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मुंबई का माफियानामा : सड़क पर लावारिस खड़ी थी, असलहों और गोलियों से भरी गाड़ी

विवेक अग्रवाल
हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।

वह काले रंग की फिएट कार पूरे दक्षिण मुंबई में खास पहचान रखती थी। वह कार एक जगह खड़ी थी। उसे एक पुलिस इंस्पेक्टर ने लावारिस खड़े देखा तो पास चला आया। अंदर झांका तो कोई उसमें न मिला।
इधर-उधर हाथ मारे तो डिक्की खुली मिल गई, कार के अंदर का नजारा देखा तो सन्न रह गया।
ये क्या! अंदर तो ढेरों असलहा और गोलियां भरे थे। जब वो इंस्पेक्टर तलाशी कर रहा था, उस पर एक जोड़ी आंखें जमी थीं।
ये आंखें ऑस्टीन गैरेज के एक मैकेनिक की थीं। वो किसी काम से वहां आया था। वह जानता था कि ये कार किसकी है। इधर बौखलाया इंस्पेक्टर थाने में फोन करने भागा, उधर मैकेनिक कार की तरफ भागा। कार का दरवाजा खोला, चालक की सीट पर बैठा, कार में लगी चाबी घुमाई, कार चालू की और ये जा-वो जा। उसने कार सीधे गैरेज के अंदर ला खड़ी की।
अब गैरेज मैकेनिक के सिख मालिक की पेशानी पर पसीना चुहचुहा आया। वह जहां एक तरफ मैकेनिक की अक्लमंदी पर खुश था, वहीं परेशान और हलाकान था कि असलहा भरी कार यहां क्यों ले आया। पुलिस ने आ पकड़ा तो क्या होगा?
उसने तुरंत कार मालिक के घर फोन किया। वहां लोगों को हालात से वाकिफ करवाया। वहां से लोगों ने कहा कि कार गैरेज में पड़ी रहने दें, सुबह उठा लेंगे। गैरेज मालिक की हालत खस्ता थी। वह जिद पर अड़ गया कि वे तुरंत गैरेज से कार हटाएं। ये खतरनाक जखीरा उसके पास नहीं रहना चाहिए।
मजबूरन कार मालिक के दो बंदे चंद मिनटों में बुलेट मोटरसाइकिल पर सवार गैरेज आ पहुंचे। एक कार चला कर वहां से ले गया, दूसरा उसी बुलेट से वहां पहुंचा, जहां से मैकेनिक कार लाया था।
थोड़ी देर में कार मालिक एक घर से बाहर आया तो कार वहां न पाकर हैरान हो गया। वहां कार चालक मकबूल खान हकबकाया खड़ा मिला। वो भी कार न मिलने से हलाकान था। वहां पहुंचे बुलेट वाले ने कार मालिक यानी करीम लाला के पास जाकर अदब से पूरी बात बताई।
अब करीम के पास कोई चारा न था। कार न थी, सो बुलेट पर सवार हुआ और घर पहुंचा।
अपना भारी-भरकम कड़ा हाथ में घुमाता वह पहलवानों सी काया वाला गैरेज मालिक कहानी सुना चुका तो अंत में जड़ देता है:
– लाला ने जिंदगी भर रिश्ता कमाया। वही काम आता रहा जिंदगी भर। कर भला–तो हो भला।
(बीपी की जुबानी)

(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)

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