योगेश कुमार सोनी
वैसे तो भगवान शिव के कई मंदिर हैं लेकिन उत्तर प्रदेश के वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव का सबसे प्रसिद्ध व प्राचीन हिंदू मंदिर है। इसकी सबसे बड़ी खूबसूरती यह है कि यह मंदिर पवित्र नदी गंगा के पश्चिमी तट पर स्थित है और बारह ज्योतिर्लिंग में से एक है। इस मंदिर को ‘देवता विश्वनाथ’ व ‘विश्वेश्वर’ नाम से जाना जाता है, जिसका अर्थ है ‘ब्रह्मांड के शासक’। वाराणसी शहर को काशी भी कहा जाता है। इसलिए मंदिर को काशी विश्वनाथ मंदिर कहा जाता है। मंदिर की मुख्य मीनार पर सोने की परत चढ़ी हुई है, जिसका वजन लगभग १,००० किलो अर्थात एक टन है। बताया जाता है कि मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय सर्दियों का मौसम होता है। इसके अलावा मंदिर परिसर के अंदर वैâमरा, मोबाइल फोन व अन्य किसी भी प्रकार की इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस पूर्ण रूप से प्रतिबंधित हैं। देश ही नहीं, दुनिया के कोने-कोने से लोग इस मंदिर के दर्शन के लिए आते हैं, जिसकी वजह से विदेशी पर्यटकों को अलग गेट से प्रवेश दिया जाता है। इस मंदिर का भी उल्लेख पुराणों में मिलता है। जैसे कि स्कंद पुराण में काशी खंड में मंदिर का उल्लेख है और इन कालखंडों में मंदिर का कई बार पुनर्निर्माण किया गया है। इस मंदिर को कई बार नष्ट करने का प्रयास किया गया था। सबसे पहली बार कुतुबुद्दीन ऐबक की सेना ने मंदिर को ११९४ में नष्ट किया था। फिर ऐतिहासिक ग्रंथों के अनुसार, यह १६६९ सीई में मुगल सम्राट औरंगजेब ने मस्जिद बनाने के लिए फिर से नष्ट कर दिया था। लेकिन १७८० में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने मंदिर को उसी स्थान पर फिर से बनाया गया था, जिसका कई मुस्लिम शासकों ने विरोध किया था लेकिन अहिल्याबाई ने अपनी इच्छाशक्ति के साथ इस चुनौती पूर्ण कार्य को अंजाम दिया था। नए मंदिर में दो गुंबद थे, जो सोने में ढंके हुए थे। जिन्हें सिख महाराजा रणजीत सिंह ने दान किया था और उसी समय में भोसले ने मंदिर के आगे के निर्माण के लिए आवश्यक चांदी का दान किया था। बताया यह भी जाता है कि इस मंदिर को जिसने भी क्षति पहुंचाई, उसका सर्वनाश हुआ था। तमाम मुगल शासकों ने हिंदुस्थान के कई ऐतिहासिक मंदिरों को ध्वस्त किया था। काशी विश्वनाथ मंदिर को पूरी दुनिया में जाना जाता है, जिससे हमारी पहचान बनी हुई है।