यू.एस. मिश्रा
हर इंसान की दिली ख्वाहिश होती है कि अपने पसंदीदा इंसान को जीवन में कम-से-कम एक बार ही सही वो अपनी आंखों से जरूर देखे। अगर वो पसंदीदा इंसान जीवन में मिल जाए और उसके साथ काम करने का मौका मिल जाए तो इससे बड़ी खुशनसीबी किसी इंसान की और क्या होगी। अपने जमाने की मशहूर हीरोइन भी फिल्मों में आने से पहले अपनी पसंदीदा हीरोइन से मिलने का ख्वाब देखती थीं। अपनी एक फिल्म के निर्माण के दौरान जब अपने साथ काम कर रही अपनी पसंदीदा हीरोइन से उन्होंने बताया कि वो उनके जैसा बनना चाहती हैं तो उन्होंने कुछ ऐसा जवाब दिया, जिसका मतलब वो आज तक समझ नहीं पार्इं।
२९ अगस्त, १९५० को कर्नाटक के धारवाड़ में पैदा हुईं लीना चंदावरकर बचपन से ही अभिनेत्री बनना चाहती थीं। एक बार स्कूल में टीचर ने सारे बच्चों को ‘वे बड़े होकर क्या बनना चाहते हैं?’ विषय पर निबंध लिखने को कहा। किसी ने लिखा वो डॉक्टर बनना चाहता है, किसी ने इंजीनियर बनने की ख्वाहिश जताई लेकिन लीना ने लिखा कि वो फिल्मस्टार यानी अभिनेत्री बनना चाहती हैं। इस पर क्लास टीचर ने उन्हें समझाते हुए कहा, ‘ये बहुत गलत बात है। इसे किसने तुम्हारे दिमाग में डाला। ये लाइन अच्छी नहीं है। इसके लिए तुम ‘सॉरी’ बोलो।’ क्लास टीचर के कहने के बावजूद लीना ने सॉरी नहीं कहा और सॉरी न बोलने पर लीना को रूलर से मार खानी पड़ी। अंतत: टीचर ने घरवालों के नाम एक चिट्ठी लिखी, ताकि घरवाले लीना के दिमाग में घुसे इस फितूर को बाहर निकाल सकें। आठ-नौ वर्ष की उम्र तक फिल्मों से दूर भागनेवाली लीना को बैकग्राउंड म्यूजिक और थिएटर के अंधेरे से डर लगता था और उस उम्र में माता-पिता के साथ थिएटर में जाकर फिल्म ‘पोस्ट बॉक्स नं. ९९९’ देखनेवाली लीना जब फिल्म का डरावना म्यूजिक सुनकर घबरा जातीं तो उनकी मां उनसे कहतीं, ‘आंखें बंद कर लो।’ लेकिन आंखें बंद करने के बावजूद कानों से डरावना म्यूजिक सुनाई पड़ता, जिसे सुनकर घबरा जानेवाली लीना को बार-बार थिएटर से बाहर लेकर जाना पड़ता। १२ वर्ष की उम्र में मीना कुमारी की फिल्म ‘दिल एक मंदिर’ और ‘दिल अपना और प्रीत पराई’ देखनेवाली लीना इन फिल्मों में मीना कुमारी की अदाकारी को देख उनकी मुरीद बन गर्इं। उन्हें लगता था कि मीना कुमारी एक फरिश्ता हैं और उनका गरिमापूर्ण चेहरा अब उन्हें आकर्षित करने लगा। मीना कुमारी उन्हें इतनी अच्छी लगने लगीं कि वो अब बस उन्हीं की फिल्में देखा करतीं। मीना कुमारी की फिल्मों को देखते-देखते उनके मन में एक इच्छा जागृत हुई कि मुंबई जाकर मीना कुमारी को एक बार देखना है। फिल्म इंडस्ट्री जॉइन करने के बाद लीना की फिल्म ‘मन का मीत’ रिलीज हुई। उसके बाद उन्होंने दो फिल्में ‘हमजोली’ और ‘जवाब’ साइन की। फिल्म ‘जवाब’ में जितेंद्र और दादा मुनि अशोक कुमार उनके साथ थे। दादा मुनि फिल्म में लीना चंदावरकर के पिता बने थे और मीना कुमारी जितेंद्र की बहन बनी थीं। फिल्म ‘जवाब’ को साइन करते ही लीना की मानो मनमांगी मुराद पूरी हो गई। बचपन से मीना कुमारी की दीवानी लीना को मीना कुमारी से मिलने का नहीं, बल्कि साथ काम करने का मौका मिल रहा था। खैर, फिल्म की शूटिंग के दौरान लीना इतनी खुश थीं कि सेट पर मीना कुमारी को ही एकटक निहारा करतीं। लीना द्वारा खुद को लगातार इस तरह निहारते रहने से मीना कुमारी समझ गईं कि ये लड़की उनकी बहुत बड़ी फैन है। अब मीना कुमारी ने एक दिन लीना को अपने रूम में बुलाया और वहां उन्होंने लीना से खूब बातें की। यहां-वहां की बातों के बाद बातों ही बातों में लीना चंदावरकर ने मीना कुमारी से कहा कि ‘आगे चलकर मैं आपकी तरह बनना चाहती हूं।’ लीना चंदावरकर की इस बात को सुनकर एक पल के लिए मीना कुमारी खामोश हो गईं। इंसानी रेगिस्तान में सिर्फ प्यार की एक बूंद को तरसतीं मीना कुमारी का जीवन दुख और दर्द से लबरेज था। ऐसे में भला वे अपने किसी चाहनेवाले को अपने जैसा बनने के लिए कैसे कह सकती थीं। खैर, लीना की इस बात का मीना कुमारी ने इस तरह जवाब दिया, जिसे सुनकर लीना चंदावरकर सन्न रह गईं और आज तक ये नहीं समझ पाईं कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा। लीना चंदावरकर की बात को सुन मीना कुमारी ने लीना चंदावरकर से कहा, ‘बिल्कुल भी मेरी तरह मत बनना लीना!’ इस पर लीना ने कहा कि ‘आप ऐसा क्यों कह रही हैं। आप तो हर तरह से मेरी फेवरिट आर्टिस्ट हैं और आपसे ज्यादा मैं किसी और को पसंद नहीं कर सकती।’ लीना चंदावरकर के इतना कहते ही मीना कुमारी की आंखें आंसुओं में डूब गईं।