प्राइवेट स्कूलों में डोनेशन, किताब, कॉपी व ड्रेस की आड़ में अभिभावकों से ऐंठे जा रहे हैं पैसे
योगेंद्र सिंह ठाकुर / पालघर
सरकार भले ही नई शिक्षा नीति से तमाम परिवर्तन का ढिंढोरा पीट रही हो, लेकिन स्कूलों की निगरानी का कोई तंत्र नहीं है। जिससे शैक्षिक सत्र शुरू होने के साथ ही निजी स्कूलों की मनमानी भी शुरू हो जाती है। ज्यादातर स्कूलों द्वारा अभिभावकों को अध्ययन सामग्री व स्कूल ड्रेस स्कूल के अंदर या मनचाही दुकानों पर उपलब्ध कराई जा रही हैं, अब इस सामग्री को बेचने के तरीकों में थोड़ा बदलाव किया गया है। इस सामग्री के मिलने का स्थान स्कूल प्रबंधक खुद बता रहे हैं। अभिभावक जब बच्चों को दाखिला दिलाने आते हैं तो ठिकाने की जानकारी दे दी जाती है। ये काम ज्यादातर उन स्कूलों में हो रहा है, जिनके पास सीबीएससी की मान्यता है। शिक्षा के नाम पर स्कूलों में शुरू हुई खुल्लम खुल्ला लूट का असर जिले के लाखों अभिभावकों पर पड़ रहा है।
नया शैक्षणिक सत्र शुरू हो गया है। स्कूलों में दाखिला प्रक्रिया भी जोरों पर चल रही है, शहर के कई स्कूलों में जमकर भारी-भरकम डोनेशन भी लिया जा रहा है। हालांकि, नाममात्र के कुछ स्कूल ऐसे भी हैं, जहां डोनेशन से परहेज रखा जा रहा है। जिले के निजी स्कूल हर तरफ से पैसा कमाने पर उतर आए हैं। मनमाने ढंग से फीस निर्धारित करनेवाले निजी स्कूल संचालकों ने नया सत्र प्रारंभ होते ही ड्रेस, जूता, मोजा के साथ ही स्टडी मेटेरियल के नाम पर कमीशनखोरी का खेल शुरू हो गया है। बेहतर शिक्षा के नाम पर अभिभावकों को लूटा जा रहा है।
स्कूल संचालकों ने कहीं कॉपी-किताबों और ड्रेस के लिए दुकानों से सेटिंग कर रखी है तो कहीं खुद स्कूल से बांट रहे हैं। फीस बढ़ाकर तो जेब भरी ही जा रही है, कॉपी-किताब और ड्रेस से भी मोटी कमाई की जा रही है। इन स्कूल संचालकों पर जिला प्रशासन का किसी तरह का कोई अंकुश नहीं है। निजी स्कूलों में अच्छी शिक्षा और व्यवस्था का लालीपॉप देकर अभिभावकों को ठगा जा रहा है। स्कूलों में फीस के साथ किताबों के दामों में बढ़ोतरी से अभिभावक परेशान हैं। अभिभावक कर्ज से बच्चों का दाखिला करवा रहे हैं। प्राइवेट स्कूलों द्वारा फीस के नाम पर की जाने वाली मनमानी के खिलाफ शिक्षा विभाग ने कुछ बोलने की बजाय मुंह बंद कर रखा है। प्राइवेट स्कूल संचालकों से कोई यह पूछनेवाला नहीं कि आखिर किस आधार पर इतनी भारी-भरकम एडमिशन फीस वसूली जा रही है।
शिक्षकों की शैक्षिक योग्यता का कोई मानक तय नहीं
वहीं निजी स्कूलों में पढ़ानेवाले शिक्षकों की शैक्षिक योग्यता के कोई मानक तय नहीं हैं। यहां कम शैक्षिक योग्यता वाले अप्रशिक्षित लोगों को शिक्षक के रूप में शिक्षण कार्य में लगाया जाता है। इस तरह शिक्षकों को कम वेतन देकर अधिक मुनाफा कमाया जाता है, जिसके चलते भारी-भरकम फीस भरने के बावजूद भी बच्चों को उचित शिक्षा नहीं मिल पाती है। हाईफाई महंगे स्कूलों में पढ़ाने के बावजूद भी अभिभावकों को अपने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना पड़ता है।
रंग-बिरंगे कपड़ों में भी झोल
सभी निजी स्कूलों में अपनी पसंद के अलग-अलग यूनिफॉर्म हैं, जो या तो स्कूलों में ही मिलते हैं या स्कूल द्वारा निर्धारित शॉप पर सिनेटिक्स के हल्के कपड़े से निर्मित ५००-६०० के ड्रेस ९०० से १,००० तक, ४०० रुपए के स्वेटर ७०० से ८०० तक, ३० रुपए के मोजे ७० रुपए तक, ३०० रुपए के बैग ५०० रुपए तक वसूले जा रहे हैं। यह तो लिखने की भी जरूरत नहीं कि इसमें स्कूलों का कोई कमीशन नहीं होगा।
अभिभावकों को डर
दरअसल, इस मुद्दे को लेकर कोई भी अभिभावक लिखित शिकायत नहीं कर पाते हैं। क्योंकि उनको डर रहता है कि जिस स्कूल में उनके बच्चे पढ़ रहे हैं उसके खिलाफ वैâसे आवाज उठाएं, इसी का फायदा ये स्कूल उठा रहे हैं।
क्या कहते हैं अभिभावक
अभिभावक अभिषेक ठाकुर ने कहा कि ड्रेस के नाम पर कमीशनखोरी की जा रही है। स्कूल वाले दुकानदार से सेटिंग कर लेते हैं या फिर वे स्वयं दुकान खोल लेते हैं। वहीं दूसरे ने कहा कि ड्रेस, किताब और कॉपी के दाम में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। हर साल किताबों में बदलाव किए जाने से अलग महंगाई की मार झेलनी पड़ती है। इस वर्ष करीब ४० प्रतिशत अतिरिक्त भार बच्चों की शिक्षा पर पड़ रहा है। एक अन्य अभिभावक ने कहा कि नामी गिरामी निजी स्कूलों में मनमानी हो रही है। भारी-भरकम एडमिशन फीस वसूली जा रही है, वहीं एक ने बताया जो ड्रेस ४०० से लेकर ६०० तक आ रहे हैं, वह आज ७०० से ऊपर चले गए हैं। ड्रेस व कॉपी-किताबों के नाम पर अभिभावकों से भारी-भरकम पैसे वसूले जा रहे हैं।