मुख्यपृष्ठस्तंभयूपी में कुर्मी वोटर निर्णायक भूमिका निभाएंगे ... भाजपा होगी साफ!

यूपी में कुर्मी वोटर निर्णायक भूमिका निभाएंगे … भाजपा होगी साफ!

रोहित माहेश्वरी
यूपी में पिछड़े वर्ग में यादव समाज के बाद कुर्मी सबसे बड़ा वोट बैंक हैं। प्रदेश के लगभग ४५ फीसद पिछड़ी जातियों के मतदाताओं में दस फीसदी यादव हैं। ऐसा माना जाता है कि यादव बिरादरी का वोट काफी हद तक समाजवादी पार्टी को ही जाता है। दस फीसदी यादव मतदाताओं को छोड़कर शेष लगभग ३५ फीसदी मतदाताओं पर सभी दलों की नजर है। इन जातियों को लुभाने के लिए हर पार्टी एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। यह पैंतीस फीसदी मतदाता ही निर्णायक भूमिका अदा करते हैं, जिसमें कुर्मी प्रमुख हैं।
उत्तर प्रदेश में स्व. सोनेलाल पटेल ने अपना दल से कुर्मियों की राजनीति की शुरुआत की थी। प्रदेश में ३० से ३५ सीटों पर कुर्मी वोटरों का खासा प्रभाव माना जाता है, वहीं सात-आठ लोकसभा की सीटें भी इस वोट बैंक के प्रभाव क्षेत्र में आती हैं। भाजपा के सहयोगी अपना दल सोनेलाल का मूल आधार कुर्मी समाज ही है।
राज्य में कुर्मी-सैथवार समाज का वोट करीब ७ फीसदी है, जिन्हें पटेल, गंगवार, सचान, कटियार, निरंजन, चौधरी और वर्मा जैसे उपनाम से जाना जाता है। रुहेलखंड में कुर्मी गंगवार और वर्मा से पहचाने जाते हैं तो कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र में कुर्मी, पटेल, कटियार, निरंजन और सचान कहलाते हैं। अवध और पश्चिमी यूपी के क्षेत्र में कुर्मी समाज के लोग वर्मा, चौधरी और पटेल नाम से जाने जाते हैं। रामपूजन वर्मा, रामस्वरूप वर्मा, बरखू राम वर्मा, बेनी प्रसाद और सोनेलाल पटेल यूपी की राजनीति में कुर्मी समाज के दिग्गज नेता माने जाते थे। पूर्वांचल कुर्मियों के वर्चस्व वाली बेल्ट मानी जाती है। यहां राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से कुर्मियों का ही दबदबा है। मिर्जापुर इस सूची में पहले पायदान पर आता है। इसके बाद प्रतापगढ़, इलाहाबाद, जौनपुर, बनारस, गोंडा, पीलीभीत और राजधानी लखनऊ जैसे क्षेत्रों में कुर्मियों की अच्छी खासी तादाद है। मुलायम सिंह यादव के समय में समाजवादी पार्टी को एकतरफा कुर्मी वोट पड़ते रहे हैं। कद्दावर कुर्मी नेता बेनी प्रसाद वर्मा कभी समाजवादी पार्टी में नंबर दो की भूमिका में होते थे। इस बीच अखिलेश यादव ने २०१७ के चुनावों के पहले गैरयादव ओबीसी को अपने पाले में लाने के प्रयास शुरू किये। इसके चलते ही उन्होंने समाजवादी पार्टी का राज्य अध्यक्ष किसी यादव को बनाने के बजाय कुर्मी नेता नरेश उत्तम पटेल को बनाया।
नरेश उत्तम मूलत: फतेहपुर जिले के लहुरीसराय गांव के रहने वाले हैं। कहा जाता है कि उनके ३० साल के राजनीतिक करियर में उन पर एक भी मुकदमा दर्ज नहीं है। खास बात यह है कि नरेश उत्तम सपा के संस्थापक मंडली के सदस्य भी हैं। नरेश उत्तम १९८९ से १९९१ के बीच मुलायम सिंह की पहली सरकार में वे मंत्री थे। उत्तम की कुर्मी वोटों के साथ पर तगड़ी पकड़ बताई जाती है। नरेश की पकड़ कुर्मी के अलावा अन्य ओबीसी जातियों में भी है। भाजपा ने इसी को ध्यान में रखकर अपना दल की नेता अनुप्रिया पटेल से समझौता किया है। वैसे अपना दल वैचारिक मतभेद के चलते दो भागों में बंट चुका है। अपना दल सोनेलाल की कमान अनुप्रिया पटेल और अपना दल कमेरावादी की कमान कृष्णा पटेल और पल्लवी पटेल के हाथों में है। अपना दल के टुकड़ों में बंटने से कुर्मी वोटरों का रूझान सपा की ओर बढ़ा है। भाजपा भी कुर्मी वोटरों को अपने पाले में लाने की कोशिशों में जुटी है। भाजपा कुर्मी समाज के बुद्धिजीवी सम्मेलन के अलावा जनसंपर्क के द्वारा कुर्मी वोटरों को अपने पाले मे लाने का प्रयास कर रही है, जो शायद ही सफल हो। भाजपा को कुर्मी वोटरों के लिए अपना दल सोनेलाल का ही सहारा है। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, सपा के पीडीए वाला फॉर्मूला पिछड़े वर्गों को आकर्षित कर रहा है। इस बात की संभावना है कि कुर्मी वोटर इस चुनाव में `इंडिया’ गठबंधन के पक्ष में रहकर पीडीए को मजबूत करने का काम करेंगे।

 

 

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