मुख्यपृष्ठस्तंभलिटरेचर प्वाइंट : जिन्हें नाज साहिर पे है, वे कहां हैं?

लिटरेचर प्वाइंट : जिन्हें नाज साहिर पे है, वे कहां हैं?

रासबिहारी पांडेय
हर वर्ष मार्च के महीने में उर्दू अदब और हिंदी सिनेमा के मील के पत्थर शायर साहिर लुधियानवी की जयंती पर मुंबई समेत देश भर में बड़े-बड़े सेमिनार और मुशायरे होते हैं। जुहू समंदर किनारे स्थित होटल सन एंड सैंड से थोड़ा सा पहले ठीक सड़क के किनारे एक तीन महले की बिल्डिंग है, नाम है परछाइयां। साहिर का किसी जमाने में यही आशियाना हुआ करता था। जब तक वे जीवित थे, यहां बड़ी-बड़ी पार्टियां हुआ करती थीं, आसपास गाड़ियों की कतारें लगी होती थीं, लेकिन साहिर के मरते ही नजारा बदल गया। साहिर ने जिन्हें अपने घर में पनाह दी थी, वही मालिक बन बैठे। उन्होंने इतना भी रहम नहीं किया कि साहिर की किताबें, ट्रॉफियां या उनसे जुड़ी अन्य चीजें किसी एक कमरे में रहने दें। सब कुछ बेरहमी से रद्दी में बेच दिया और आज तो हाल यह है कि किसी को यह भी पता नहीं कि इस तीन महले बिल्डिंग के किस कमरे में साहिर रहा करते थे?
जिन्हें नाज साहिर पे है, वे कहां हैं?
कहां हैं उर्दू अकादमी और हिंदी सिनेमा के खैरख्वाह? साहिर ने जावेद अख्तर समेत न जाने कितने ही गीतकार, संगीतकार और गायकों का करियर बनाने में अहम भूमिका अदा की?क्या उनका यह फर्ज नहीं बनता कि इस अवैध अतिक्रमण को हटाने की मुहिम छेड़ें और यह स्थल साहिर लुधियानवी स्मारक के रूप में विकसित हो?
बहुत सारे अदीबों और फनकारों की तरह देश के विभाजन के बाद साहिर भी पाकिस्तान गए लेकिन वहां की स्थिति देखकर उनका मोहभंग हो गया और वे भारत वापस लौट आए थे। कुछ साल दिल्ली में पत्रकारिता की मगर जल्द ही उन्हें समझ में आ गया कि उनकी असली मंजिल भारतीय सिनेमा जगत है। मुंबई में संघर्ष करके उन्होंने अपना वह मुकाम बनाया कि हर प्रोड्यूसर का ख्वाब होता था कि साहिर उनके लिए गाने लिखें। फिल्मी शायर बेवफा शब्द का कहीं न कहीं जरूर इस्तेमाल करते हैं, मगर साहिर ने कभी इस शब्द का इस्तेमाल नहीं किया। उन्होंने बेवफाई की बात बहुत अलग ढंग से की-
`वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन, उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा।’
`बाजी’ फिल्म हिट होने के बाद साहिर लुधियानवी और एस डी बर्मन में एक पार्टी के दौरान तकरार हो गई। बर्मन ने कहा कि तुम क्या समझते हो तुम्हारे गीतों की वजह से फिल्म हिट हुई, अरे वो तो मेरी तर्जें थीं कि गाने हिट हो गए। तब से साहिर ने तय किया कि वे एसडी बर्मन के साथ गीत नहीं लिखेंगे। इसके बाद उन्होंने खय्याम और रवि के साथ काम करना शुरू कर दिया और हिट गाने देते रहे। बीच में जब किसी ने तंज किया कि अगर लता मंगेशकर की आवाज न हो तो आप के गीत बेजान हैं तो साहिर ने कहा कि अदबी शायर किसी खास आवाज का मोहताज नहीं होता और करीब दो बरस तक सुधा मल्होत्रा और अन्य गायक-गायिकाओं के साथ उनके गीत उसी शान के साथ गूंजते रहे। फिल्मों के गीत रेडियो पर बजाते समय गीतकार का नाम भी बताया जाए, साहिर के प्रयास से ही संभव हो सका।
साहिर ने मात्र ५९ वर्ष की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया, मगर इतने ही दिनों में उन्होंने १२२ फिल्मों के लिए ७३३ गाने लिखे। उनके सर्वाधिक २२३ गीत आशा भोंसले ने गाए, रफी ने १८८ और लता मंगेशकर ने १६० गीत गाए। किसी को भूलने के लिए दस पांच साल का वक्त बहुत होता है मगर ४२ साल बाद भी हम उन्हें न सिर्फ उसी शिद्दत के साथ याद कर रहे हैं, बल्कि उनसे हमारा प्यार और बढ़ता ही जा रहा है।

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