मुख्यपृष्ठस्तंभकिस्सों का सबक : ऋण मुक्ति

किस्सों का सबक : ऋण मुक्ति

डॉ. दीनदयाल मुरारका

भावनगर रियासत के दीवान प्रभाकर पट्टनी संत प्रकृति के आदमी थे। रियासत का कामकाज करते हुए भी वह निजी तौर पर अनेक लोगों की मदद करते रहते थे। एक दिन उनके सहायक ने उन्हें बताया कि एक नवनियुक्त न्यायाधीश उनसे मिलना चाहते हैं। तो दीवान ने कहा, न्यायाधीश महोदय को सत्कारपूर्वक मेरे पास ले आओ।
न्यायाधीश के आने पर प्रभाशंकर पट्टनी ने उन्हें आदरपूर्वक अपने पास बैठाया। नाश्ते की उचित व्यवस्था की। यह सब शिष्टाचार निपट जाने पर न्यायाधीश महोदय ने अपनी जेब से रुपयों की एक गड्डी निकाली और दीवान साहब की ओर बढ़ाते हुए बोले, यह १०,००० रुपए आप से लिए गए ऋण के हैं। इन्हें स्वीकार कर आप मुझे ऋण मुक्त करने की कृपा करें। थोड़ा हैरान होते हुए प्रभाशंकर पट्टनी ने कहा, लेकिन मैं तो आपसे पहले कभी नहीं मिला हूं। मैंने भला कब आपको ऋण दे दिया।
तब न्यायाधीश ने जवाब दिया, मैं आपके गांव की एक विधवा का बेटा हूं। मेरी मां ने मेरी पढ़ाई के लिए आपसे कुछ रुपए लिए थे। मरने के पहले उन्होंने मुझे आदेश दिया था कि जब मैं कमाने लायक हो जाऊं। तो आपका धन आपको वापस कर दूं। मैं वही रुपए लौटाने के लिए आया हूं। यह सुनकर दीवान साहब एक पल के लिए मौन हुए। फिर बोले यह तो ठीक है, पर ऋण चुकाने का यह तरीका ठीक नहीं है। आप ऐसा करें इन रुपयों में कुछ और रुपए मिलाकर गरीब छात्रों की मदद करें और फिर उन्हें प्रेरित करें कि वे भी समर्थ होने पर कुछ ऐसे ही लोकोपकारी कार्य करें। लोकसेवा को एक परंपरा के रूप में ढालकर आप ऋण मुक्त हो सकेंगे। वह युवा न्यायधीश, दीवान साहब की सदप्रवृत्ति देखकर श्रद्धा से झुक गया। उन्होंने ठीक वैसा ही किया, जैसा दीवान साहब ने कहा था।

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