डॉ. दीनदयाल मुरारका
एक नगर में गौतम बुद्ध का प्रवचन चल रहा था। वहां एक व्यक्ति रोज आता और बड़े ध्यान से उनकी बातें सुनता था। बुद्ध अपने प्रवचन में लोभ, मोह, ईर्ष्या और अहंकार छोड़ने की बात करते थे। एक दिन वह व्यक्ति बुद्ध के पास आकर बोला- मैं लगभग एक महीने से आपका प्रवचन सुन रहा हूं, परंतु मेरे ऊपर उनका कोई असर नहीं हो रहा है। इसका क्या कारण है? क्या मुझ में कोई कमी है?
गौतम बुद्ध ने मुस्कुराते हुए पूछा- अच्छा यह बताओ, तुम कहां के रहनेवाले हो? उस व्यक्ति ने कहा- श्रावस्ती। बुद्ध ने पूछा- श्रावस्ती यहां से कितनी दूर है? उसने दूरी बताई। बुद्ध ने पूछा- तुम वहां वैâसे जाते हो? व्यक्ति ने कहा- कभी घोड़े तो कभी बैलगाड़ी पर बैठकर जाता हूं। बुद्ध ने कहा- अब यह बताओ क्या तुम यहां बैठे-बैठे ही श्रावस्ती पहुंच सकते हो? व्यक्ति ने आश्चर्य से कहा- यहां बैठे-बैठे भला वहां वैâसे पहुंचा जा सकता है? इसके लिए तो चलना या किसी वाहन का सहारा लेना पड़ेगा। बुद्ध बोले- तुमने सही कहा चलकर ही लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है। इसी तरह बातों का प्रभाव भी तभी पड़ता है। जब उन्हें जीवन में उतारा जाए। उसके अनुसार अपना आचरण किया जाए। कोई भी ज्ञान तभी सार्थक है, जब उसे व्यवहारिक जीवन में उतारा जाए। मात्र प्रवचन सुनने या अध्ययन करने से कुछ भी प्राप्त नहीं होता। उस व्यक्ति ने कहा- मुझे अपनी भूल का एहसास हो गया है। मैं आपके बताए मार्ग को सिर्फ सुनूंगा ही नहीं, बल्कि उस पर चलूंगा भी। सत्संग में ज्ञान की बातें सिर्फ सुनने से ही काम नहीं होता वरन उस पर आचरण भी करना चाहिए। हम लोग अधिकतर अच्छी एवं ज्ञान की बातें सुनते हैं। किंतु उसे अमल में नहीं लाते। ज्ञान को अमल में लाना बहुत जरूरी है।