मुख्यपृष्ठस्तंभकिस्सों का सबक : धर्माचार्य योगी महाराज

किस्सों का सबक : धर्माचार्य योगी महाराज

डॉ. दीनदयाल मुरारका

एक समय कौशल नामक छात्र ने नालंदा विश्वविद्यालय में अपने अध्ययन से धर्म शास्त्रों में विशेष योग्यता हासिल की थी। मगर उसे अपने ज्ञान पर अभिमान होने लगा था। नालंदा छोड़ते समय कौशल ने अपने गुरु से कहा, ‘गुरुदेव आपने जो भी ज्ञान मुझे दिया है, मैंने उसे श्रद्धापूर्वक ग्रहण किया है। किंतु मेरी ज्ञान-प्राप्ति की इच्छा अभी शांत नहीं हुई है। मैं और अधिक ज्ञान प्राप्त करना चाहता हूं।’ उसके गुरु ने उसे पाटलिपुत्र के धर्माचार्य योगी महाराज के आश्रम में जाने को कहा। धर्माचार्य ने जब कौशल से उसके आने का प्रयोजन पूछा? तो उसने कहा, ‘गुरुदेव, मैं नालंदा से आपके पास और अधिक ज्ञान प्राप्त करने आया हूं। कृपया मुझे अपने शिष्य के रूप में स्वीकार कर लें।’

धर्माचार्य ने कौशल से उसके अध्ययन के बारे में पूछताछ की, तो कौशल ने कहा, ‘मुझे लगभग हर तरह का ज्ञान प्राप्त है। मैंने सभी धर्म ग्रंथों का कई बार अध्ययन किया है। मैंने धर्मों की चर्चा में अच्छे-अच्छे विद्वानों को पराजित किया है।’ बातचीत के बाद धर्माचार्य ने अपने सहायक को गर्म दूध लाने के लिए कहा।

सहायक एक पात्र में दूध तथा दो खाली प्याला ले आया। धर्माचार्य एक प्याले में दूध डालने लगे। दूध का प्याला भर गया, पर उन्होंने दूध डालना बंद नहीं किया। दूध छलक कर प्याले से बाहर गिरने लगा। धर्माचार्य तब भी दूध डालते रहे। कौशल ने हैरत से यह देखा और कहा, ‘गुरुदेव आप क्या कर रहे हैं? दूध का प्याला तो भर चुका है। अब इसमें और दूध नहीं आ पाएगा।’ कौशल की बात सुनकर धर्माचार्य ने प्याले में दूध डालना बंद कर दिया।

फिर वे मुस्कुराकर कौशल से बोले, ‘वत्स, जिस प्रकार दूध भरने के लिए खाली प्याला चाहिए, उसी तरह ज्ञान ग्रहण करने के लिए भी खुला मन होना आवश्यक है। मन में ग्रहण क्षमता होनी चाहिए। अपना मन किसी पूर्वाग्रह से भरा हुआ नहीं होना चाहिए। तुमने अपने ज्ञान के बारे में, मन में अनेक विचार एवं पूर्वाग्रह भर रखे हैं। ऐसे में, मेरा दिया हुआ अतिरिक्त ज्ञान कहां समाएगा?’ कौशल का सारा अभिमान चूर-चूर हो गया। वह गुरु द्वारा दी गई पहली ही शिक्षा के सामने नतमस्तक हो गया।

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