सामना संवाददाता / मुंबई
२६ जुलाई २००५ को मुंबई में आई बरसाती बाढ़ की त्रासदी मुंबई कर आज तक भूल नहीं पाए हैं। हर साल मानसून के दौरान जब बारिश जोर पकड़ती है, मुंबईकर २६ जुलाई को याद करना भूलते नहीं है। उस प्राकृतिक आपदा के दौरान मीठी नदी ने आसपास के इलाकों में जमकर कहर बरपाया था। उस घटना के १४ साल मुंबई पर एक बार फिर से मीठी के कारण मुसीबत आ सकती है। ये मुसीबत मीठी को गहरा और चौड़ा करने का ठेका लेनेवाले ठेकेदार की नादानी के कारण आ सकती है, ऐसी आशंका मीठी नदी के आसपास रहनेवाले लोग जता रहे हैं। ठेकेदार ने मीठी नदी के विस्तारीकरण कार्य के लिए नदी के अंदर ही मिट्टी पाट कर मार्ग बना डाला है। अब मानसून में लगभघ दो महीने ही और शेष हैं, ऐसे में मानसून शुरू होने से पहले ठेकेदार द्वारा बनाए गए ‘कामसेतू’ का मलबा नदी से निकाला नहीं गया तो आसपास के क्षेत्रों में मीठी नदी द्वारा एक बार फिर कहर बरपाया जाना तय है, ऐसी आशंका आसपास के लोग दबी जुबान से व्यक्त कर रहे हैं।
बता दें कि मुंबई मनपा के के/पूर्व, एल और एस वार्डों में अशोकनगर, अंधेरी से फिल्टरपाड़ा और पवई तक मीठी नदी के किनारे की दीवार और सर्विस रोड को चौड़ा करने, गहरा करने, रिटेनिंग वॉल और सर्विस रोड बनाने के लिए एक ठेकेदार कंपनी को १२८ करोड़ का ठेका दिया गया है। मनपा ने ठेकेदार कंपनी को ऐसे कार्य के लिए संबंधित अधिकारियों से पर्यावरण संबंधी सभी परमिट प्राप्त करने की जिम्मेदारी भी सौंपी है।
लोग पूछ रहे हैं सवाल
भराव के लिए ठेकेदार ने एमएमआरडीए, महाराष्ट्र मरीन डिवीजन मैनेजमेंट अथॉरिटी, मीठी नदी विकास और संरक्षण प्राधिकरण, पर्यावरण और वन मंत्रालय से अनुमति ली है क्या? यदि ली है तो कागजात जारी किए जाए। इसके साथ-साथ नदी में बनाई गए रास्ते से मलबा तुरंत निकाला जाए, ऐसी मांग स्थानीय लोग कर रहे हैं।
ठेकेदार ने बनाई अस्थायी सड़क!
ठेकेदार ने नदी के बहाव क्षेत्र को किनारे पर पाट कर सड़क बना दी है। मनपा के अधिकारी कह रहे हैं कि यह अस्थाई सड़क आनेवाले समय में किये जानेवाले कार्यों के लिए बनाई गई है। जबकि नदियों का प्राकृतिक प्रवाह किसी भी हाल में मोड़ा या रोका न जाए, ऐसा स्पष्ट आदेश राष्ट्रीय हरित लवादा प्राधिकरण ने दिया है। इसके बावजूद मीठी नदी के विस्तारीकरण गहराई और चौड़ाई) बढ़ानेवाले ठेकेदार द्वारा मीठी नदी के बहाव क्षेत्र में ही रास्ता बनाया जाना ठेकेदार की नादानी और नियमों का उल्लंघन ही है। कॉन्ट्रैक्टर की इस नादानी के कारण नदी की जैव विविधता प्रभावित हो ही रही है लेकिन मुख्य खतरा मानसून को लेकर जताया जा रहा है। यदि मानसून से पहले इस भराव को नहीं हटाया गया तो मुंबई में फिर से बाढ़ आ सकती है।