-खामियां होने की बात कमेटी ने भी मानी
-अंकुश लगाने के लिए की कई सिफारिशें
धीरेंद्र उपाध्याय / मुंबई
राज्य की ‘घाती’ सरकार के शासन में मुंबई समेत पूरे प्रदेश के सरकारी अस्पतालों से लेकर स्वास्थ्य केंद्रों तक सभी दयनीय अवस्था में हैं। सरकारी अस्पताल बुनियादी सुविधाओं के साथ ही दवाओं की कमी की मार झेल रहे हैं। हालांकि, घाती सरकार इन तमाम समस्याओं की अनदेखी करती रही है। इस फेहरिस्त में मुंबई के सबसे बड़े अस्पताल जेजे में कार्यरत चिकित्सकों और मेडिकल स्टाफ की मिलीभगत से लूट जारी है। यहां निजी लैब चालकों का इस कदर मकड़जाल बन गया है, जिसमें मरीजों को फंसाने का काम बदस्तूर चल रहा है। इसे लेकर अस्पताल प्रशासन द्वारा गठित जांच कमेटी ने तफ्तीश में पाया कि सभी आरोप सही हैं। साथ ही अस्पताल की खामियों को भी मान्य किया है। इसी के साथ ही कमेटी ने निजी लैबों के अस्पताल में रोक लगाने और बाहरी प्रिस्क्रिप्शन को रोकने के लिए कई सिफारिशें की हैं। ऐसे में अब देखना है कि जेजे अस्पताल की डीन इन सिफारिशों को कितना अमल में लाती हैं।
डीन के आदेशों पर लगा रहे बट्टा
साल २०२२ में अस्पताल की डीन डॉ. पल्लवी सापले ने सख्त निर्देश देते हुए निजी लैब एजेंटों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके साथ ही उन्होंने यह भी आदेश दिया था कि रक्त के नमूने परीक्षण के लिए अस्पताल से बाहर नहीं भेजे जाने चाहिए। हालांकि, यह पता चला है कि अस्पताल में उनके आदेशों को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यह पहली बार नहीं है कि खून के नमूने परीक्षण के लिए अस्पताल से बाहर जा रहे हैं। यह स्पष्ट रूप से उन डॉक्टरों या कर्मचारियों की सांठ-गांठ को दर्शाता है, जिन्हें इन प्रयोगशालाओं के माध्यम से कमीशन मिलता है।
समिति ने मानी गड़बड़ी
पिछले महीने डीन कार्यालय में सर्जरी विभाग के प्रमुख डॉ. अजय भंडारवार की अध्यक्षता वाली आठ सदस्यों की समिति की बैठक बुलाई गई थी। इस बैठक में सभी आरोपों को सही बताया गया। समिति ने कहा है कि रेजिडेंट डॉक्टरों ने बिना किसी औचित्य के मेडिकल ऑफिसर अथवा अधीक्षक की अनुमति के बिना ही खून के नमूनों की जांच को निजी लैबों में भेजा। इस अंकुश लगाने के लिए कार्रवाई करने कीr सिफारिशें की गई हैं।