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उत्तर के माफिया! …दुर्लभ हो गया माफिया दुर्लभ कश्यप

– जय सिंह
‘जितने भी मां-बाप हैं और जिन लोगों को मेरी बात समझ में आ रही है। अगर उनके बच्चे कहीं, किसी बात को समझने या मानने को उनसे तैयार नहीं हैं तो मैं उन बच्चों के साथ बातचीत करने को तैयार हूं। उनको उनके भविष्य के बारे में पूरा सत्य बताने को तैयार हूं। यह मेरा दावा है कि मैं उनके बच्चों को वापस सही राह पर ला सकूंगा। इसके लिए मुझे जो कुछ भी करना पड़ेगा वो मैं करूंगा। मुझे इसमें कोई दिक्कत नहीं है। समाज में अगर एक मैसेज जाता है। कुछ लोग सुधर सकते हैं। हम उन्हें सुधार लें। यह हमारी एक बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। यह वक्तव्य किसी बड़े महात्मा या किसी संत के नहीं, बल्कि बहुत कम उम्र में गैंगस्टर बननेवाले मध्य प्रदेश के उस नामी गैंगस्टर के पिता के हैं जो अपने बच्चे को तो नहीं बचा पाया लेकिन उनके दिल में दर्द है कि उनकी इन बातों से अगर किसी का चिराग बच जाए तो बड़ी बात होगी। उस गैंगस्टर को जानने के लिए आइए हम आपको ले चलते हैं, मुंबई से इंदौर और फिर उज्जैन, जहां एक १६ साल के बच्चे के माता-पिता अपने बच्चे का एडमिशन वहां के लोकमान्य तिलक हायर सेकंडरी स्कूल में करवाने पहुंचे। कुछ दिनों बाद ही इस स्कूल में माथे पर लाल टीका, आंखों में सुरमा, कंधे पर काला गमछा, बड़े-बड़े बाल तो कभी छोटे-छोटे बाल, बढ़ी हुई दाढ़ी, जिसे देखकर युवा उसके मुरीद हो जाएं। यह ड्रेस कोड किसी ड्रेस डिजाइनर ने नहीं डिजाइन किया था, बल्कि इस ड्रेस की ख्याति कई सालों तक जरायम की दुनिया में दहशत का नाम था। इस ड्रेस को पहने लड़के को देखकर लोग डर जाते थे। यह ड्रेस कोड था सबसे कम उम्र के बड़े गैंगस्टर दुर्लभ कश्यप का।
कहते हैं अपराधी की उम्र ज्यादा लंबी नहीं होती है। जितना ही जल्दी वो अपराध के पायदान चढ़ता है उतना ही जल्दी वह मौत के पायदान पर पहुंचता है। ८ नवंबर, २००० को उज्जैन में जीवाजीगंज के अब्दालपुरा के एक व्यापारी के घर पैदा हुआ एक बालक मात्र १६ साल की उम्र में गैंगस्टर बन जाएगा, किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था। उज्जैन के रहनेवाले माता-पिता मनोज कश्यप और पद्मा का इकलौता पुत्र था दुर्लभ। दुर्लभ की मां उज्जैन के क्षीरसागर स्कूल में शिक्षिका थी और पिता मुंबई में नौकरी करते थे। लेकिन दुर्लभ के पिता को नौकरी रास नहीं आई और परिवार के साथ अपना बोरिया-बिस्तर समेटकर वे इंदौर शिफ्ट हो गए। मनोज कश्यप ने बाद में अपना व्यवसाय शुरू किया और तब से ही उनका परिवार उज्जैन में रहने लगा। दुर्लभ के मां-बाप ने अपने बेटे का नाम दुर्लभ इसलिए रखा, ताकि बड़ा होकर वो कुछ अलग और अच्छा करेगा। उनकी उम्मीद थी कि वह सबसे हटकर कुछ बड़ा काम करेगा, जिससे उनका नाम रोशन हो।
विवाद निपटाने के लिए संपर्क करें
दुर्लभ के माता-पिता कुछ निजी समस्याओं के कारण एक-दूसरे से अलग रहते थे। दुर्लभ कभी अपनी मां के साथ तो कभी अपने पिता के साथ रहता था। माता-पिता दोनों ही उसे जान से ज्यादा प्यार करते थे। उसके घर-परिवार में किसी भी चीज की कमी नहीं थी। लेकिन जब कभी स्कूल में सीनियर और जूनियर के बीच लड़ाई होती वो उस लड़ाई में कूद पड़ता। समय बीतने के साथ ही उसका दबदबा बढ़ता गया और वो इन लड़ाइयों का निपटारा भी करने लगा। देखते ही देखते स्कूल में उसकी छवि एक दबंग छात्र की बन गई। उसके बाद जो भी लड़ाई-झगड़ा होता लोग निपटारा करने के लिए दुर्लभ कश्यप के पास आते। स्कूल के इस माहौल ने उसके दिमाग पर असर किया। वह १६ साल की उम्र में ही जुर्म के रास्ते पर चल पड़ा। २०१७ आते-आते उसने स्कूल के दोस्तों के साथ गैंग बना लिया और मारपीट, धन उगाही, कार के शीशे तोड़कर कार लूटने जैसे काम करने लगा। धीरे-धीरे उसका गैंग बढ़ता गया। यह बात उस समय की है, जब दुर्लभ महज १६ साल का था। उसने पहली बार अपनी दबंगई का प्रचार, सोशल मीडिया पर किया। उसने अपने फेसबुक अकाउंट पर लिखा था, ‘मैं एक कुख्यात बदमाश हूं। एक हत्यारा हूं। किसी भी तरह का विवाद निपटाने के लिए संपर्क करें। मैं हर तरह का विवाद निपटा दूंगा।’ यहीं से उसके जीवन का वह दौर शुरू हुआ, जो उसे अपराध के रास्ते पर ले गया। धीरे-धीरे उसकी इस पोस्ट का रिएक्शन भी देखने को मिलने लगा। अब उसका गैंग विस्तार लेने लगा, जिसका सरगना दुर्लभ कश्यप बन गया।
इलाके के डॉन ही गैंग में शामिल
वह ऐसे लोगों को ही गैंग में शामिल करता, जो अपने इलाके का डॉन होता। इस तरह उसके संपर्क में ४,००० लड़के शामिल हो गए। धीरे-धीरे भारत के हर कोने के युवा उसे पसंद करने लगे। दुर्लभ कश्यप गैंग का सरगना तो था लेकिन उसे कोई और ही चला रहा था। दुर्लभ उस समय नाबालिग था। लेकिन उसे बदमाशी की दुनिया में धकेलने का काम गुरुचरण और मुकेश जैसे कुख्यात अपराधियों ने किया। दुर्लभ के गैंग में ज्यादातर सदस्य नाबालिग थे। दुर्लभ कश्यप के गैंग के सभी सदस्य उसी की तरह माथे पर तिलक और आंखों में काजल लगाते थे। कंधे पर उसी की तरह काला कपड़ा भी डालते थे। कम उम्र के लड़कों के बीच दुर्लभ काफी पॉपुलर हो गया था।
गैंग की पहचान ड्रेस कोड
इस गैंग की जो पहचान बनी, वह उसका ड्रेस कोड ही था। उसकी गैंग में जो भी जुड़ता, उसके लिए यह ड्रेस कोड जरूरी था। उज्जैन पुलिस को जब दुर्लभ कश्यप के फेसबुक अकाउंट की जानकारी लगी, तब २७ अक्टूबर, २०१८ को दुर्लभ और उसके गैंग के २३ लड़कों को गिरफ्तार कर लिया गया क्योंकि उस वक्त दुर्लभ नाबालिग था। उसके बालिग होने में महज १२ दिन ही शेष थे। इसलिए उसे बाल सुधार गृह में भेज दिया गया। इसके बाद वह ८ नवंबर को बालिग हो गया। दुर्लभ के बाकी साथी किसी तरह से जान बचाकर वहां से भाग जाते, तब दुर्लभ कश्यप वहां अकेला फंस जाता।
शाहनवाज गैंग से टक्कर और अंत
शाहनवाज गैंग के लोग दुर्लभ कश्यप पर टूट पड़ते हैं। ३४ बार चाकुओं के वार दुर्लभ पर किए जाते हैं। दुर्लभ कश्यप की वहीं पर मौत हो जाती है। इसके बाद शाहनवाज गैंग के लोग वहां से भाग जाते हैं, फिर पुलिस को खबर दी जाती है। इसके साथ ही चाय वाले के बयान दर्ज होते हैं फिर पुलिस दोनों तरफ के कुछ लोगों को गिरफ्तार करती है। इन सबके ऊपर हत्या की धाराएं लगती हैं। सबको जेल भेज दिया जाता है। दुर्लभ कश्यप की मौत के ७ महीने बाद इस सदमे से उसकी शिक्षिका मां की भी मौत हो जाती है। पकड़े गए कातिलों में एक शख्स जेल की छत से कूदकर, खुदकुशी कर लेता है, बाकी अभी जेल में हैं। उन पर अभी मुकदमा चल रहा है। दूसरे दिन जब उसकी मौत की खबर सुर्खियां बनी तो लोगों को अजीब सी बात यह लग रही थी कि एक लड़का, जो १६ साल की उम्र में जुर्म की दुनिया में आया। वह अभी ठीक से बड़ा भी नहीं हुआ था। १८ साल की उम्र में जेल गया। वह २० साल की जिंदगी जी भी नहीं पाया। ऐसी जिंदगी का वह खुद गुनहगार था क्योंकि उसके सपने एक बड़ा डॉन बनने के थे, जिसके लिए उसने यह रास्ता चुना था।
(अगले अंक में पढ़ें… कंपाउंडर से माफिया तक के सफर का अंत)

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