मनोज श्रीवास्तव / लखनऊ
यूपी में सीएम योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के बीच चल रही खींचतान एक कदम और बढ़ गया। उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के नाम से जारी एक चिट्ठी वायरल हो रही है, जो योगी सरकार की मुश्किलें बढ़ा सकती है। मौर्य की ओर से उत्तर प्रदेश के अपर मुख्य सचिव नियुक्ति और कार्मिक देवेश कुमार चतुर्वेदी से आउटसोर्सिंग में आरक्षण की जानकारी मांगी गई है। ये विभाग सीएम योगी आदित्यनाथ के पास है। मौर्य ने अपनी ही सरकार को चिट्ठी लिखकर पूछा है कि उत्तर प्रदेश में हुई संविदा भर्ती के दौरान क्या आरक्षण के मानकों का पालन किया गया है? चिट्ठी की खास बात यह है कि इसमें उपमुख्यमंत्री के हस्ताक्षर 4 जून को दर्शाया जा रहा है, जबकि चिट्ठी डिस्पैच 15 जुलाई को की गई। लगभग 40 दिन का यह अंतर क्यों आ रहा है? इस पर बड़े सवाल उठ रहे हैं। यह चिट्ठी 40 दिन तक दबाकर क्यों रखी गई?
प्रदेश कार्य समिति की बैठक में केशव प्रसाद मौर्य ने यह कर न केवल भूचाल ला दिया था, बल्कि वहां मौजूद प्रदेश भर के कार्यकर्ताओं की वाहवाही लूटी थी कि “संगठन” सरकार से बड़ा है। प्रदेश कार्यसमिति में आये राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को जब विषय की गंभीरता का अंदाजा लगा तो वह प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह को दिल्ली बुला कर न सिर्फ स्वयं मिले, बल्कि गृहमंत्री अमितशाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिल कर बात करने को कहा। कहा जाता है कि इसी दौरान उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी दिल्ली जाकर नड्डा और अमितशाह से मिले। उसके तत्काल बाद केशव मौर्य का वह पत्र क्यों जारी हुआ जिस मुद्दे पर भाजपा बैकफुट पर पायी जाती रही। इस मुद्दे पर भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व कुछ भी बता रहा हो पर उत्तर प्रदेश में केशव प्रसाद मौर्य और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच शीतयुद्ध जारी है। वायरल चिट्ठी के मुताबिक डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का मानना है कि आउटसोर्सिंग पर दी जाने वाली नौकरी में रिजर्वेशन नहीं दिया जाता है, जबकि यूपी सरकार ने साल 2008 में ही कॉन्ट्रैक्ट पर दी जाने वाली नौकरी में इसकी व्यवस्था की थी। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने योगी सरकार से पूछा है कि अब तक कितने पिछड़े और दलितों को आउटसोर्सिंग में नौकरी दी गई है। उन्होंने इसके लिए 15 जुलाई को नियुक्ति और कार्मिक विभाग के प्रमुख को चिट्ठी लिखी है।
बता दें कि इससे पहले भाजपा की सहयोगी अपना दल एस की सांसद और केंद्र सरकार में मंत्री अनुप्रिया पटेल भी आउटसोर्सिंग में आरक्षण पर सवाल उठा चुकी हैं। उन्होंने योगी सरकार को चिट्ठी भी लिखी थी। उन्होंने आंबेडकरनगर से सपा सांसद लालजी वर्मा के योग्य न होने का हवाला दे कर आरक्षित पदों को खत्म करने का मुद्दा उठाया था। इसी कड़ी में बीजेपी के एक और सहयोगी दल निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद तो केशव मौर्य को पिछड़ों का सबसे बड़ा नेता बता चुके हैं। अब तक के इस मुद्दे पर सीएम योगी आदित्यनाथ को मुख्य विपक्षी दल के नेता अखिलेश यादव व भाजपा की सहयोगी पार्टियां ही घेर रही थीं। लेकिन अब तो सीधे-सीधे हमला यूपी सरकार में नंबर दो की हैसियत रखने वाले उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की ओर से उठाया गया है।
टीम गुजरात भी जानती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पछाड़ कर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ देश में हिंदुत्व के निर्विवाद चेहरा बन चुके हैं, लेकिन यक्ष प्रश्न यह है कि क्या यूपी में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के पीडीए फैक्टर की चाल के बाद भी योगी आदित्यनाथ उसकी काट हो सकते हैं? लोकसभा चुनाव में बीजेपी के यूपी में खराब प्रदर्शन को लेकर पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व अपने श्रोतों के माध्यम से प्रदेश के बड़े नेताओं से लेकर आम लोगों तक लगातार फीडबैक ले रहा है। केंद्रीय नेतृत्व हार के कारणों की तलाश में जुटी है। अब तक जो फीडबैक सामने आए हैं उसके मुताबिक, राजपूत संगठनों का देशव्यापी भाजपा विरोध के साथ अतिपिछड़े और अतिदलितों का पार्टी से मोहभंग हो जाना भी बड़ी वजह है। लोकसभा चुनाव में सपा को मिली बड़ी विजय के बाद 2027 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव को रोकने के लिए भाजपा हर दिन मंथन से गुजर रही है।
इससे पहले भी संविदा क्षेत्र में सरकार की ओर से दी जाने वाली नौकरियों में आरक्षण को लेकर विधान परिषद में सवाल पूछे जा चुके हैं। भारतीय जनता पार्टी की ओर से केशव प्रसाद मौर्य विधान परिषद में नेता सदन हैं। मुख्यमंत्री के विभाग से संबंधित सवाल उन्हीं से पूछे जाते हैं। इसलिए वे अपर मुख्य सचिव देवेश चतुर्वेदी से सदन में सवाल के विस्तृत जवाब को लेकर चिट्ठी लिख सकते हैं, मगर चिट्ठी पर साइन की तारीख और डिस्पैच की तारीख में 40 दिन का अंतर होने को लेकर बड़े सवाल उठ रहे हैं।