मुख्यपृष्ठस्तंभलिटरेचर प्वाइंट : कौशल विकास के साथ आत्मविश्वास भी जरूरी

लिटरेचर प्वाइंट : कौशल विकास के साथ आत्मविश्वास भी जरूरी

रासबिहारी पांडेय

अधिकांश विद्यार्थी प्रारंभ से अपने कौशल को नहीं पहचान पाते और बी.ए.,एम. ए. की डिग्री लेने के बाद इस ऊहापोह में पड़ जाते हैं कि उन्हें अब क्या करना चाहिए? युवा इस दुविधा में न प़ड़ें, प्रारंभ से ही अपने कौशल को पहचानें और उसके विकास के प्रति उनमें जागरूकता आए, इस उद्देश्य से यूनेस्को ने १५ जुलाई को `विश्व युवा कौशल दिवस’ के रूप में चिह्नित किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जुलाई २०१५ में कौशल भारत अभियान की शुरुआत की। इसके तहत भारत में ४० करोड़ से अधिक लोगों को विभिन्न कार्यों में प्रशिक्षित करने का उद्देश्य रखा गया है। मोदी जी ने युवाओं को यह संदेश दिया है कि वे फ्यूचर स्किल्स के लिए तैयार रहें और दुनिया में जो कुछ हो रहा है, उससे स्वयं को जोड़ने का प्रयत्न करें।
`कौशल भारत’ के अंतर्गत जो युवक बेरोजगार हैं, स्कूल या कॉलेज छोड़ चुके हैं, सभी को वैल्यू एडिशन दिया जाता है। इस मंत्रालय से एक प्रमाण पत्र जारी किया जाता है, जिसे विदेशी संगठनों सहित सभी सार्वजनिक एवं निजी संस्थानों द्वारा मान्यता दी जाती है। योजना को गति देने के लिए तीन अन्य संस्थानों द्वारा समर्थित किया गया है-राष्ट्रीय कौशल विकास एजेंसी , राष्ट्रीय कौशल विकास निगम एवं प्रशिक्षण महानिदेशालय. पहले लक्ष्य को पूरा करने की जिम्मेदारी विभिन्न मंत्रालयों में विभाजित की जाती थी किंतु अब ये एक-दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं। कौशल विकास और इंटरप्रेन्योर्शिप मंत्रालय मुख्य मंत्रालय है, जो अन्य मंत्रालयों एवं संस्थानों के साथ समन्वय बना रहा है। युवाओं के लिए यह एक स्वर्णिम अवसर है। प्रशिक्षित होकर युवा बेहतर अवसरों की तलाश कर सकें, इसके लिए भारत सरकार न सिर्फ नि:शुल्क प्रशिक्षण दे रही है बल्कि कौशल भारत अभियान के तहत प्रशिक्षत युवाओं को बैंकों से ऋण देने की भी व्यवस्था है। पहले परंपरागत नौकरियों पर जोर दिया जाता था किंतु इस योजना के तहत सभी प्रकार की नौकरियों के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। डॉक्टर, इंजीनियर बनानेवाले कोचिंग हब के रूप में प्रतिष्ठित कोटा शहर से हर वर्ष कुछ छात्रों के आत्महत्या की खबरें आती हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कुछ छात्रों के माता-पिता उन्हें मनचाहे क्षेत्र में नहीं जाने देते और उनकी इच्छा के विरुद्ध डॉक्टर, इंजीनियर, मैनेजमेंट आदि कोर्स की तैयारी के लिए बाध्य करते हैं। कहा गया है- मन के हारे हार है, मन के जीते जीत… जो छात्र शुरुआती दौर में ही हतोत्साहित हो जाते हैं, वे अवसाद का शिकार हो जाते हैं या नादानी में आत्महत्या तक कर लेते हैं। हमें अपनी शिक्षा प्रणाली में छात्रों को रोजगारपरक शिक्षा देने के साथ-साथ व्यावहारिक जीवन में हताशा निराशा और असफलता से कैसे लड़ें, हमारा आत्मविश्वास डगमगाए तो उसे पुन: कैसे प्राप्त करें? इससे संबंधित एक पाठ भी रखना ही चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ कवि व साहित्यकार हैं।)

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