मुख्यपृष्ठस्तंभकिस्सों का सबक : स्वावलंबी महात्मा गांधी

किस्सों का सबक : स्वावलंबी महात्मा गांधी

डॉ. दीनदयाल मुरारका
महात्मा गांधी, गोपाल कृष्ण गोखले को अपना गुरु मानते थे। वे उनके प्रति पूर्ण रूप से समर्पित थे। उनके द्वारा दिए गए किसी भी आदेश का पालन करना उनकी दिनचर्या में शामिल था। एक समय की बात है, गोखले दक्षिण अप्रâीका में गांधीजी के पास कुछ दिनों के लिए रुके। एक दिन उन्हें किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति से मिलने जाना था। मीटिंग में जाने के लिए तैयार होते समय उन्होंने अपने सामान में से एक शॉल निकाली। उन्होंने देखा कि उनकी शॉल एक दो जगह पर मुड़ने के कारण सलवटों में भर गई थी। शाल देखकर वे चिंतित हो उठे। उनके पास अब इतना समय भी नहीं था कि वे उसे धोबी से ठीक करा पाते। उन्होंने गांधीजी को अपनी समस्या बताई। गांधीजी को अपने धोबी-ज्ञान प्रदर्शन करने का यह अच्छा अवसर लगा। उन्होंने अपनी सेवा देने की पेशकश की लेकिन गोखले भी गुरु ही थे। उन्होंने कहा, ‘मैं वकील के रूप में तुम्हारी काबिलियत पर भरोसा कर सकता हूं। लेकिन धोबी के रूप में नहीं। तुमने अगर इसे खराब कर दिया तो? यह शॉल मुझे मेरे गुरु रानाडे जी ने दिया है और इस हिसाब से मेरे लिए यह बेशकीमती है। यह मेरे पास मेरे गुरु द्वारा दी गई निशानी है। अत: इस शॉल पर मैं कोई प्रयोग करने के लिए राजी नहीं हूं।’ किंतु गांधीजी के बार-बार आग्रह करने पर उन्होंने गांधीजी को शॉल इस्त्री करने के लिए दे दी। गांधीजी ने शॉल को अच्छे ढंग से इस्त्री कर तुरंत वापस ला दिया। गोखले शॉल देखकर खुश हो गए। अपने गुरु को खुश देखकर गांधीजी की भी खुशी का पारावार न रहा। इस स्वालंबन की आदत के कारण उन्हें कई बार अपने मित्रों के बीच हंसी का पात्र भी बनना पड़ता था। बाद में विवाह होने पर पत्नी कस्तूरबा को भी अपने इस कौशल से उन्होंने प्रभावित किया।

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