डॉ. दीनदयाल मुरारका
रैकेट बॉल की विश्व चैंपियनशिप का फाइनल मैच चल रहा था। रूबेन गॉनजेलिस फाइनल में खेल रहे थे। उनके प्रतिद्वंद्वी और उनमें कड़ी टक्कर थी। दर्शक सांस रोक के मैच देख रहे थे। अचानक मैच पॉइंट पर रूबेन ने एक बहुत अच्छा शॉट खेला। रेफरी और लाइनमैन दोनों ने शॉट को सही बताया और रूबेन को विजेता घोषित कर दिया।
इस घोषणा के साथ ही चारों ओर तालियां गूंज उठी। लोगों ने रूबेन के नारे लगाने शुरू कर दिए। रूबेन हक्के-बक्के थे। उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक यह क्या हो गया? उन्होंने अपने आपको संभाला और प्रतिद्वंद्वी से हाथ मिलाते हुए बोले मेरा शॉट गलत था। उनके यह कहते ही सब सन्नाटे में आ गए। परिणामस्वरूप, वह सर्विस हार गए और मैच भी। पल में इतना बड़ा निर्णय पलट गया। वहां उपस्थित हर व्यक्ति निर्णय के इस उलटफेर से दंग रह गया। प्रत्येक व्यक्ति रूबेन
गॉनजेलिस के सच से हैरान था। यह कोई सोच भी नहीं सकता था कि एक खिलाड़ी जिसके हाथ में सारी बातें हों। वह हार को सच बोल कर, इस तरह गले लगा लेगा। काफी देर तक इसी के बारे में चर्चा होती रही। माहौल जब थमा तो मीडिया ने पूछा कि जब सब चीजें उनके पक्ष में थीं, तो उन्होंने विश्व चैंपियनशिप की इतनी बड़ी जीत को स्वीकार क्यों नहीं किया? इस पर रूबेन ने सहजता से कहा, ‘अपने जमीर को बनाए रखने के लिए। मेरे पास यही एक रास्ता था। यदि मैं आज ऐसा नहीं करता तो यह जीत मुझे जिंदगी भर तड़पाती रहती इसलिए मैंने मैच गंवाकर सच्चाई को जीतने का पैâसला किया। मैच तो आगे भी जीते जा सकते हैं, किंतु सच एक बार हार गया, तो जीवनभर उबर नहीं सकते।’ आज भी उनकी यह घटना हृदय को झकझोर देती है।