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उत्तर के माफिया! : अतीत बन गया अतीक! …तांगे वाले का बेटा बन गया माफिया

जय सिंह

उमेश पाल शूट आउट केस में वारदात को अंजाम देनेवाले एक भी शूटर ने चेहरे पर नकाब नहीं लगा रखा था। अतीक के बेटे असद ने भी पहचान छिपाने की कोई कोशिश नहीं की थी। शूट आउट को फिल्मी अंदाज में बेखौफ तरीके से सिर्फ इसीलिए अंजाम दिया गया, ताकि अतीक और उसके गैंग का टेरर फिर से कायम हो सके। प्रयागराज की शूटआउट यूनिवर्सिटी में गुर्गों के साथ घुसकर वहां के टीचर्स की सरेआम पिटाई किए जाने के मामले में फरवरी २०१७ से वह जेल में था। लखनऊ के कारोबारी मोहित अपहरण कांड में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर वह पिछले करीब चार साल से गुजरात की अमदाबाद जेल में था। सुप्रीम कोर्ट ने बेहद तल्ख टिप्पणियों के साथ उसे यूपी से बाहर किसी दूसरे राज्य की जेल में ट्रांसफर किए जाने के आदेश दिए थे। इलाहाबाद हाईकोर्ट अतीक के साथ ही उसके परिवार वालों के मुकदमों की सुनवाई करते हुए तमाम चौंकाने वाली टिप्पणियां कर चुका है। हाईकोर्ट के दस जज तो अतीक से जुड़े मुकदमों की सुनवाई से खुद को अलग भी कर चुके थे।

प्रयागराज का कुख्यात माफिया अतीक अहमद सालों-साल तक अपना माफिया साम्राज्य स्थापित कर प्रयागराज ही नहीं, उत्तर प्रदेश और विदेश के कई मुस्लिम राज्यों में अपना कारोबार पैâला रखा था।
प्रयागराज के चर्चित उमेश पाल शूटआउट केस में अतीक अहमद नामजद होकर सुर्खियों में चल रहा था। एक तांगे वाले का बेटा इतना बड़ा माफिया वैâसे बना इसके पीछे की कहानी भी राजनीतिक पटल पर इतिहास है। अब बात करते हैं माफिया अतीक के अतीत की। एक वह दौर था जब अपराधी सियासत की शतरंजी बिसात पर मोहरे की तरह इस्तेमाल होते थे। वह नेताओं के लिए जान लेने व देने में कतई नहीं हिचकते थे, लेकिन ९० के दशक की शुरुआत से पहले क्षेत्रीय पार्टियों की आसमान छूती महत्वाकांक्षाओं ने अपराधियों को ही सत्ता में भागीदार बना दिया, जो अपराधी मुठभेड़ से बचने व दूसरे फायदों के लिए सत्ताधारी नेताओं की परिक्रमा करते नहीं थकते थे, वह खुद जनता के मुख्तार बनने लगे। अपराधी के सफेदपोश बनने और अपराध के राजनीतिकरण के बदलाव वाले उस दौर में सबसे चर्चित नाम प्रयागराज के अतीक अहमद का ही रहा है।
मौत आने से पहले ५८ साल के अतीक अहमद के पिता हाजी फिरोज भी आपराधिक प्रवृत्ति के थे। वो तांगा चलाते थे। बेहद मामूली घर के हाजी फिरोज की माली हालत ऐसी नहीं थी कि वह अतीक समेत अपनी दूसरी औलादों को बेहतर तालीम दिला सकते। पिता के नक्शे कदम पर चलने की वजह से अतीक के खिलाफ सन १९८३ में पहली एफआईआर दर्ज हुई। उस वक्त उसकी उम्र महज अट्ठारह साल थी। कुछ ही सालों में अतीक के गुनाहों की तूती बोलने लगी, तो वह जिले की कानून व्यवस्था के लिए खतरा बनने लगा। अतीक और पुलिस में लुकाछिपी का खेल आम हो गया था। एक वक्त ऐसा भी आया जब अतीक और उसके करीबियों पर पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने का खतरा मंडराने लगा। पुलिस मुठभेड़ से बचने के लिए अतीक ने जातिवाद का कार्ड खेला और १९८९ में हुए यूपी के विधानसभा चुनावों में इलाहाबाद वेस्ट सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा और उस दौर के हालात के चलते अतीक को चुनाव में कामयाबी भी मिल गई और वह विधायक बन गया। १९८९ के इस चुनाव में तत्कालीन पार्षद और अतीक जैसी ही आपराधिक छवि का चांद बाबा भी मैदान में उतरा था। अतीक को यह बात इतनी नागवार गुजरी थी कि वोटिंग के बाद नतीजे आने से पहले ही उसने रोशन बाग इलाके के कबाब पराठे की दुकान पर उसे अपने गुर्गों के साथ मिलकर गोली और बमों से मौत के घाट उतार दिया। अपहरण कराकर उसे जेल बुलवाया और खुद उसकी पिटाई भी की थी।
अतीक के छोटे भाई अशरफ पर ३३ मुकदमे दर्ज थे। जेल में रहते हुए उस पर १९ और आपराधिक केस दर्ज हुए थे और मुकदमों की संख्या बढ़कर ५२ हो गई थी। अशरफ पर कई सालों तक एक लाख रुपए का इनाम घोषित था। दो नाबालिग छोटे बेटों को छोड़कर अतीक के बाकी तीनों बेटों के खिलाफ भी आपराधिक मामले दर्ज थे। उन पर तो सीबी ने २ लाख और ढाई लाख का इनाम घोषित किया था। उमेश पाल शूट आउट मामले के बाद जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक पिछले कुछ वर्षों में माफिया अतीक के गैंग पर कुल १४४ कार्रवाइयां की गई। गैंग से जुड़े हुए १४ लोगों की गिरफ्तारी हुई। २२ करीबियों की हिस्ट्रीशीट खोली गई। १४ लोगों के खिलाफ गुंडा एक्ट की कार्रवाई की गई। ६८ शस्त्र लाइसेंस रद्द किए गए। दो लोगों को जिला बदर किया गया। गैंगस्टर एक्ट के तहत ४१५ करोड़ की संपत्ति जब्त की गई। ७५१ करोड़ रुपऐ की अवैध संपत्तियों का ध्वस्तीकरण किया गया। अस्पताल ले जाते समय तीन शूटरों ने इतने बड़े माफिया राज को खत्म कर दिया। ३५ सालों से भाग रहा माफिया का तांगा आखिर में इस तरह थमेगा इसकी कल्पना खुद अतीक व उसके आपराधिक परिवार ने भी नहीं की थी।
(अगली किस्त में पढ़ें : जेल में ही रहना चाहता है ‘मखनू का चेला’!)

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