मुख्यपृष्ठस्तंभलिटरेचर प्वाइंट : कब रुकेगी सोशल मीडिया में देह की नुमाइश

लिटरेचर प्वाइंट : कब रुकेगी सोशल मीडिया में देह की नुमाइश

रासबिहारी पांडेय

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के बरक्स स्त्री जीवन की पड़ताल आवश्यक है। ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जिसमें स्त्रियां आज पीछे रह गई हों। अंतरिक्ष विज्ञान, जल, थल और वायु सेना, प्रशासनिक सेवाएं, साहित्य, संगीत, कला और पत्रकारिता के साथ-साथ राजनीति के क्षेत्र में भी महिलाओं का भरपूर दखल है।
हर वर्ष घोषित होनेवाले बड़े पुरस्कारों में महिलाओं की अच्छी-खासी संख्या है। दुनिया का सबसे बड़ा पुरस्कार माने जानेवाला नोबेल और बुकर पुरस्कार के अतिरिक्त साहित्य, खेल, पत्रकारिता समेत अन्य पुरस्कार जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हैं और जिनमें कभी पुरुषों का ही वर्चस्व माना जाता था, हाल के दशकों में स्त्रियों को मिल चुके हैं। स्त्रियों को हर प्रकार का मंच और अभिव्यक्ति की आजादी हासिल है। पंचायती व्यवस्था कायम होने के बाद इन्हें ग्रामीण स्तर पर भी आगे आने का पर्याप्त अवसर मिल रहा है। कुछ समय पहले तक ग्रामीण अंचलों में पत्नी का नौकरी करना अच्छा नहीं माना जाता था, किंतु आज अनेक परिवार ऐसे हैं जिनमें पत्नी ही नौकरी कर रही है और पति घर-परिवार की देखभाल कर रहा है। पत्नी को कार्यस्थल तक छोड़ने जाना और फिर लेकर आना अब कोई शर्म की बात नहीं रह गई है।
स्त्री की सामाजिक स्थिति और सामाजिक उत्थान का दायरा बहुत बड़ा है। अनेक स्त्रियां घर और नौकरी दोनों को संभालते हुए बहुत मजबूती से जीवन की लड़ाई लड़ रही हैं। वे आत्मनिर्भर हैं और अपने जीवन का निर्णय स्वयं लेने में सक्षम हैं। टेलीविजन, सिनेमा, ओटीटी प्लेटफॉर्म और सोशल साइट्स पर स्त्रियां न सिर्फ मजबूत भूमिका में हैं, बल्कि यहां इनका अश्लीलतम रूप भी दृष्टिगत हो रहा है, जो अत्यंत आपत्तिजनक है। साहिर लुधियानवी ने कभी लिखा था- औरत ने जनम दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाजार दिया… आज स्थिति काफी बदल चुकी है। स्त्री ने शोहरत और दौलत की हवस में खुद ही खुद को बाजार के हवाले कर दिया है। फेसबुक इंस्टाग्राम यूट्यूब और व्हाट्सएप के जरिए हर उम्र की महिलाएं दिन-रात देह की नुमाइश में लगी हैं। सेंसर बोर्ड ने भी पर्याप्त छूट दे रखी है। अक्सर ऐसी फिल्में देखने को मिलती हैं, जिन्हें देखने के बाद ऐसा नहीं लगता कि फिल्मों के लिए सेंसर जैसी कोई व्यवस्था भी है। ओटीटी चैनल और गूगल को नियंत्रण में रखने के लिए लंबी कवायद है, किंतु जो सिनेमा सेंसर बोर्ड द्वारा प्रमाणित होकर ७० एमएम के पर्दे पर दिखाया जाता है, वहां मनोरंजन के नाम पर स्त्री देह की भरपूर नुमाइश की खुली छूट है। कुछ बरस पहले तक फेसबुक पर अश्लील वीडियो देखने को नहीं मिलते थे किंतु लॉकडाउन के समय पोर्नोग्राफी का बाजार जिस तरह गर्म हुआ, उसकी चपेट में फेसबुक भी आ गया। फेसबुक ने अपने व्यापार को बढ़ावा देने के लिए ऐसे वीडियोज को अनुमति दे दी। यूट्यूब से बड़ी कमाई का जरिया अब फेसबुक बन चुका है इसलिए असंख्य लोग इस व्यापार में कूद पड़े। आज लगभग हर व्यक्ति के हाथ में स्मार्टफोन है और उसमें आवश्यक रूप से गूगल, फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम आदि हैं। न चाहते हुए भी हमारी आंखों के सामने ये अश्लील वीडियो गुजरते हैं। इन्हें बनाने वाले और इनमें काम करने वाले हमारे आस-पास के ही लोग हैं। हर वीडियो का एक ही उद्देश्य है- कामुक कथानक के साथ स्त्री देह की नुमाइश। ऐसे वीडियो सिर्फ कॉर्पोरेट द्वारा ही नहीं बनाए जा रहे हैं, गांव-कस्बों में बैठी हर उम्र की स्त्रियां इसमें लिप्त हैं। दुखद यह है कि अधिकांश को अपने मां-बाप और पतियों का संरक्षण भी प्राप्त है।
इस अश्लीलता से निजात पाना मुश्किल तो है मगर असंभव नहीं। हम अपने स्तर पर इसके खिलाफ मुहिम तो छेड़ ही सकते हैं।

(लेखक वरिष्ठ कवि व साहित्यकार हैं।)

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