डॉ. दीनदयाल मुरारका
कार्ल लीनियस पौधों के वर्गीकरण एवं नवीन नामकरण की पद्धति के जनक माने जाते हैं। उनका जीवन बड़े उतार-चढ़ाव से भरा हुआ था। अपने युवा काल में वे एक जाने-माने डॉ. विलियम की पुत्री से विवाह करना चाहते थे। उन्होंने उस विवाह के लिए डॉक्टर के पास प्रस्ताव भेजा। लेकिन डॉक्टर की पुत्री मेरियस ने यह प्रस्ताव इसलिए ठुकरा दिया क्योंकि कार्ल लीनियस न तो कोई नौकरी या व्यवसाय करते थे, न ही उन्होंने कोई उपाधि प्राप्त की थी। कार्ल लीनियस ने यह चुनौती सहर्ष स्वीकार कर ली। कार्ल लीनियस ने अपनी छिपी हुई वैज्ञानिक प्रतिभा को जागृत एवं विकसित करने के लिए प्रयास आरंभ कर दिया। उन्होंने प्रकृति एवं पेड़-पौधों के अध्ययन में विशेष रुचि ली। उन्होंने एक विश्वविद्यालय में पढ़ाई शुरू की। उनके पास धन की बहुत कमी थी। यहां तक कि मोमबत्ती खरीदने के लिए भी उनके पास पैसे नहीं होते थे। वे विद्यार्थी जीवन में सड़क पर लगे लैंप पोस्ट की रोशनी में पढ़ते थे। उनका पूरा विद्यार्थी जीवन बड़े आर्थिक अभाव में गुजरा। पेड़-पौधों के वर्गीकरण में रुचि ने उनका एक वनस्पति वैज्ञानिक से संपर्क करा दिया, जो उनके संग्रह से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने कार्ल लीनियस की मदद करने की ठानी। कार्ल को अपना कार्य आगे बढ़ाने का अवसर मिला। अंतत: कार्ल लीनियस ने जीव विज्ञान में प्रसिद्ध द्विनाम पद्धति को खोज निकाला तथा चिकित्सा विज्ञान में भी उपाधि प्राप्त की। विश्व में ख्याति, सराहना एवं सम्मान के साथ उन्हें एक अच्छा वेतन एवं पद भी मिला। फिर डॉक्टर ने उन्हें स्वीडन आमंत्रित करके अपनी पुत्री मेरियस का विवाह उनके साथ करा दिया। कार्ल लीनियस द्वारा किए गए पेड़-पौधों के वर्गीकरण, नामकरण की पद्धति को जीव विज्ञान में आधार मानकर अभी भी उस पद्धति का अनुसरण होता है। उनके द्वारा खोजे गए इस अनुसंधान का जीव विज्ञान में आज भी बहुत महत्व है।