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कारगिल युद्ध विशेष : याक खोजने गए नामग्याल चरवाहे ने दी घुसपैठ की खबर

–सुरेश एस डुग्गर–
जम्मू, २६ जुलाई। कारगिल घुसपैठ की खबर किसी गुप्तचर एजेंसी ने सेना को नहीं दी थी, बल्कि याक खोजने गए एक चरवाहे ने इसका पता लगाया था। दो मई १९९९ को नामग्याल अपना याक खोजने गया था। बर्फ में उसने कुछ निशान पाए जो याक के नहीं, बल्कि इंसान के थे। कुछ दूरी पर उसने पांच-छह लोगों को देखा, जो स्थानीय लोगों के लिबास में थे। नामग्याल को उनके घुसपैठी या आतंकी होने का शक हुआ। उसने तुरंत पंजाब बटालियन के हवलदार बलविंदर सिंह को सूचना दी। बलविंदर ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन संपर्क नहीं हो पाने पर वे नामग्याल के साथ उस जगह गए जहां दुश्मन की गोली का शिकार हो गए।

इन पांच-छह लोगों को देखकर नामग्याल को लगा कि कुछ तो गड़बड़ होने वाला है। नामग्याल का शक बाद में सही निकला, जब सप्ताह भर में ही कारगिल घुसपैठ के खिलाफ भारतीय सेना को अभियान शुरू करना पड़ा। अभियान करीब ८१ दिन चला। २६ जुलाई को घुसपैठियों को पूरी तरह मार भगाया।

कारगिल जंग जीतने के बाद सेना ने नामग्याल को ५० हजार रुपए देकर सम्मानित किया। आज भी उन्हें हर महीने पांच हजार रुपए दिए जा रहे हैं। साथ ही राशन भी मुफ्त मिलता है। उनके दो बेटे व दो बेटियां हैं। सेना की सिफारिश पर उनके दूसरे बेटे स्टैंजिन दोर्जे को पुणे स्थित ‘सरहद संस्था’ ने पढ़ाई के लिए गोद ले रखा है। ‘सरहद संस्था’ में जम्मू-कश्मीर के करीब १५० बच्चे पढ़ते हैं। इनमें कारगिल के ३३ छात्र ऐसे भी हैं, जिनके माता-पिता कारगिल घुसपैठ के दौरान भारतीय जवानों की मदद करने के कारण दुश्मन के निशाने पर आ गए थे।

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