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जल के लिए कहीं छिड़ न जाए जंग! …मुंबई में भविष्य में गहराएगा जलसंकट

• पानी के लिए जूझ रहे लाखों लोग
विनय यादव / मुंबई
जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण अनमोल पानी का संकट गहराता जा रहा है। इससे देश की आर्थिक राजधानी मुंबई भी अछूती नहीं रही है। अपने आस-पास की झीलों के पानी पर पूरी तरह से निर्भर मुंबई में भविष्य में जलसंकट गहराने के आसार हैं। इससे संभावना जताई जा रही है कि आगामी दिनों में पानी को लेकर जंग छिड़ सकती है।
मुंबई की जनसंख्या लगातार बढ़ रही है।‌ शहर में गगनचुंबी इमारतें, पंचसितारा होटलों, हाई प्रोफाइल सोसाइटियों और बस्तियों में पानी की मांग बढ़ती जा रही है। कई आवासीय इलाकों में पर्याप्त पानी की आपूर्ति नहीं होती है। लाखों लोग पानी के लिए जूझ रहे हैं और पानी के टैंकर पर निर्भर हैं। पानी की मांग और आपूर्ति दोनों संतुलन दिन-ब-दिन बिगड़ता जा रहा है। मुंबई मनपा शहर को प्रतिदिन ४,२०० मिलियन लीटर पानी की आवश्यकता होने के बावजूद केवल ३,८५० मिलियन लीटर प्रतिदिन की आपूर्ति करती है। इलाकों में बोरवेल से पानी खींचकर लगभग २ हजार टैंकरों से पानी पहुंचाया जाता है। पानी को लेकर विवाद होने की घटनाएं आए दिनों होती रहती हैं। साथ ही जिन झीलों से मुंबई को जलापूर्ति होती है, उसके आस-पास के लोग पानी के अधिकार को लेकर आवाज उठाते रहे हैं। यदि भविष्य में जलसंकट बढ़ता है तो यह संघर्ष और बढ़ने की संभावना है।
रोजाना ८०० मिलियन लीटर पानी बर्बाद
वर्तमान में मुंबई में प्रतिदिन ३,८५० मिलियन लीटर पानी की आपूर्ति होती है। इसमें से २७ प्रतिशत यानी लगभग ८०० मिलियन लीटर पानी रिसाव व चोरी के कारण बर्बाद हो जाता है। पिछले तीन वर्षों पर गौर करें तो वर्ष २०२१ में ५७, ९५३ मिलियन लीटर, वर्ष २०२२ में ६,३०,५६२ मिलियन लीटर और वर्ष २०२३ में ५,८८,३८९ मिलियन लीटर पानी का भंडारण हुआ था। मौजूदा समय में मुंबई को जलापूर्ति करने वाली झीलें भातसा में २,८३,३७, अपर वैतरणा में १,३७१४, मोडक सागर में ४४,००४, मध्य वैतरणा में ३१,७००, तानसा में ७४,७८२, विहार में १३,६४५ और तुलसी झील में ४,२०८ मिलियन लीटर जल भंडारण उपलब्ध है।
खर्चा ज्यादा आमदनी कम
मुंबई की आबादी डेढ़ करोड़ के आस-पास पहुंच गई है। मुंबईकरों की प्यास बुझाने के लिए रोजाना मुंबई से १२० किलोमीटर दूर से पानी लाया जाता है। सालभर के लिए इन सातों झीलों में १४ लाख ४७ हजार ३६३ मिलियन लीटर पानी की आवश्यकता होती है। मुंबईकरों को शुद्ध पानी उपलब्ध कराने के लिए एक हजार लीटर पानी शुद्ध कराने पर मुंबई मनपा २० रुपए खर्च करती है। बस्तियों में ४.७६ रुपए और बिल्डिंगों में ५.२८ रुपए प्रति हजार लीटर की दर से जलापूर्ति करती है।
जलसंकट की वजह
भू-वैज्ञानिकों और मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण बरसाती जल की कमी उन क्षेत्रों में बढ़ेगी, जहां वर्तमान में यह प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। मुंबई को लंबे समय में ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से पानी से संबंधित दो विपरीत प्रभावों की संभावना है। पहला महानगर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अगले तीन दशकों में समुद्र में समा जाने का खतरा मंडरा रहा है। दूसरा कुछ वर्षों में कम वर्षा होगी। यह संभव है कि मुंबई को डे जीरो परिदृश्य का सामना करना पड़े, जिसने दुनियाभर में अन्य प्लेटों को प्रभावित किया है। मौसम वैज्ञानिकों ने प्रशांत महासागर में अल नीनो घटना की संभावना के कारण महाराष्ट्र में मानसून प्रभावित होने की चिंता व्यक्त की है।‌ बारिश कम होने पर राज्य में सूखे जैसी स्थिति निर्माण हो सकती है। यदि ऐसा होता है तो मुंबईकरों को पानी की कटौती और टैंकर के पानी की ज्यादा कीमत चुकाने जैसी स्थिति का सामना करना पड़ सकता है।‌
वैकल्पिक स्रोतों की आवश्यकता
एक सदी पहले, मुंबई में कई जल स्रोत थे। शहर में कई कुएं (बावड़ी) और छोटे-छोटे तालाब थे, जो पट चुके हैं।‌ मुंबई मनपा ने सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और कुवैत जैसे देशों की तर्ज पर मुंबई के पश्चिमी उपनगर मनोरी में समुद्र के खारे पानी को मीठा बनाने वाला प्लांट लगाने की योजना बनाई है। बहरहाल, यह योजना कब साकार होगी? कहा नहीं जा सकता। मुंबई को दीर्घकालिक योजना और जल आपूर्ति के वैकल्पिक स्रोतों के साथ पानी बचाने पर बल देने की आवश्यकता है।
दुनियाभर में बढ़ रहा संकट
हाल में आई संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की `संयुक्त राष्ट्र वर्ल्ड वाटर डेवलपमेंट’ रिपोर्ट ने दुनिया को चौंकाया है।‌ रिपोर्ट के मुताबिक, शहरी इलाकों में पानी की मांग सबसे ज्यादा बढ़ रही है और लोगों के पास पीने के लिए शुद्ध जल नहीं है। पिछले ४० वर्षों में विश्वस्तर पर पानी का इस्तेमाल लगभग एक प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रहा है। जनसंख्या वृद्धि, सामाजिक-आर्थिक विकास और बदलते खपत पैटर्न के कारण इसके साल २०५० तक इसी दर से बढ़ने की संभावना है।

ठाणे में रोजाना १२ एमएलडी पानी का इस्तेमाल
ठाणे सहित नई मुंबई, कल्याण, डोंबिवली, उल्हासनगर, भिवंडी, मीरा-भायंदर शहर, शहापुर, अंबरनाथ, मुरबाड शहर बांधों, नदियों और झीलों के जल स्रोतों पर निर्भर हैं। इन शहरों में रोजाना १२ लाख पानी की खपत होती है। पर्यावरण संरक्षण और जल संरक्षण की उपेक्षा की जा रही है, जबकि जल स्रोत कम होते जा रहे हैं। शहरों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्र प्यासे हैं, जहां प्रत्येक व्यक्ति को १० लीटर पानी मिलता है। दूर-दराज के इलाकों में ९७ गांव, २८९ पाड़ा जल अभाव से जूझ रहे हैं।

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