समन जारी किया है। मगर इस समन पर अदालत में पेशी से पहले ही सीबीआई की टीम राबड़ी देवी के आवास पर पहुंची, तब बिहार के उपमुख्‍यमंत्री तेजस्‍वी यादव भी घर के अंदर ही थे। सीबीआई टीम को अचानक देखकर सभी हैरान रह गए। राबड़ी देवी बिहार की मुख्‍यमंत्री रह चुकी हैं। हालांकि, यह भी साफ किया गया कि यह राबड़ी देवी के घर पर कोई छापे की कार्रवाई नहीं है, बल्कि जमीन के बदले नौकरी घोटाले में आगे की पूछताछ के लिए सीबीआई की टीम पहुंची है। रेलवे के `नौकरी के लिए जमीन’ घोटाले में मई २०२२ में सीबीआई ने एफआईआर दर्ज की थी। एफआईआर में आरोप लगाया गया था कि २००४-२००९ के बीच जब लालू रेल मंत्री थे, तब रेलवे में नौकरी दिलाने के बदले जमीन लालू यादव और उनके परिवार को हस्तांतरित की गई। एफआईआर में लालू, पत्नी राबड़ी, बेटी मीसा और हेमा के अलावा १२ अन्य के नाम हैं, जिन्हें कथित तौर पर जमीन के बदले में नौकरी मिली। आरोप है कि लालू प्रसाद ने एक साजिश के तहत अपने परिवार के नाम पर लोगों से बेहद कम दरों पर जमीन खरीदी। लालू यादव के करीबी सहयोगी भोला यादव को सीबीआई ने जुलाई २०२२ में गिरफ्तार किया था।

नाटक खत्म…!
अलग-अलग राजनीतिक दलों के मेघालय में सरकार बनाने के तीन दिनों के नाटक के बाद आखिर रविवार की रात नई सरकार के गठन का रास्ता साफ हो गया है। रविवार-सोमवार की रात यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी (यूडीपी) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक प्रâंट (पीडीएफ) गठबंधन ने कोनराड संगमा के नेतृत्ववाली नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) को समर्थन देने का एलान कर दिया। संगमा को रविवार रात दोनों पार्टियों की ओर से समर्थन पत्र सौंपा गया। संगमा ने इसके तुरंत बाद ट्वीट किया, ‘सरकार बनाने हेतु एनपीपी में शामिल होने के लिए आगे आने के लिए यूडीपी और पीडीएफ को धन्यवाद। घरेलू राजनीतिक दलों का मजबूत समर्थन हमें मेघालय और इसके लोगों की सेवा करने के लिए और मजबूत करेगा। इससे पहले शनिवार तक, यूडीपी- जो ११ सीटों के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी- क्षेत्रीय दलों और मुकुल संगमा की तृणमूल कांग्रेस के साथ एक वैकल्पिक गठबंधन सरकार बनाने की कोशिश कर रही थी। यूडीपी नेताओं ने यह भी दावा किया था कि अगर पार्टी संख्या बल नहीं जुटा पाती है तो वह विपक्ष में बैठ सकती है। हालांकि, पार्टी ने यू-टर्न लिया और अपने पूर्व सहयोगी एनपीपी के साथ खड़ी हो गई। २ मार्च को चुनाव के नतीजों ने खंडित जनादेश दिया। परिणामों के कुछ घंटों बाद, दो विधायकों के साथ भाजपा ने एनपीपी को समर्थन दिया, जो २६ सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी। अगले दिन, हिल स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के दो और निर्दलीय विधायकों का समर्थन हासिल करने में सफल रही। इससे चुनाव के बाद के गठबंधन की संख्या बहुमत की संख्या से एक अधिक ३२ हो गई। मगर एचएसपीडीपी ने अप्रत्याशित रूप से एक बयान जारी कर कहा कि उसने अपने विधायकों को सरकार बनाने `समर्थन देने’ के लिए `अधिकृत’ नहीं किया था। शिलांग के कुछ हिस्सों में एचएसपीडीपी के विधायकों के पुतले जलाए और एक के कार्यालय में आग भी लगाई गई।

अध्यक्ष को गुस्सा क्यों आता है?
पिछले सप्ताह गुजरात विधानसभा अध्यक्ष शंकर चौधरी ने अधिकारियों को आड़े हाथों लिया था। आमतौर पर जिन अधिकारियों के विभागीय प्रश्न या मांगें सदन में उठाई जाती हैं, वे उपस्थित रहते हैं। कुछ अधिकारी सदन में आते हैं, जब उनके विभाग से संबंधित प्रश्न उठाए जाते हैं या सदन के सामने रखे जाते हैं। अधिकारियों का सामान्य खंडन `बैठकें’ हैं। पिछले सप्ताह अध्यक्ष ने अधिकारियों को उनके कर्तव्य की याद दिलाई कि क्या चर्चा की जा रही है और फिर संबंधित मंत्री को रिपोर्ट करें। चौधरी ने अधिकारियों से साफ कहा कि चाहे कुछ भी हो जाए वे सदन में मौजूद रहें। लगता है कि गुजरात के बाबू साहबों को `अपना घर’ ठीक करने का समय आ गया है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और देश की कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में इनके स्तंभ प्रकाशित होते हैं।

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