मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनाकिस्सों का सबक: ईमानदारी की कमाई

किस्सों का सबक: ईमानदारी की कमाई

डॉ. दीनदयाल मुरारका

संत अबुल अब्बास खुदा में आस्था रखनेवाले व्यक्ति थे। वह टोपियां सिलकर जीवनयापन करते थे। टोपियों की सिलाई में से मिलनेवाली आय में से आधा हिस्सा वह किसी जरूरतमंद को दे देते और आधे से गुजर-बसर करते थे।

एक दिन उनके एक धनी शिष्य ने उनसे पूछा, मैं अपनी कमाई में से कुछ पैसा दान करना चाहता हूं। मैं दान किसे दूं? संत ने कहा, जिसे तुम सुपात्र समझो उसी को दान कर दो। धनी शिष्य ने एक अंधे भिखारी को सोने की एक मोहर दान में दे दी। दूसरे दिन धनी शिष्य फिर उसी रास्ते से गुजरा, उसने देखा अंधा भिखारी दूसरे भिखारी से कह रहा था कल मुझे भीख में सोने की एक मोहर मिली। मैंने खूब मौज-मस्ती करने के साथ शराब पी।

यह सुनकर धनी शिष्य को बुरा लगा। वह संत अब्बास के पास पहुंचा और उन्हें पूरी बात कह सुनाई। संत ने उसे अपनी रकम का एक सिक्का दिया और कहा, इसे किसी याचक को दे देना। धनी शिष्य ने वह सिक्का एक याचक को दे दिया और कुतूहलवश उसके पीछे-पीछे चल दिया। कुछ दूर जाने के बाद याचक एक निर्जन स्थान पर गया और अपने कपड़े में छुपाए हुए एक पक्षी को निकालकर उड़ा दिया। धनी शिष्य ने याचक से पूछा, तुमने इस पक्षी को क्यों उड़ा दिया? याचक बोला, मैं तीन दिन से भूखा था। आज इस पक्षी को मारकर इसका सेवन करता, मगर आपने एक सिक्का दे दिया तो अब इस मासूम की हत्या करने की कोई जरूरत नहीं रही। शिष्य संत के पास गया और पूरा वृतांत सुनाया। तब उन्होंने कहा, तुम्हारा धन गलत निधि से कमाया गया था इसलिए उसका गलत उपयोग हुआ। मेरा पैसा श्रम से कमाया गया था। सो उसने एक व्यक्ति को गलत काम करने से बचा लिया। यह सच है कि मेहनत एवं ईमानदारी से कमाए हुए पैसे का फल भी हमें उत्तम एवं सही मिलता है। महात्मा की बात सुनकर शिष्य उनके सामने नतमस्तक हो गया।

अन्य समाचार