रासबिहारी पांडेय
सीता के रूप में आदिशक्ति जगदंबा ही अवतरित हुई थीं, इसलिए उनकी प्राकट्य तिथि सीता नवमी को भी रामनवमी के समान ही भक्तजन प्रेम और उल्लास के साथ मनाते हैं।
गोस्वामी तुलसीदास रामचरितमानस के मंगलाचरण में जगत जननी सीता की वंदना करते हुए कहते हैं-
उद्भव स्थिति संहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं राम वल्लभाम् ।।
जो सारे संसार की उत्पत्ति, पालन और संहार करनेवाली हैं, अपने भक्तों के विघ्न और क्लेश को हरने वाली हैं, संपूर्ण कल्याणों को करनेवाली हैं, उन भगवान श्री रामचंद्र की पत्नी सीता को हम प्रणाम करते हैं।
पुष्पवाटिका में जानकी की अनुपम शोभा का वर्णन करते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम राम, लक्ष्मण से कहते हैं-
सुंदरता कहुं सुंदर करई।
छवि गृह दीपसिखा जनु बरई।।
सब उपमा कबि रहे जुठारी।
केहि पटतरौं विदेह कुमारी।
जानकी जी की शोभा सुंदरता को भी सुंदर करनेवाली है। वह ऐसी दिखती हैं मानो सुंदरता रूपी घर में दीपक की लौ जल रही है। सारी उपमाओं को कवियों ने जूठा कर रखा है, मैं जनक नंदिनी की उपमा किससे दूं?
किंतु गोस्वामी तुलसीदास सीता के लिए उपमा ढूंढ़ लेते हैं। उन्होंने उनके रूप को अपने कवित्व से एक अभिनव दृष्टि देने की कोशिश की है-
जौं छवि सुधा पयोनिधि होई।
परम रूपमय कच्छप सोई।।
सोभा रज मंदरु सिंगारू।
मथै पानि पंकज निज मारू।।
एहि बिधि उपजै लच्छि जब सुंदरता सुख मूल।
तदपि सकोच समेत कवि कहहिं सीय समतूल।।
यदि छवि रूपी अमृत का समुद्र हो, परम रूपमय कच्छप हो, शोभा रूप रस्सी हो, शृंगार (रस) पर्वत हो और (उस छवि के समुद्र को) स्वयं कामदेव अपने ही करकमल से मथे।
इस प्रकार का संयोग होने पर जब सुंदरता और सुख की मूल लक्ष्मी उत्पन्न हों तो भी कवि लोग बहुत संकोच के साथ उसे सीता के समान कहेंगे। क्योंकि लक्ष्मी निकली थीं खारे समुद्र से जिसको मथने के लिए भगवान ने अति कर्कश पीठवाले कच्छप का रूप धारण किया, रस्सी बनाई गई महान विषधर वासुकि नाग की, मथानी का कार्य किया अतिशय कठोर मंदराचल पर्वत ने और उसे मथा सारे देवताओं और दैत्यों ने मिलकर। जिन लक्ष्मी को अतिशय शोभा की खान और अनुपम सुंदरी कहते हैं, ऐसे असुंदर एवं कठोर उपकरणों से प्रकट हुई लक्ष्मी जानकी की समता कैसे पा सकती हैं। अयोध्या में १०,००० से अधिक मंदिर हैं, किंतु इन सबमें प्रमुख मंदिर है कनक भवन, जहां सीता के रूप में स्वयं महालक्ष्मी विराजमान हैं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, कनक भवन का निर्माण महारानी वैâकेयी के निर्देश पर विश्वकर्मा ने अपने सहायक शिल्पकारों के साथ इसका निर्माण किया था। कनक भवन के गर्भ गृह में श्री राम जानकी के अतिरिक्त किसी का विग्रह नहीं है। यहां सीताराम के परम भक्त हनुमान जी की मूर्ति भी आंगन में स्थापित की गई है। भक्तों का ऐसा अनुभव है कि कनक भवन में भगवान श्री राम जानकी आज भी भ्रमण करते हैं। विक्रमादित्य कालीन शिलालेख के अनुसार द्वापर युग में जरासंध वध के बाद तीर्थों की यात्रा करते हुए अयोध्या आने के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने इस महल का जीर्णोद्धार कराया था। संवत् २४२१ में समुद्रगुप्त ने और वर्तमान स्वरूप में स्थित भवन का निर्माण १८९१ में ओरछा के राजा महेंद्र प्रताप सिंह की पत्नी वृषभानु कुंवरि ने कराया था। नारी जीवन के लिए सीता जी का चरित्र एक आदर्श उदाहरण है। रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने विवाह से लेकर श्रीराम राज्याभिषेक तक उनके चरित्र को बहुत सूक्ष्मता से अंकित किया है, जो अत्यंत शिक्षाप्रद और बारंबार पठनीय है।
(लेखक वरिष्ठ कवि व साहित्यकार हैं।)