- ५० साल में गईं १७ हजार से ज्यादा लोगों की जानें
सामना संवाददाता / नई दिल्ली
हिंदुस्थान में जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम की स्थिति बेहद ख़राब होती जा रही है। यही वजह है कि लगातार लू खतरनाक हो रही है। ऐसे में लोगों का जीना दुश्वार हो गया है। देश का ९० प्रतिशत से अधिक हिस्सा और पूरी दिल्ली लू के प्रभावों के ‘खतरे के क्षेत्र’ में है। एक नए अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है। अध्ययन में कहा गया है कि ‘लू’ ने संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने की दिशा में भारत की प्रगति को पहले की तुलना में ज्यादा बाधित किया है।
लू की ७०० से ज्यादा घटनाएं
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पूर्व सचिव एम राजीवन द्वारा वैज्ञानिक कमलजीत रे, एसएस रे, आरके गिरि और एपी डिमरी के साथ लिखे गए एक पेपर से पता चलता है कि लू ने भारत में ५० वर्षों में १७ हजार से अधिक लोगों की जान ले ली है। यह पेपर साल २०२१ में प्रकाशित हुआ था। इसमें बताया गया कि १९७१-२०१९ तक देश में लू की ७०६ घटनाएं हुई हैं।
सबसे गर्म रहा फरवरी महीना
१९०१ के बाद साल २०२३ में सबसे गर्म फरवरी का अनुभव किया। हालांकि, मार्च में सामान्य से अधिक बारिश हुई, जिससे तापमान सामान्य रहा। साल २०२२ का मार्च अबतक का सबसे गर्म और १२१ वर्षों में तीसरा सबसे सूखा वर्ष था। एक रिपोर्ट की माने तो देश में करीब ७५ प्रतिशत कर्मचारी यानी लगभग ३८ करोड़ लोग गर्मी की वजह से तनाव में रहते हैं।
पिछले सप्ताह १४ लोगों की हुई मौत
गौरतलब है कि रविवार को नवी मुंबई में महाराष्ट्र सरकार के एक पुरस्कार समारोह में लू की वजह से १४ लोगों की मौत हो गई थी। लू की यह घटना अबतक की सबसे बड़ी दर्दनाक घटनाओं में से एक है। वहीं, भारत मौसम विज्ञान विभाग ने हाल ही में उत्तर-पश्चिम और प्रायद्वीपीय क्षेत्रों को छोड़कर अप्रैल से जून तक देश के अधिकांश हिस्सों में सामान्य से अधिक तापमान रहने की बात कही है।