डॉ. दीनदयाल मुरारका
एक स्कूल में जब खेल की कक्षा शुरू हुई तो एक दुबली-पतली लड़की किसी तरह अपनी जगह से उठी और शिक्षक से ओलंपिक रिकॉर्ड्स के बारे में सवाल पूछने लगी। इस पर सभी छात्र हंस पड़े। शिक्षक ने व्यंग्य किया- ‘तुम खेलों के बारे में जानकर क्या करोगी? तुम स्वयं बहुत दुबली-पतली एवं कमजोर हो। इन खेलों में खेलना एवं ओलंपिक तक जाना तुम्हारा काम नहीं है। अभी तो तुम ठीक से खड़ी भी नहीं हो सकती। फिर ओलंपिक खेलों से तुम्हारा क्या मतलब? तुम्हें कौन सा उन खेलों में भाग लेना है, जो यह सब जानना चाहती हो।’ उदास लड़की कुछ भी नहीं कह सकी। सारी क्लास उस पर देर तक हंसती रही। अगले दिन जब खेल पीरियड में उसे बाकी बच्चों से अलग बिठाया गया तो उसने कुछ सोचकर बैसाखियां संभाली और दृढ़ निश्चय के साथ बोली, ‘सर, याद रखिएगा अगर लगन सच्ची और इरादे बुलंद हों तो सब कुछ संभव है। आप देख लेना एक दिन यही लड़की सारी दुनिया को हवा से बात करके दिखाएगी। उसकी इस बात पर भी सभी ने ठहाका लगाया। उस वक्त सबने इसे मजाक के रूप में लिया। लेकिन वह लड़की तेज चलने के अभ्यास में जुट गई। वह अच्छी और पौष्टिक खुराक लेने लगी। उसे अपने घर से खेलों की प्रैक्टिस करने के लिए भी भरपूर सहयोग मिला फिर वह कुछ दिनों में दौड़ने लगी। कुछ दिनों बाद उसने छोटी-मोटी दौड़ में भाग लेना शुरू कर दिया। उसे दौड़ते देख लोग उसकी मदद के लिए आगे आए और सबने उसका उत्साह बढ़ाया। उसके हौसले बुलंद होने लगे फिर उसने १९६० के ओलंपिक में हिस्सा लिया और तीन स्वर्ण पदक जीतकर उसने सबको आश्चर्यचकित कर दिया। ओलंपिक में इतिहास रचनेवाली वह लड़की कोई और नहीं अमेरिका की प्रसिद्ध धाविका विल्मा रूडोल्फ थीं, जिन्होंने बचपन में अपने कमजोर शरीर के बावजूद खेल की दुनिया में देश का नाम पूरे विश्व में ऊंचा किया।