डॉ. दीनदयाल मुरारका
एक शहर में मैरी नामक एक मृदभाषी और सेवाभावी नर्स थी। किंतु कुछ जातिवादी एवं संकीर्ण विचारधारा के लोग उसके वैâथोलिक होने के कारण उससे घृणा करते थे। राह चलते हुए उसे परेशान करते थे। कोई उसे पत्थर मारता तो कोई गलत शब्दों से संबोधित करता। किंतु मैरी इस ओर कभी ध्यान नहीं देती और अपने सेवा कार्य में लगी रहती।
एक दिन मैरी हॉस्पिटल जा रही थी। तभी एक युवक ने अपशब्द कहते हुए एक बड़ा सा पत्थर उसके ऊपर फेंका। पत्थर का सिर फट गया और रक्त से मैरी के कपड़े भीग गए। किंतु मैरी चुपचाप अस्पताल चली गई। कुछ दिनों बाद उस नगर में स्थित कोयला खान में विस्फोट हो गया। विस्फोट में घायल हुए मजदूरों को जब अस्पताल लाया गया तो मैरी ने उनकी बहुत सेवा की। इनमें से कई वे लोग थे जो मैरी का अपमान करते थे। मैरी ने उनके प्रति कोई बदले की भावना नहीं रखी। अब वे मैरी का सेवाभाव देखकर नतमस्तक हो गए और उन्हें अपने किए पर पछतावा हो रहा था।
इन्हीं में वह युवक भी था, जिसने मैरी को पत्थर मारा था। एक दिन युवक मैरी के सामने रो दिया। जब मैरी ने कारण पूछा तो वह बोला, शायद आपने मुझे नहीं पहचाना दीदी, मैं वही हूं, जिसने आप पर पत्थर फेंका था। मैरी ने स्नेह भरे शब्दों में कहा, मेरे भाई, जब तुम यहां लाए गए थे, उसी समय मैंने तुम्हें पहचान लिया था। युवक ने आश्चर्य से पूछा फिर आपने मेरी इतनी सेवा क्यों की? मैरी उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली, क्योंकि मैं तुम में अपना भाई देखती हूं। युवक मैरी का जवाब सुनकर उसके पैरों में झुक गया और सदा के लिए उसका भाई बन गया। वास्तव में शोषित व्यक्ति द्वारा क्षमा करने से अपराधी मनुष्य को अपने द्वारा किए गए गलत कार्यों का प्रायश्चित होता है और वह एक अच्छे आदमी के रूप में तब्दील हो जाता है।