मुख्यपृष्ठग्लैमरकभी-कभी : साहित्यिक गरिमा को रखा बरकरार

कभी-कभी : साहित्यिक गरिमा को रखा बरकरार

यू.एस. मिश्रा
सन् १९४२ में महात्मा गांधी के ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन से प्रेरित होकर फिल्म ‘किस्मत’ के लिए प्रदीप द्वारा लिखा गया गीत ‘दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है…’ गीत आज भी जब कहीं बजता है तो इस गीत को सुनते ही एक नए जोश और एक नई उमंग से हर हिंदुस्थानी लबरेज हो उठता है। इस गीत के हिट होते ही इस गीत की रचना करनेवाले रामचंद्र नारायण द्विवेदी ‘प्रदीप’ का नाम हर व्यक्ति की जुबान पर चढ़ गया था और इस गीत ने पंडित प्रदीप को देशव्यापी लोकप्रियता दिलाने के साथ ही अमर कर दिया।
एक अच्छे कवि के साथ ही पंडित रामचंद्र नारायण द्विवेदी ‘प्रदीप’ एक गायक भी थे। प्रदीप का जन्म ६ फरवरी, १९१५ को उज्जैन के बड़नगर में हुआ था। प्रयागराज से बीए की शिक्षा ग्रहण करनेवाले पंडित प्रदीप ने दो वर्ष तक शिक्षण का प्रशिक्षण लेने के बावजूद अध्यापन को व्यवसाय के रूप में नहीं अपनाया। प्रदीप को कविताएं लिखने का शौक बचपन से ही था। कविताओं के अपने इसी शौक के चलते उन्होंने अपनी कविताओं के जरिए साहित्य की चौखट पर कदम रखते हुए साहित्यकारों का ध्यान अपनी ओर खींचा। पंडित प्रदीप की लेखनी से प्रभावित होकर जाने-माने साहित्यकारों ने जहां उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की, वहीं सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने उस समय की श्रेष्ठ साहित्यिक पत्रिका के एक अंक में पंडित प्रदीप की प्रतिभा, उनकी शैली और सुरीले कंठ की प्रशंसा करते हुए उन पर एक लेख तक लिख डाला। पंडित प्रदीप की कविताओं, उनके सुर-लय और ताल की समझ और उनकी मधुर आवाज का मिला-जुला रूप लोगों को इस कदर भाया कि उनकी प्रतिभा की दमक चहूं ओर पैâल गई। १९३८ में मुंबई आने के बाद उन्होंने काव्य गोष्ठियों में भाग लेना शुरू किया। एक काव्य गोष्ठी में फिल्म इंडस्ट्री के मशहूर निर्देशक एन.आर. आचार्य ने जब उन्हें सुना तो उन्होंने प्रदीप की मुलाकात ‘बॉम्बे टॉकीज’ के हिमांशु राय से करवाई। हिमांशु राय ने जब उनकी रचनाएं सुनीं तो वे उनसे इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने तुरंत दो सौ रुपए माहवार पर उन्हें फिल्मों में गीत लिखने के लिए अनुबंधित कर लिया। अब हिमांशु राय की सलाह पर उन्होंने अपना नाम रामचंद्र नारायण द्विवेदी ‘प्रदीप’ की जगह सिर्फ प्रदीप रख लिया। १९३९ में उन्होंने ‘बॉम्बे टाकीज’ की फिल्म ‘कंगन’ के लिए पहली बार चार गीत लिखे। अपने लिखे चार गीतों में से तीन गीतों को उन्होंने अपनी आवाज दी। इस तरह उन्होंने बतौर गीतकार और गायक इंडस्ट्री में धमाकेदार एंट्री की। इसके बाद तो उनके गीतों का सिलसिला चल पड़ा। ‘बंधन’, ‘पुनर्मिलन’, ‘नया संसार’, ‘झूला’, ‘किस्मत’ जैसी फिल्मों में उन्होंने गीत लिखे। फिल्म ‘बंधन’ में उनके द्वारा लिखा गया गीत ‘चल चल रे नौजवान…’ बेहद लोकप्रिय हुआ था। १९५४ में फिल्म ‘नास्तिक’ में उनका गाया गीत ‘देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान…’ बहुत मशहूर हुआ। उनका लिखा ये गीत सिर्फ उस दौर का ही नहीं, बल्कि आज के देश-दुनिया के हालात का सटीक बयान करता है। फिल्म ‘जागृति’ में उनका लिखा गीत ‘आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की…’ ने तो मानो तहलका ही मचा दिया था। ‘तेरे द्वार खड़ा भगवान भगत भर ले रे झोली…’, ‘दूसरों का दुख दूर करनेवाले…’, ‘कोई लाख करे चतुराई…’, ‘पिंजरे के पंछी रे तेरा दर्द न जाने कोय…’, ‘मुखड़ा देख ले प्राणी जरा दर्पण में…’, ‘यहां वहां जहां तहां मत पूछो कहां कहां है संतोषी मां…’ जैसे उनके लिखे और गाये गीतों ने जहां हर तरफ तहलका मचा दिया, वहीं २९ जनवरी, १९६३ को दिल्ली के रामलीला मैदान में भारत-चीन युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की याद में राष्ट्र को समर्पित एक विशेष कार्यक्रम में संगीतकार सी. रामचंद्र की स्वर लहरियों पर पंडित प्रदीप के लिखे बोल ‘ऐ मेरे वतन के लोगो जरा आंख में भर लो पानी…’ स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर की आवाज में कुछ इस तरह गूंजे की वहां उपस्थित श्रोताओं के साथ-साथ पंडित जवाहरलाल नेहरू की आंखें भर आर्इं। पंडित प्रदीप हिंदी फिल्म गीतकारों के इतिहास का एक स्वतंत्र अध्याय थे। फिल्मों में काम करते हुए भी उन्होंने अपने गीतों के लिए कभी अश्लीलता का सहारा नहीं लिया और अपनी साहित्यिक गरिमा को बरकरार रखा। फिल्म इंडस्ट्री के उर्दू माहौल में रहकर भी उन्होंने न केवल हिंदी की पताका फहराई, बल्कि साहित्यिक संस्कार को बरकरार रखते हुए उन्होंने लोगों में जागरूकता के साथ ही राष्ट्रीय भावना की ज्योति भी जलाई। अपने गीतों के जरिए देशभक्ति और राष्ट्र गौरव की गंगा बहाने वाले पंडित प्रदीप की लेखनी और उनकी आवाज हर युग में लोगों को जीने की प्रेरणा देती रहेगी।

अन्य समाचार