अजय भट्टाचार्य
सवाल पूछनेवाले नहीं चाहिए
छप्पन इंची नेतृत्ववाली सरकार इतनी डरपोक है कि उसे सदन में अपने खिलाफ उठनेवाली हर आवाज को बंद करना पड़ता है। आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह को पूरे मानसून सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया है। सांसद संजय सिंह मणिपुर कांड पर संसद के उच्च सदन में मुखर थे। राज्यसभा सभापति ने कहा कि संजय सिंह ने बार-बार मना करने के बाद भी सदन की कार्यवाही को बाधित किया। इसलिए उन्हें पूरे मानसून सत्र के लिए निलंबित किया जाता है। राज्यसभा सभापति ने ये कार्रवाई पीयूष गोयल की शिकायत पर की। सांसद पीयूष गोयल ने कहा था कि सरकार चर्चा को तैयार है फिर भी कार्रवाई बाधित की जा रही है। मणिपुर में दो महीने से जारी हिंसा पर विपक्ष लगातार सदन में चर्चा और प्रधानसेवक नरेंद्र मोदी से जवाब देने की मांग कर रहा है। साथ ही विपक्ष सदन में इसी मुद्दे पर चर्चा की मांग कर रहा है। लगता है संसद में सरकार से सवाल पूछनेवाला कोई नहीं रहना चाहिए। संजय सिंह इन दिनों काफी मुखर होकर सरकार के खिलाफ बोल रहे थे। राहुल गांधी ने जब बोलना शुरू किया तो बड़े सलीके से कानूनन राहुल को अयोग्य घोषित कर दिया गया।
चरित्र लीला
आप करें तो लीला, हम करें तो चरित्र ढीला वाली स्थिति है। सोशल मीडिया पर राजस्थान के जयपुर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड के कोटा संभाग के मुख्य अभियंता (चीफ इंजीनियर) ने एक दिन दफ्तर का औचक निरीक्षण किया और अजीत सिंह नामक कर्मचारी को निरीक्षण के समय गैर हाजिर पाया। साहब ने तुरंत एक कारण बताओ नोटिस अजीत सिंह को जारी किया, जिसमें लिखा था, ‘आपके कार्यालय का दिनांक १४.०७.२०२३ को प्रात: ०९.४५ पर औचक निरीक्षण किया गया, जिसमें आपके कार्यालय की हाजिरी पंजिका में उक्त समय व दिनांक को आपके हस्ताक्षर अंकित नहीं थे। यानी आप उक्त समय व दिनांक को कार्यालय में अनुपस्थित पाए गए। कृपया कारण स्पष्ट करें।’ इस नोटिस का जवाब अजीत सिंह ने १७ जुलाई को दिया और उसी नोटिस पर नीचे लिखा, ‘आप स्वयं कभी समय पर नहीं आते हैं इसलिए मैं भी समय पर नहीं आता हूं।’ फिलहाल चीफ इंजीनियर अपना हाजिरी रजिस्टर दुरुस्त करने में लगे हैं।
सौ करोड़ की भूल
उत्तर प्रदेश के विकास प्राधिकरणों के वे इंजीनियर बड़भागी थे/हैं, जिन्हें वर्षों पहले रिटायर हो जाना चाहिए था। शासन-प्रशासन को इसके लिए राज्यस्तरीय पुरस्कार/सम्मान दिया जा सकता है,जो ऐसे सैकड़ों इंजीनियरों को रिटायर करना ही भूल गया। यह मानवीय भूल से कहीं ज्यादा घोटाले की एक नई विधा है, जिसमें इंजीनियर साहब लोग अफसरों की मिलीभगत से रिटायर होने के बावजूद नौकरी कर वेतन भत्ते और इंक्रीमेंट ले रहे हों/थे। इस लापरवाही का नतीजा यह हुआ कि सरकारी खजाने को सौ करोड़ रुपए से ज्यादा का चूना लगा। अब नींद से जागी बाबाजी की सरकार ने अब ऐसे इंजीनियरों से वेतन भत्तों की रिकवरी का आदेश दिया है। २००९ में शासन ने आदेश जारी कर इंजीनियरों को ५८ और ६० वर्ष में रिटायर होने का विकल्प दिया, जिसमें अधिकतम ने ५८ का विकल्प चुना और अत्यधिक सुविधाएं लेने लगे। अब ऐसे इंजीनियरों से २० से ३० लाख रुपए की वसूली की जानी है, जो उन्होंने फर्जीवाड़ा करके वेतन सहित विभिन्न मदों में सरकार से ठगे थे। अपर मुख्य सचिव (आवास नितिन रमेश गोकर्ण ने पेंशन से कटौती कर वसूली का आदेश जारी किया है। इनमें से कुछ जूनियर इंजीनियर ऐसे हैं, जिनका वेतन आईएएस अफसरों से ज्यादा है/था। लखनऊ विकास प्राधिकरण में भी २० से अधिक ऐसे ही रिटायर इंजीनियर काम पर हैं। सवाल यह है कि एक फर्जीवाड़े को प्रशासनिक भूल का नाम देकर कौन किसे बचा रहा है?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं तथा व्यंग्यात्मक लेखन में महारत रखते हैं।)