जुर्म का दामन थामना हर किसी का शौक नहीं होता। कुछ लोग मजबूरी में उस रास्ते पर चल पड़ते है, जिसका रास्ता गोलियों के कांटो, जेल की सलाखों और हर पल मौत की दहशत में रहता है। अब तक उत्तर भारत के जिन माफियाओं के बारे में आपने पढ़ा उनकी पढ़ाई-लिखाई बहुत ज्यादा नहीं थी। लेकिन आज जिसके बारे में आप पढ़ने जा रहे है, वह पढ़ाई में अव्वल था उसे तो पिता की मौत ने माफिया बना दिया। इसका मतलब यह कतई नहीं कि अगर कोई अपराध करे तो उसका बदला अपराध कर ही लिया जा सकता है। लेकिन जिस पर यह बीतती है उसका दिल ही जानता है कि आखिर वह किस मजबूरी में माफिया बना और ४१ आपराधिक मामलों में आरोपी बना, जिसके क्रोध और माफिया बनने की मजबूरी ने वाराणसी के धौरहरा गांव में जन्मे इस बालक को पूर्वांचल का माफिया डॉन बना दिया। शुुरुआत के दौर में बृजेश सिंह ने अपनी ऐसी दहशत पैâलाई कि अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम कासकर ने उसके जिगर का लोहा माना। बचपन से पढ़ने-लिखने में बेहद तेज, यूनिवर्सिटी आने तक उसका ध्यान सिर्फ पढ़ाई-लिखाई पर रहा। लेकिन इसके बाद उसने जुर्म की ऐसी दास्ता लिखी कि पूरा पूर्वांचल हिलाकर रख दिया। कॉलेज के एक मेधावी छात्र पर आखिर ऐसी क्या विपदा आ गई कि उसे डॉन बनना पड़ा?
२७ अगस्त १९८४ को वाराणसी के धौरहरा गांव में जो बृजेश सिंह के पिता रविंद्रनाथ सिंह की हत्या की वे लोग गांव के ही दबंग थे, जिनका जमीन को लेकर विवाद चल रहा था। जानकारों का कहना है पढ़ाई का टॉपर बृजेश सिंह टॉप का डॉन बनने की सोच ही रहा था कि मौका भी उसे जल्दी ही मिल गया और पिता के हत्यारे हरिहरन सिंह को मौत के घाट उतार दिया।
साल १९८५ में बृजेश सिंह एक शॉल लेकर गांव के अपने दुश्मन पांचू के घर पहुंचकर पांचू के पिता का पैर छुआ और शॉल ओढ़ाने के बाद गन निकालकर पांचू के पिता को छलनी कर दिया।
बृजेश सिंह ने १९८६ में चंदौली जिले के सिकरौरा गांव के पूर्व प्रधान रामचंद्र यादव समेत ७ लोगों की गोलियों से भूनकर हत्या कर दी। हत्याकांड में बृजेश का नाम आया और उसको पुलिस ने पकड़ भी लिया। बृजेश को गोली लगी थी, ऐसे में इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया। बृजेश ठीक होता और पुलिस उसे जेल भेजती, इससे पहले ही वो अस्पताल से फरार हो गया। इस फरारी के बाद बृजेश सिंह मुंबई की मायानगरी में पहुंचा। उसी समय बाबा उर्फ सुभाष सिंह ठाकुर पूर्वांचल के युवकों को मिलाकर गिरोह बनाकर दाऊद से मिलकर काम कर रहा था। मुंबई का मशहूर जे. जे. शूटआउट हत्याकांड में ठाकुर गिरोह में बृजेश भी शामिल था, जहां डॉक्टर बनकर अस्पताल गया था।
जे. जे. हत्याकांड के बाद बृजेश ने रघुनाथ पर भरी कचहरी में एके-४७ से गोलियां बरसा कर पूरे प्रदेश को हिलाकर रख दिया। उसी दौरान बृजेश सिंह की मुलाकात त्रिभुवन सिंह से हुई। बस यहां से दोनों की दोस्ती की रेलगाड़ी पटरी पर सरपट दौड़ने लगी। उस वक्त महाराष्ट्र सरकार ने बृजेश सिंह पर मकोका भी लगा दिया। २००१ में जब मुख्तार अंसारी का काफिला गाजीपुर से गुजर रहा था तो उनके काफिले पर जानलेवा हमला हुआ। ये हमला बृजेश सिंह ने किया।
२०१६ में बृजेश सिंह आखिरकार खुद ही सियासी अखाड़े में कूद गया। बृजेश सिंह ने जेल में रहकर ही निर्दलीय एमएलसी का चुनाव लड़ा। बीजेपी ने उसे समर्थन दिया और वो चुनाव जीत गया। अब बृजेश सिंह भी माफिया से बाहुबली नेता बन गया। २०२२ कई लिहाज से बृजेश सिंह के लिए खास रहा। उसकी पत्नी ने बड़ी जीत दर्ज की तो वहीं १३ साल बाद आखिरकार वो वाराणसी जेल से बाहर आ गया।
जय सिंह
(अगली किश्त में प़ढ़ें: पूर्वांचल का वह बाबा जो गोली से इलाज करता है?)