मुख्यपृष्ठधर्म विशेषभक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं `कुबेरनाथ'!

भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं `कुबेरनाथ’!

मोतीलाल चौधरी
महाशिवरात्रि के अवसर पर देशभर में मेला व दंगल का आयोजन होता है। प्रदेश में जितने शिवमंदिर हैं, वहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ेगी। भगवान भोले शंकर का दूध व जल से अभिषेक किया जाएगा। बता दें कि कुशीनगर जिले के प्रसिद्ध शिवमंदिर परिसरों में मेले का आयोजन किया जाता है। भारी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। जिले में स्थित सखवनिया, कुबेर स्थान, करहियां, सौरहा खुर्द पथलेश्वर शिव मंदिर आदि कई जगहों पर मेले का आयोजन होता। कुशीनगर के सारे शिवमंदिर आज बम-बम भोले शंकर दानी के नारों से गूंज उठेंगे। घरिघरवा स्थित शिवमंदिर नौ नाथों में एक नाथ कुबेरनाथ धार्मिक, ऐतिहासिक व आस्था का केंद्र है। यहां पूरे वर्ष जप, तप, पूजन-पाठ, रुद्राभिषेक, नामकरण, मुंडन, यज्ञोपवीत तथा विवाह संस्कार जैसे कार्यक्रम होते रहते हैं। वर्ष में यहां दो बड़े मेले भी लगते हैं। इसमें महाशिवरात्रि प्रमुख है। कुबेरनाथ धाम की विशेषता है कि यहां पाताल तोड़कर भगवान भोले शंकर का अद्भुत व चमत्कारिक पवित्र लिंग मंदिर के गर्भगृह में स्थित है। इस मंदिर में पूजा करने से भगवान हर मनोकामना पूरी करते हैं।
इसके प्रकट होने तथा कुबेरनाथ नाम पड़ने की रोचक कहानी है। काफी समय पूर्व यहां घना जंगल था, जहां Eिहसक जानवर विचरण करते थे। आस-पास के चरवाहे यहां अपने जानवरों को चराने आते थे। जंगल के मध्य भाग में बरगद का विशाल वृक्ष था, जिसके मध्य भाग में एक चौड़ा खोखला स्थान था। चरवाहे गर्मी में इसी पेड़ के नीचे दोपहर में विश्राम करते थे और वर्षा होने पर इसी में शरण लेते थे। एक बार दोपहर में अचानक बूंदा-बांदी होने से चरवाहे उस घोसले में घुसकर आग जलाने लगे। उसी दौरान तेज आवाज के साथ विस्फोट हुआ। कारण जानने के लिए कुबेर नामक चरवाहा उस स्थान पर अपनी लाठी से राख हटाने लगा, तभी वहां काले रंग का एक पत्थर दिखा। बाद में उसी स्थान को साफ कर आस-पास के गांव वालों ने इसे पूजना शुरू कर दिया। इसे खोजने वाले चरवाहे के नाम पर ही यह जगह कुबेरनाथ नाम से प्रसिद्ध हुई। एक कहानी यह भी है कि देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर भोले नाथ के आदेश से पार्वती के पूजन के लिए कमल पुष्प लाने चले गए। देर हो जाने के बाद शिव ने उन्हें शापित कर दिया। पुन: उन्हीं के आदेश पर स्वर्ण भद्रा नदी नारायणी नदी के तट पर मिट्टी में दबा हुआ शिवEिलग को बाहर निकालकर वर्तमान स्थान पर स्थापित किया और यह स्थान कुबेरनाथ नाम से जाना जाने लगा। कुबेर कल्पद्रुम नामक ग्रंथ में उल्लेखित है कि रावण का भाई कुबेर अपने पुष्पक विमान पर सवार होकर लंका से वैâलाश पर्वत पर शिव के पास जा रहे थे। जंगल के मध्य भाग में अलौकिक प्रकाश पुंज आकाश को दीप्तमान कर रहा था। उनका विमान आगे बढ़ने की बजाय नीचे आने लगा। पृथ्वी पर आने पर शिवलिंग का दर्शन किया। उन्हीं के नाम पर कालांतर में कुबेरनाथ नाम से प्रसिद्ध हुआ। जगतानंद ब्रह्मचारी ने इस स्थान को वर्तमान स्वरूप दिया, वहीं कुबेरस्थान में कुबेर भंडारी से लोग जो भी मन्नत मांगते हैं, वो पूरा होता है। श्रावण मास में बोल बम जाते हुए कांवरिए यहां से जल भरते हैं, उसके बाद प्रस्थान करते हैं। प्राचीन होने से इस मंदिर की बड़ी मान्यता है। बड़ी संख्या में बिहार से भी भक्तों का आगमन होता है।

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