अमर झा
छोटी-मोटी नौकरी कर अपनी मेहनत से मुकाम पाने की उम्मीद लगाकर बैठे राजेश झा की तकदीर मात्र ५०० रुपए में बदल गई। बिहार स्थित दरभंगा जिले के टेकदार गांव के निवासी राजेश झा आज मुंबई में एक सफल व्यवसायी बन गए हैं। गांव से स्नातक की पढ़ाई करने के बाद एक दवा कंपनी में एमआर की नौकरी करनेवाले राजेश के पिता दरभंगा के शिक्षा विभाग में बड़े बाबू के रूप में कार्यरत थे। राजेश का विवाह मुंबई निवासी एक परिवार में हुआ, जो मधुबनी का रहनेवाला था। मुंबई में पली-बढ़ी उनकी पत्नी विवाह के बाद जब गांव आई तो असुविधाओं के कारण उसका वहां रहना कठिन हो गया। अत: पत्नी के कहने पर रोजी-रोटी की तलाश में राजेश सन २००० में मुंबई आ गए। मुंबई आने के बाद राजेश काम की तलाश करने लगे। इसी बीच उन्हें एक दुकान में २,२०० रुपए महीने पर काम मिल गया। कुछ दिनों बाद दुकान का काम छूट गया और उन्होंने रेल टिकट का काम शुरू किया, लेकिन वहां भी वो असफल रहे। इसके बाद अंधेरी स्थित एक कंप्यूटर की दुकान में काम करने लगे। कुछ वर्षों के बाद जब कंप्यूटर की दुकान वाला काम भी छूट गया तब तक राजेश प्रिंटर रिफिलिंग और टोनर का काम सीख चुके थे। काम छूटने के बाद हताश राजेश को एक ग्राहक का फोन आया कि मेरे प्रिंटर का टोनर बदल दो। राजेश ने ग्राहक को बताया कि सेठ ने मुझे काम से हटा दिया है। खैर, ग्राहक ने राजेश को अपने पास ऑफिस बुलाया और ५०० रुपए का नोट देते हुए कहा कि आप मेरा काम कर दो। उस ५०० रुपए के मिलने के बाद राजेश की जिंदगी बदल गई और उन्होंने उसी दिन से अपना खुद का व्यवसाय शुरू कर दिया। अब कंपनी-कंपनी घूम-घूम कर राजेश ने प्रिंटर रिफिलिंग और टोनर बदलने का काम शुरू कर दिया। जब उनका काम बढ़ता गया तो उन्होंने कंप्यूटर और लैपटॉप सर्विस सेंटर खोल दिया। गोरेगांव में कंप्यूटर का व्यवसाय करनेवाले राजेश के पास आज घर और गाड़ी सब कुछ है। भगवान की कृपा से उनकी दोनों बेटियां जॉब में हैं और बेटा पढ़ाई करने के साथ ही क्रिकेटर बनना चाहता है। राजेश झा बताते हैं कि स्ट्रगल के दौरान पत्नी रंजू झा ने उनका भरपूर साथ दिया। पत्नी रंजू का झुकाव हमेशा से समाजसेवा की ओर होने से वो आज प्रदेश स्तर पर राजनीतिक कार्यकर्ता की भूमिका निभा रही हैं। राजेश कहते हैं कि मुंबई आकर मैंने वो सब पाया है, जिसकी कल्पना मेरी पत्नी ने अपने जीवन में की थी।