मुख्यपृष्ठस्तंभनेता जी की पिचकारी ...वादों के रंग जनता बेचारी!

नेता जी की पिचकारी …वादों के रंग जनता बेचारी!

 नीलम चौहान

भाइयों और बहनों, होली आ गई है! रंग, गुलाल, ठंडाई और सबसे जरूरी चीज-नेता जी की पिचकारी! अरे भाई, इस पिचकारी की खासियत ही अलग है। इसमें पानी कम, वादे ज्यादा भरे जाते हैं। जब दबाओ तो रंग नहीं, ‘अगले साल तक सबको नौकरी’, ‘हर गरीब के खाते में १५ लाख’, ‘१०० स्मार्ट सिटी’ और ‘किसानों की आय दोगुनी’ जैसे जुमले बाहर निकलते हैं!
वादों की फुल प्रेशर पिचकारी!
नेता जी की होली आम आदमी से अलग होती है। जनता चाहे सूखी हो, लेकिन इनकी पिचकारी का प्रेशर हमेशा तेज रहता है। किसी ने कहा, ‘नेता जी, इस बार पानी की पिचकारी ला रहे हैं या सिर्फ हवा?’ नेता जी बोले, ‘बिल्कुल लाएंगे! पहले ५ साल तक इसका रोडमैप बनाएंगे, फिर कमेटी गठित करेंगे और फिर २०२९ में लॉन्च कर देंगे!’
हर रंग में ढलने वाली पिचकारी!
नेता जी की पिचकारी भी उनके जैसे ही ‘चतुर’ होती है। जब विपक्ष के नेता पर चलती है तो लाल रंग निकलता है, जब गठबंधन के साथी पर चलती है तो पीला (डर का रंग) और जब जनता पर चलती है तो बस पारदर्शी पानी, यानी कुछ नहीं!
आखिरकार गली के एक बच्चे ने पूछा, ‘नेता जी, आपकी पिचकारी से रंग क्यों नहीं निकलता?’
(तभी पास में खड़े एक सामाजिक कार्यकर्ता ने मुस्कुराते हुए कहा : ‘अरे बेटा, ये नेताजी की पिचकारी है। इसमें रंग नहीं, सिर्फ झूठे वादे भरे होते हैं। छिड़कने के बाद दिखते बहुत हैं, लेकिन लगते किसी को नहीं।’
बच्चा (हैरानी से) : ‘लेकिन पिचकारी का तो काम ही रंग उड़ाना होता है न?’
सामाजिक कार्यकर्ता (हंसते हुए और बच्चे के सिर पर हाथ फेरते हुए) : ‘तुम अभी नहीं समझोगे, बेटा, तुम छोटे हो अभी। जैसे-जैसे बड़े होओगे, समझ जाओगे कि इनकी पिचकारी में रंग सिर्फ चुनावी मौसम में आता है और जैसे ही चुनाव खत्म—पिचकारी सूखी, रंग गायब, और जनता फिर धोखा खाकर बैठी।’
रंग नहीं, करंट मारने वाली पिचकारी!
नेता जी की एक और स्पेशल पिचकारी होती है, ‘ईडी और सीबीआई वाली पिचकारी’। इस पिचकारी से विपक्ष के नेताओं पर सीधे करंट पड़ता है। एक नेताजी ने जैसे ही रंग खेलना शुरू किया, तुरंत सीबीआई की पिचकारी चली और वो सीधे जेल चले गए! दूसरे बोले, ‘भाई, मैं तो गुलाल से खेलूंगा, कहीं तेज धार वाली पिचकारी पड़ गई तो सीधे प्रवर्तन निदेशालय में होली खेलनी पड़ेगी!’
जनता की होली बनाम नेता जी की
५ स्टार होली।
अब आम जनता के लिए होली मतलब महंगाई का दर्द, सिलिंडर के बढ़े दाम और ईएमआई की जलती आग। लेकिन नेता जी की होली ५ स्टार होटल में रंग खेलने के बाद ठंडाई के साथ विदेशी मिठाइयां उड़ाते हुए प्रेस कॉन्प्रâेंस में बोलेंगे, ‘गरीबों के साथ होली खेलने का अलग ही मजा है!’
होली के बाद नेता जी गायब
होली खत्म होते ही नेता जी का रंग भी उड़ जाता है और वो वापस अपने एसी वाले दफ्तर में घुस जाते हैं। जनता अगले साल तक इंतजार करती रहती है कि ‘कब फिर से नेता जी की पिचकारी चालू होगी।’ लेकिन जब तक चुनाव न आए, तब तक उनकी पिचकारी में पानी नहीं, सिर्फ हवा भरी होती है।
चुनावी रंग लगवाना हो तो तैयार रहें
होली बीतने के बाद भी नेता जी की असली होली बची होती है, चुनावी रंग वाली होली। तब ये हर गली, हर मोहल्ले में दौड़-दौड़कर रंग लगाने आएंगे। ‘बच्चा-बच्चा हमारा भाई है।’, ‘बूढ़े-बुजुर्गों की सेवा करेंगे।’, ‘हमने जो कहा, वो किया।’ जैसे नारों के साथ नेता जी खुद को पिचकारी में भरकर जनता के सामने पेश होंगे, लेकिन जैसे ही चुनाव खत्म होगा, पिचकारी का सारा पानी सूख जाएगा, नेता जी वीआईपी लाउंज में बैठ जाएंगे, और जनता फिर से सूखी होली खेलने पर मजबूर हो जाएगी। तो भाइयों और बहनों, इस होली पर असली मजा तभी आएगा जब नेता जी की पिचकारी से सिर्फ रंग निकले, जुमले नहीं! वरना हम हर साल ऐसे ही सूखी होली खेलते रहेंगे और नेता जी रंगों में नहाते रहेंगे। अब चुनाव आए या न आए इस बार जनता भी रंग लगाएगी, पर नेता जी को ताकि वो भी महसूस करें कि होली सिर्फ वादों की पिचकारी से नहीं, असली रंगों से खेली जाती है।

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