मंगलेश्वर त्रिपाठी
पुलिस ज्यादातर मामलों में अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करने की बजाय पीड़ित व्यक्ति को ही परेशान करती है। क्योंकि अपराध करने वाले व्यक्ति की हिम्मत तभी होती है, जब उसके पीछे किसी बड़े व्यक्ति का हाथ हो और इसलिए भ्रष्ट पुलिसकर्मी रिश्वत लेकर अपराधी का साथ देते है। उत्तर प्रदेश में १९ मार्च २०१७ से योगी आदित्यनाथ की सरकार के ६ वर्ष पूरे हो चुके हैं। शपथ ग्रहण के बाद प्रदेश में बिगड़ी कानून-व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए कई तरह के बदलाव किए गए। अलग-अलग टीमें गठित की गई। कई प्रकार के टास्क फोर्स का गठन हुआ। एंटी रोमियो स्क्वाड का गठन किया गया। नए-नए हथकंडे अपनाए गए। परंतु परिणाम वही ढाक के तीन पात। आज सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि यूपी की कानून-व्यवस्था का कंट्रोल किसके पास है सीएम, डीजीपी या थाने पर तैनात पुलिसकर्मी, थाना प्रभारी दारोगा या सिपाही दीवान, जो बगैर रिश्वत के चोटिल का डॉक्टरी मुआयना तक नहीं करवाते। मुकदामा लिखना तो बहुत दूर है थाने में पासपोर्ट, चरित्र प्रमाण पत्र जमानती वेरिफिकेशन बिना सुविधा शुल्क के नहीं हो सकता है। अमूमन सादे कपड़ों में रहने वाले ‘कारखास’ का रुतबा थानेदार से कम नहीं होता। मनचाही ड्यूटी लगवानी हो या मलाईदार चौकी पर पोस्टिंग, ‘कारखास’ की मर्जी के संभव नहीं है। थानों पर चल रहे पुलिस विभाग के इस अवैध सिस्टम को पुलिसकर्मियों के बेलगाम / भ्रष्ट होने की सबसे बड़ी वजह मानी जा रही है। हर थाना क्षेत्र में लगने वाले अवैध ठेले और खोमचे वालों से लेकर वन क्षेत्र की लकड़ियों की कटाई, अवैध खनन, अवैध पार्किंग / स्टैंड से भी वसूली का जिम्मा ‘कारखास’ का होता है। नए थानेदार तो बस ‘कारखास’ की सलाह पर ही पुलिसकर्मियों की ड्यूटी लगती है। इसकी जानकारी जिले के सभी आलाधिकारियों को रहती है।
पुलिस विभाग में सबसे मजबूत कड़ी के रूप में शुमार थानों पर थानेदार की कृपा से तैनात किए जाने वाले ‘कारखासों’ की वजह से आज भी कानून-व्यवस्था कटघरे में खड़ी है। थानों को व्यवस्थित चलाने में इन ‘कारखासों’ की अहम भूमिका होती है। इनका आदेश थानेदार के आदेश की तरह होता है। थानेदार के पास कोई बड़ी समस्या जाने से पहले ‘कारखास’ के पास से ही होकर गुजरती है। थानेदार / इंचार्ज को किससे कब मिलना है, इसकी भी सेटिंग वही करते हैं। प्रदेश में लगभग सभी थानों में केवल एक या दो ‘कारखास’ हैं तो मलाइदार थानों में कई ‘कारखास’ रखे गए हैं। जो अलग-अलग जगहों से अवैध वसूली करते हैं।
सबसे बड़ी बात है कि सरकार ने इनको जनता की सेवा के लिए नियुक्त किया है, लेकिन यह ‘कारखास’ सिविल ड्रेस में होकर केवल अवैध धन उगाही का जरिया खोजते हैं और वैâसे अवैध वसूली का धंधा बढ़े, इस पर उनका ध्यान ज्यादा होता है। प्रदेश के कई थानों पर हालत है कि थानेदार बिना ‘कारखास’ के एक कदम भी नहीं चल पाते। कहीं-कहीं पर उनकी मर्जी के बिना पत्ता तक नहीं हिलता है। सुबह थानेदार ‘साहब’ के उठने से पहले ‘कारखास’ उनके आवास पर पहुंच जाते हैं। फिर क्या करना है और कब किससे मिलना है, कौन मिलने आ रहा और क्षेत्र में कहां क्या घटित हुआ आदि की पूरी जानकारी देते हैं। यहां तक कि थाने में तैनात अन्य सिपाही भी अपनी समस्या थानेदार से कहने के बजाय ‘कारखास’ से ही बताते हैं और वह इसकी जानकारी थानेदार को देते हुए निस्तारण कराकर उन पर अपना प्रभाव छोड़ते हैं। जुआ, शराब, जिस्मफरोशी के अड्डे चलवाने के साथ ही भू-माफियाओं, तस्करों, अवैध कारोबारियों से इनकी साठगांठ तगड़ी रहती है। ‘कारखास’ से थाने पर तैनात सिपाही, दरोगा भी पंगा लेने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं। अभी हाल में बांदा सर्राफा व्यापारी की औरैया जिले में हाइवे पर ५० किलो चांदी की लूटने के मामले में औरैया और कानपुर देहात एसएसपी की संयुक्त छापामारी में कानपुर देहात के भोगनीपुर थाना के सरकारी आवास पर ५० किलो चांदी बरामद हुई तथा इंस्पेक्टर और दरोगा को गिरफ्तार कर लिया गया एवं लूट का मास्टरमाइंड भोगनीपुर थाने का कारखास / सिपाही रामशंकर यादव भनक लगते ही फरार हो गया है। कितनी सरकारें आई गई लेकिन इस अवैध सिस्टम को बंद नहीं करा सकी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी अवैध वसूली बंद करने में भी असफल रहे। पुलिस विभाग में चर्चा यहां तक कि साहबों से बड़े बंगले तो इन ‘कारखास’ सिपाहियों के हैं, जो हर महीने लाखों रुपए अवैध उगाही के जरिए घर ले जाते हैं।
(अगले अंक में पढ़ें: निमोनिया से हुआ एक दहशत का अंत)