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कुलगाम हमला: राजौरी और पुंछ में हुए हमलों से सुरक्षाबलों ने कोई सबक नहीं लिया

कुलगाम में अचानक हुए हमले में मारे गए थे तीन जवान, दो जख्मी हैं
सुरेश एस डुग्गर / जम्मू

कुलगाम के हलन गांव में आतंकियों ने ठीक उसी प्रकार की रणनीति अपनाते हुए ४ अगस्त को तीन जवानों की जान ले ली थी, जिस प्रकार उन्होंने राजौरी व पुंछ में १० जवानों को मार डाला था। उसी रणनीति के तहत ही उन्होंने मौके से चार एके ४७ राइफलों को भी लूट लिया था।
मिलने वाली सूचनाएं कहती हैं कि आतंकियों ने उस समय हलन गांव में सेना की ३४वीं राष्ट्रीय रायफल्स के जवानों पर हमला बोला था, जब वे कश्मीर पुलिस के साथ मिल कर एक टेंट गाड़ रहे थे। हमलावर आतंकियों को इसके प्रति पूर्व सूचना थी कि सुरक्षाबल वहां पर एक समारोह के लिए एकत्र हुए हैं।
हमले में ३ जवानों की घटनास्थल पर ही मौत हो गई थी, जिनमें सेना के दो और कश्मीर पुलिस का एक जवान था। हालांकि, सेना के दो अन्य जवान भी गंभीर रूप से जख्मी हैं, जिनका इलाज चल रहा है। इस हमले की खास बात यह थी कि आतंकी घटनास्थल से जवानों की ४ एके ४७ राइफलें भी लूटने में कामयाब हुए थे, जिस पर अभी तक सेना द्वारा चुप्पी साधी गई है।
सूत्रों के अनुसार, यह हमला ठीक वैसा ही था, जिस तरह से आतंकियों ने पुंछ के भाटा धुरियां में इस साल २० अप्रैल को सेना के उस वाहन को राकेट लांचर से उड़ा दिया था जो रोजादारों के लिए सामान लेकर जा रहा था और उसमें पांच जवान मारे गए थे। २० अप्रैल को हुए इस हमले के करीब १७ दिनों के बाद फिर से आतंकियों ने हमला बोला था। अबकी बार उन्होंने पुंछ से सटे राजौरी जिले के केसर इलाके में सेना के पांच जवानों को मार डाला था। सत्रह दिनों के अरसे में सेना ने पहली बार इतनी संख्या में अपने जवान खोए थे। इसके बावजूद वह इन हमलों से सबक नहीं ले पाई और न ही जवानों की मूवमेंट की सूचनाओं को लीक होने से रोक पाई।
बताया जाता है कि कुलगाम के जिस इलाके में हमला हुआ वहां आस-पास घने जंगलों में बड़ी संख्या में आतंकियों के छुपे होने की खबरें तो थीं, पर उनको हल्के तौर पर लेते हुए इलाके की छानबीन ही नहीं की गई थी। नतीजा अब चार दिनों से सैकड़ों जवान और दर्जनों ड्रोन इन हमलावर आतंकियों की थाह तक नहीं पा सके हैं।

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