• यू.एस. मिश्रा
जिस तरह दुनिया का हर इंसान चाहता है कि वो अपने जीवन में कुछ ऐसा काम कर जाए जिसे उसके जाने के बाद भी लोग भुला न पाएं, वैसा ही कुछ हमारे फिल्मी सितारे भी चाहते हैं। वो भी चाहते हैं कि अपने जीवन में वो कोई ऐसा रोल निभा जाएं, जो मील का पत्थर बन जाए और दुनिया उन्हें चाहकर भी भुला न पाए। खैर, अपने जमाने की एक मशहूर हीरोइन को जब एक निर्माणाधीन फिल्म में पावरफुल रोल दिखा तो उन्होंने प्रोड्यूसर से कहा कि वो उनकी उस फिल्म में हीरोइन का मुख्य किरदार निभाना चाहती हैं। प्रोड्यूसर ने उन्हें उस रोल की बारीकियां समझार्इं लेकिन वो उन्हें तर्क देने लगीं और…
२९ जुलाई, १९६२ को रिलीज हुई अबरार अल्वी निर्देशित फिल्म ‘साहब बीबी और गुलाम’ को गुरु दत्त ने जब बनाने का प्लानिंग की तो बिमल मित्रा द्वारा बांग्ला में लिखे गए नॉवेल ‘साहेब बीबी गोलाम’ का हिंदी में अनुवाद किया गया। दो-चार राइटर ऐसे भी थे, जो बांग्ला भाषा पढ़ सकते थे और नॉवेल के मजमून को हिंदी में समझा सकते थे। अत: वहीदा रहमान ने अपनी इच्छा जाहिर करते हुए गुरु दत्त से कहा कि ‘फिल्म में मैं ‘छोटी बहू’ का किरदार निभाना चाहती हूं।’ वहीदा रहमान की बात सुनकर गुरु दत्त उन्हें समझाते हुए बोले, ‘ये थोड़ा मुश्किल रोल है। इसे आप नहीं कर पाएंगी क्योंकि आप उम्र में छोटी हैं। ये रोल एक मैच्योर औरत के लिए है और वो ही इस रोल को सोच-समझकर कर सकती है क्योंकि हीरोइन एक शादीशुदा औरत है, जिसे अपने पति का प्यार नहीं मिलता। अपने पति का वो कितना इंतजार करती है। तुम इस रोल के लिए बहुत छोटी हो।’ अब गुरु दत्त की बात को सुन वहीदा रहमान बोलीं, ‘फिर आर्टिस्ट का क्या मतलब हुआ? आप इतने अच्छे डायरेक्टर हैं। अगर मैं आर्टिस्ट हूं और इस रोल को कर सकती हूं, तो इसे मैं करूंगी।’ उनकी बातों को सुन गुरु दत्त ने उन्हें समझाते हुए कहा, ‘आप नहीं समझ रहीं, इसके लिए मैच्योर औरत की जरूरत है।’ गुरु दत्त के लाख समझाने के बावजूद वहीदा रहमान ने एक ही रट लगा रखी थी कि मुझे ‘छोटी बहू’ का ये रोल करना है। वहीदा रहमान की जिद को देखते हुए अब गुरु दत्त ने उनसे कहा, ‘आपके दिल की खुशी के लिए हम ‘छोटी बहू’ के गेटअप में आपका एक शॉट और कुछ स्टिल्स लेते हैं।’ इस पर वहीदा ने कहा, ‘हां, ये ठीक है।’ वहीदा की बात सुनकर अब गुरु दत्त बोले, ‘अगर शॉट लेने के बाद मैं कहूं, ‘हां, ये ठीक नहीं है’ तो उसके बाद आप इस रोल के लिए जिद नहीं करेंगी।’ गुरु दत्त की बात सुन वहीदा ने कहा, ‘अच्छा, ठीक है।’ अब बंगाली साड़ी पहनाकर वहीदा रहमान का मेकअप किया गया और ‘छोटी बहू’ के गेटअप में उनका शॉट और कुछ स्टिल्स लिए गए। बाद में जब शॉट और उन स्टिल्स को वहीदा रहमान ने देखा तो मन-ही-मन सोचने लगीं कि शॉट्स और स्टिल्स को देखकर लगता ही नहीं कि मैं शादीशुदा औरत हूं, जो अपने पति के कहने पर शराब भी पीना मंजूर कर लेती है, गाने गाकर अपने मियां को रोकना चाहती है। मैं खुद बच्ची जैसी लगती हूं। अब शॉट्स और स्टिल्स को देखने के बाद वहीदा रहमान ने खुद गुरु दत्त से कह दिया, ‘हां, ठीक नहीं लगता है।’ वहीदा की बात सुनकर अब गुरु दत्त ने उनसे कहा, ‘फिलहाल, इस फिल्म में आपके लिए कोई रोल नहीं है।’ इस पर वहीदा रहमान ने कहा, ‘क्यों? जबा का रोल है न?’ अब गुरु दत्त बोले, ‘जबा का रोल हीरोइन का रोल नहीं है।’ इस पर वहीदा ने कहा, ‘उससे क्या होता है। मुझे जबा का रोल पसंद है।’ इस पर गुरु दत्त बोले, ‘फिर ये मत कहना कि मैंने तुम्हें हीरोइन का रोल नहीं दिया।’ इस पर वहीदा बोली, ‘नहीं, आपने तो मुझे कुछ नहीं कहा। आप तो खुद कह रहे हैं कि ये रोल मत करो लेकिन मुझे ये रोल करना है क्योंकि मुझे लगता कि ये सेकेंड लीड रोल भी बेस्ट है।’ खैर, ‘साहब बीबी और गुलाम’ में वहीदा रहमान ने जबरदस्ती जबा का सेकेंड लीड रोल प्ले किया क्योंकि उनका मानना है कि आर्टिस्ट को जो रोल अच्छा लगे उसे वो करना चाहिए। लेकिन फिल्म में चाहकर भी वो ‘छोटी बहू’ का वो किरदार नहीं निभा सकीं, जिसे वो निभाना चाहती थीं। अंतत: फिल्म में ‘छोटी बहू’ के किरदार को साकार करनेवाली मीना कुमारी ने इस किरदार में अपनी अदाकारी का ऐसा जादू बिखेरा कि उन्होंने न केवल इस किरदार को फिल्मी इतिहास के पन्नों पर हमेशा-हमेशा के लिए अजर-अमर कर दिया, बल्कि उन्हें ‘छोटी बहू’ के किरदार के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के ‘फिल्मफेयर’ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया!