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सोनम वांगचुक के जलवायु उपवास को समर्थन देगा करगिल  …कल आधे दिन की हड़ताल की घोषणा

–सुरेश एस डुगगर-
जम्मू, 19 मार्च। लद्दाख के पर्यावरणविद और कार्यकर्ता सोनम वांगचुक के जलवायु उपवास को कल आधे दिन की हड़ताल करके करगिल की जनता समर्थन प्रदर्शन करने जा रही है। हालांकि पिछले दो सप्ताह से आमरण भूख हड़ताल पर बैठे वांगचुक ने भारत सरकार को लोकतंत्र की सौतेली मां कह कर पुकारा है।

लद्दाख के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों के प्रमुख प्रचारक वांगचुक ने कहा है कि भारत सरकार को लद्दाख के पर्यावरण और आदिवासी स्वदेशी संस्कृति की रक्षा के अपने वादों की याद दिलाने के लिए 250 लोग शून्य से 12 डिग्री सेल्सियस नीचे तापमान में भूखे सोए। उन्होंने एक्स पर लिखा कि यह सरकार भारत को लोकतंत्र की जननी कहना पसंद करती है। लेकिन अगर भारत लद्दाख के लोगों को लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित करता है और इसे नई दिल्ली से नियंत्रित नौकरशाहों के अधीन रखना जारी रखता है तो इसे केवल लद्दाख के संबंध में लोकतंत्र की सौतेली मां कहा जा सकता है।

हालांकि करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) ने सोनम वांगचुक के जलवायु उपवास के साथ एकजुटता दिखाने के लिए 20 मार्च को आधे दिन की हड़ताल का आह्वान किया है। याद रहे कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने भारत सरकार को लद्दाख से किए गए वादों की याद दिलाने के लिए आमरण भूख हड़ताल की घोषणा की है। भूख हड़ताल की घोषणा करके, वांगचुक का उद्देश्य केंद्र को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और लद्दाख के लोगों से अपने पर्यावरण की रक्षा करने के लिए किए गए वादों की याद दिलाना है।

जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक लगभग दो सप्ताह से लद्दाख की राजधानी लेह में भूख हड़ताल पर हैं, जहां के निवासियों में निराशा और गुस्सा स्पष्ट है। वांगचुक ने चिंता व्यक्त की कि केंद्र शासित प्रदेश के रूप में लद्दाख की स्थिति क्षेत्र की पहचान की रक्षा करने के बजाय औद्योगिक और खनन कंपनियों के हितों को सुविधाजनक बनाने की रणनीति हो सकती है, जैसा कि भाजपा ने वादा किया था।

वांगचुक के मुताबिक, लोकतांत्रिक संस्थाओं और स्थानीय आरक्षण के अभाव के कारण लद्दाखी सैनिकों के मनोबल को नुकसान हो रहा है। पांच साल पहले जब लद्दाख को एक अलग केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया गया था तो शुरुआती जश्न के बावजूद, लोग अब ठगा हुआ महसूस करते हैं और सरकार से आश्वासन चाहते हैं।

लद्दाख में क्यों हो रहा है विरोध?
लद्दाख में विरोध प्रदर्शन तब शुरू हुआ जब अन्वेषक और वैज्ञानिक सोनम वांगचुक ने भारत सरकार द्वारा केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख से किए गए वादों को याद दिलाने के लिए 21 दिन के आमरण अनशन की घोषणा की। करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस, लेह एपेक्स बाडी और केंद्र सरकार के बीच वार्ता विफल होने के कुछ दिनों बाद 6 मार्च को उपवास शुरू हुआ।

केंद्र सरकार द्वारा कथित तौर पर उनकी मुख्य मांगों – छठी अनुसूची के तहत राज्य का दर्जा और संवैधानिक सुरक्षा उपायों को खारिज करने के बाद केडीए और एलएबी प्रतिनिधि भी लद्दाख के लिए एक रणनीति तैयार करने वाले हैं। वर्ष 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के साथ ही जम्मू कश्मीर और लद्दाख को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया था। पिछले साल, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जम्मू कश्मीर के लिए राज्य का दर्जा बहाल करने और 30 सितंबर 2024 तक इसे सुनिश्चित करने के लिए चुनाव कराने का आदेश दिया था।

इस आदेश के बाद वांगचुक और लद्दाख के लोगों ने हिमालयी क्षेत्र के लिए भी इसी तरह का कदम उठाने और इसे अधिक राजनीतिक स्वायत्तता और निर्णय लेने की शक्तियां देने की मांग की है।

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