मुख्यपृष्ठस्तंभकिस्सों का सबक : बेकसूर को बचाना

किस्सों का सबक : बेकसूर को बचाना

डॉ. दीनदयाल मुरारका
बहुत पहले गुजरात में एक प्रसिद्ध वकील थे। एक बार वह किसी व्यक्ति का मुकदमा लड़ रहे थे। इसी बीच गांव में उनकी पत्नी बहुत बीमार हो गई। उनके पास खबर भिजवाई गई। तो वे तुरंत अपने गांव चल दिए। पत्नी की सेवा करने गांव पहुंचे ही थे कि उन्हीं दिनों उनके मुकदमे की तारीख पड़ गई। एक तरफ उनकी पत्नी का खराब स्वास्थ्य था तो दूसरी ओर उनका मुकदमा?
उन्हें असमंजस में पड़ा देखकर पत्नी ने कहा, ‘आप मेरी चिंता बिल्कुल न करें। आप मुकदमा लड़ने के लिए शहर जरूर चले जाएं। आपके वहां न रहने पर कहीं किसी बेकसूर को सजा न हो जाए।’ वकील साहब दुखी मन से शहर पहुंचे।
एक दिन वह कोर्ट में अपने मुवक्किल के पक्ष में जिरह करने खड़े हुए थे कि किसी ने उनको एक टेलीग्राम लाकर दिया। उन्होंने टेलीग्राम पढ़कर अपनी जेब में रख लिया और अपनी बात जारी रखी। अपने सबूतों के आधार पर उन्होंने अपने मुवक्किल को निर्दोष साबित करवा दिया। मुकदमे के बाद मुवक्किल ने वकील से टेलीग्राम के बारे में पूछा। तो वकील ने प्राप्त टेलीग्राम दिखाया, जिसे देखकर सभी लोग अवाक रह गए। उसमें उनकी पत्नी की मृत्यु का दुखद समाचार था। लोगों ने कहा, ‘आप अपनी बीमार पत्नी को छोड़कर मुकदमा लड़ने वैâसे आ गए?’ वकील साहब बोले, ‘आया तो उसी के आदेश से था। वह जानती थी कि बेकसूर को बचाना सबसे बड़ा धर्म होता है।’ वह वकील साहब कोई और नहीं सरदार वल्लभ भाई पटेल थे, जो अपनी कर्तव्य परायणता के कारण लौह पुरुष कहलाए। जीवन में हमें अपने कर्तव्यों को सबसे ज्यादा महत्व देना चाहिए।

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