हिमांशु राज
पौराणिक साहित्य व कथाओं से काशी सर्वथा से समृद्ध रही है। प्राचीन कथाओं से पता चलता है कि काशी तपस्वियों, दिव्य साधकों व महात्माओं की तपस्थली रही है। व्यष्टि के समष्टि में विलय की अलौकिक धरा के रूप में काशी त्रिलोक से न्यारी रही है। पुराण में वर्णित एक कथा है। एक बार महर्षि वेद व्यास काशी में प्रवास के दौरान स्थान-स्थान पर शिव मंदिर व शिवोपासना की अप्रतिम ऊर्जा व उत्साह देखकर अचंभित रह गए। उनका मत था कि जगत नियंता-जग पालक-सर्वशक्तिमान और सबके प्रिय व प्रेरक भगवान विष्णु हैं। विश्वेश्वर शिव मंदिर में पहुंचकर उन्होंने भुजा उठाकर अपना मत दोहराया। श्लोक पूर्ण होते-होते उनकी दाहिनी भुजा व वाणी स्तंभित हो गई। व्यास की गति देख अपरोक्ष रूप से प्रकट होकर नारायण ने समझाया कि विश्वनाथ की महिमा में संदेह अनिष्टकारी है। हरि ने उनके कंठ को स्पर्श कर जैसे ही दोष मुक्त किया, उन्होंने विश्वनाथ की स्तुति करते हुए शिव और विष्णु के अभेद का प्रतिपादन किया। मान्यता है काशी से राजा दिवोदास को निष्कासित करने के लिए काशी का मोह न छोड़ पाने व कारण शिव द्वारा कहने पर विष्णु भी काशी आए और गणेश के प्रयास को सफल करने में अपना सहयोग देते हुए दिवोदास को उच्चाटित किया। विष्णु के काशी आने व उनके प्रिय स्थानों का काशी खंड में प्रमुख स्थान है, जिससे काशी में वैष्णव संप्रदाय की प्रतिष्ठा का भी संकेत मिलता है। काशी के हरि प्रिय स्थानों में बिंदु माधव, आदि केशव, ज्ञान केशव, ताक्ष्य केशव, नारद केशव, प्रह्लाद केशव, आदित्य केशव, भृगु केशव, वामन केशव, ह्यग्रीव केशव, भीष्म केशव, निर्वाण केशव, भुवन केशव, गंगा केशव सहित काशी खंडोक्त ४५ से ज्यादा क्षेत्र रहे हैं। अग्नि बिंदु की तपस्या से प्रसन्न होकर विष्णु ने बिंद माधव रूप से पंचनद तीर्थ पर निवास किया। अग्नि बिंदु के कारण ही इसका नाम बिंदु माधव के रूप में प्रसिद्ध हुआ. सर्वप्रथम काशी आने पर विष्णु ने आदि केशव घाट पर निवास किया था और यहां स्थित अपनी मूर्ति को आदि केशव नाम दिया। मान्यता है इनके दर्शन से अमृतपद की प्राप्ति होती है। आदि केशव की तरह ज्ञान केशव का भी स्थान पादोदक तीर्थ में है। वर्तमान में ज्ञान केशव की मूर्ति आदि केशव के मंदिर में उनके निकटस्थ विष्णु मूर्ति को ही माना जाता है। ताक्ष्य केशव की मूर्ति काशी खंड के गरुण तीर्थ में बताया गया है। दर्शन मात्र से गरुण के समान केशव का प्रिय होने की महत्ता रखनेवाले इस विष्णु मूर्ति का अब लोप हो चुका है। इसी तरह नारद केशव का भी कई प्राचीन तीर्थों के समान लोप हो चुका है तथा नारद केशव की मूर्ति भी लुप्त हो चुकी है। जानकारों का एक मत ये भी है कि नारद घाट ही नारद तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध रहा होगा। भक्तिभाव में वृद्धि के लिए प्रह्लाद घाट स्थित प्रह्लाद केशव आज भी पौराणिक महात्म्य के साथ प्रसिद्ध है। अंबरीश तीर्थ, वरुणा संगम स्थान पर आदित्य केशव का स्थान काशीखंड में वर्णित है। वर्तमान समय में आदित्य केशव की कोई मूर्ति नहीं है। काशी में सभी मनोरथ पूर्ण करनेवाले भृगु केशव की गोलाघाट सीढ़ियों पर स्थित मूर्ति का पूजन आज भी होता है। त्रिलोचन क्षेत्र में स्थित वामन केशव रूप मूर्ति के पूजन से समस्त इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं। वामन केशव की ये मूर्ति आजकल मधुसूदन के नाम से जन प्रसिद्ध है। विष्णु के परम पद की प्राप्ति हेतु ह्यग्रीव केशव भदैनी स्थित माता आनंदमयी अस्पताल से सटे अत्यंत जीर्ण अवस्था में है, पर इसके पौराणिक नाम की प्रसिद्धि के कारण इसका जीर्णोद्धार व पुनरुद्धार का कार्य जारी है। वृद्धकालेश्वर महादेव के पश्चिम में स्थित भीष्म केशव के पूजन से भीषण उपद्रव भी शांत होने की मान्यता है। छोटी मूर्ति होने के बावजूद आज भी लोगों की इसमें पौराणिक आस्था प्रबल है। लोलार्क कुंड के उत्तर भाग में स्थित निर्वाण केशव की मूर्ति अपने नाम के अनुरूप ही विष्णु भक्तों को निर्वाण प्रदान करनेवाली है। दशाश्वमेध घाट काशी के अद्भुत शक्तिपीठ बंदी देवी के दक्षिण में भुवन केशव की प्रसिद्ध विष्णु मूर्ति के दर्शन से व्यक्ति गर्भभागी नहीं होता है। इसी क्रम में ललिता घाट स्थित विष्णु रूप मूर्ति गंगा केशव का श्रद्धाभाव से पूजन करनेवाला विष्णु लोक में पूजित होता है, ऐसी मान्यता है। वर्तमान में मूर्ति की अवस्था अत्यंत जीर्ण है। काशी का प्रत्येक विशिष्ट खंड परोक्ष व अपरोक्ष रूप से विष्णु तीर्थ का इतिहास समेटे हुए है। नरनारायण (बद्रीनारायण), यज्ञवाराह, विदार नरसिंह, गोपी गोविंद, लक्ष्मी नृसिंह, शेष माधव, शंख माधव, ज्ञान माधव, श्वेत माधव, प्रयाग माधव, ज्ञानवापी विष्णु, बैकुंठमाधव, वीरमाधव, काल माधव, निर्वाण नरसिंह, महाबल नृसिंह, प्रचंड नृसिंह, गिरी नृसिंह, महाभयहर नृसिंह, अत्युग्र नृसिंह, ज्वाला नृसिंह, कोलाहल नृसिंह, विटंक नृसिंह, अनंत वामन, दधि वामन, त्रिविक्रम, बलिवामन, ताम्रवाराह, धरणि वराह व कोकवराह सहित अन्य कई विष्णु क्षेत्र काशी में विद्यमान रहे हैं। काशी में कई विलुप्त हो चुके देव स्थानों पर पूजा ‘स्थान प्रधानं न बलं प्रधानं’ के सिद्धांत पर आज भी की जाती है। काशी जैसे प्राचीन शहर में इतने अधिक संख्या में विष्णु मूर्तियों का होना वैष्णव संप्रदाय के पोषक शहर होने का संकेत मिलता है। शिव की प्रिय नगरी काशी कालांतर में शैव सिद्धांत की अनुसंधान भूमि के रूप में प्रतिष्ठित होती हुई प्रधान शिवतीर्थ बन गई। समय के साथ समस्त विष्णु तीर्थों में आज आदि केशव तथा बिंदु माधव काशी में जनसामान्य में प्रसिद्ध होने के साथ विशेष महात्म्य के साथ प्रतिष्ठित हैं तथा अन्य विष्णु तीर्थ केवल विद्वतजन व जागृत वैष्णव भक्तों द्वारा ही ज्ञेय रह गए हैं। अगर इन्हें समुचित संरक्षण नहीं प्रदान किया गया तो कोई आश्चर्य नहीं कि कालांतर में इन देव स्थानों का लोप हो जाए।