डॉ. दीनदयाल मुरारका
डॉक्टर नॉर्मन को युवा अवस्था में एक बड़ी समस्या का सामना करना पड़ा, जिससे वे बहुत तनावग्रस्त हो गए। एक दिन उनके किसी दोस्त ने बताया कि अमुक व्यक्ति उनकी समस्या को सुलझा सकता है। डॉ. नॉर्मन उस व्यक्ति के पास पहुंचे और बोले, मेरी समस्या किसी तरह सुलझती ही नहीं। यह सुनते ही वह सज्जन व्यक्ति बोले, अरे वाह, आपके पास एक समस्या है बधाई हो। यह सुनकर नॉर्मन अपने गुस्से को दबाते हुए वह बोले, बधाई किसलिए? आपको तो मुझसे सहानुभूति होनी चाहिए कि मैं बेहद परेशान हूं। वह व्यक्ति बोले, सहानुभूति क्यों भाई? यह तो सचमुच बधाई वाली बात है। इस समस्या से कोई बड़ी अद्भुत चीज निकलकर आपके जीवन में आनेवाली है। यह सुनकर नॉर्मन सोच में पड़ गए। कोई व्यक्ति समस्या को इस तरह से भी देखता है। उनका मूड बदल गया था। अब उन्होंने इत्मीनान से अपनी समस्या उन्हें बताई। धैर्यपूर्वक उनकी बात पूरी सुनने के बाद वह सज्जन फिर मुस्कुरा कर बोले, इससे मत डरिए। ध्यान दीजिए, आपकी ओर देखकर आपकी समस्या आपको लुकाछिपी खेलने के लिए बुला रही है। इसमें कोई दिलचस्प चीज छिपी है। मजा इसमें है कि आप इसे खोज लें। इसके बाद वह बोले, हर समस्या की एक कमजोर जगह होती है, उसे ढूंढ लें। तो फिर समस्या तो हल होती ही है, इसके साथ ही वह अद्भुत सफलता और नए मार्गों का निर्माण भी करती है। नॉर्मन ने उनकी यह बात गांठ बांध ली। उन्हीं नॉर्मन को आगे चलकर पूरी दुनिया ने महान मोटीवेटर के रूप में जाना। उन्होंने पचास से ज्यादा पुस्तकें लिखी हैं। उनकी पुस्तकें लोगों को समस्याओं का स्वागत करना सिखाती हैं। यह बात हो रही है, डॉ. नॉर्मन विंसेंट पील की, जिन्होंने १९९३ में ९५ वर्ष की उम्र में अपने देहांत से पहले अपनी बेस्टसेलर पुस्तकों के जरिए इस दुनिया को समस्याओं से जूझने की मजेदार राह दिखाई।