डॉ. दीनदयाल मुरारका
एक बार समुद्र में भयंकर तूफान आया। पानी की लहरें बहुत ऊंची उठने लगीं। उस समय समुद्र में जो भी नाव चल रही थीं वे सभी बुरी तरह से डगमगाने लगीं। लहरों का पानी इतना भयंकर था कि वह नावों को निगल जाना चाहता था। बार-बार पानी नावों की दीवारों से टकराता और भीतर की ओर छलक जाता। धीरे-धीरे तूफान की गति और तेज होने लगी। लेकिन उस नाव में एक व्यक्ति ऐसा भी था, जो सभी बाहरी खतरों से बेखबर एक कोने में निश्चिंत होकर सोया हुआ था। तूफान तेज हुआ तो उसके साथियों ने उसे जगाया। जागने के बाद उसने ध्यान से तूफान का मुआयना किया और अपने साथियों से बोला, ‘आखिर इसमें डरने की क्या बात है? तूफान तो आते ही रहते हैं। नावें डूबी जाती हैं और मनुष्य भी इसमें मरते ही हैं। इन सबमें ऐसी नई बात क्या है? जो आप लोग इतना घबरा रहे हो।’ उसकी बात सुनकर सभी अवाक रह गए। वह व्यक्ति फिर बोला, ‘विश्वास की शक्ति तूफान से बहुत बड़ी होती है। तुम विश्वास क्यों नहीं करते कि यह तूफान कुछ देर बाद शांत हो जाएगा।’ यात्रियों के उत्तर की प्रतीक्षा किए बगैर उस अलमस्त व्यक्ति ने अपनी आंखें बंद कर लीं और सो गया। कुछ देर बाद सचमुच तूफान रुक गया। नाव शांत हो गई तो यात्रियों ने चैन की सांस ली। अब सभी यात्रियों ने उस अलमस्त सो रहे व्यक्ति की ओर देखा। तो वह व्यक्ति और कोई नहीं जीसस क्राइस्ट थे। जब वह व्यक्ति उठा तो उसने अपने साथी यात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, ‘दोस्तों, विश्वास बहुत बड़ी चीज है। तुमने गलती यह की कि तूफान को विश्वास से भी बड़ा मान लिया। आज के बाद दोबारा कभी भी तूफानों में फंसों तो अपने विश्वास का आसरा लो। तुम्हें कुछ नहीं होगा। यही बात जीवन में आनेवाले सभी संकटों पर लागू होती है। किसी भी परिस्थिति में अपना विश्वास न खोएं, हमारी जीत जरूर होगी।’