विवेक अग्रवाल
हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।
बल्लू की शराबखोरी के किस्से कम नहीं हैं। शराब पीकर वह बहकता हो, ऐसा भी कभी न हुआ। शराब पीकर वह किसी से कभी गालीगलौच करता हो, ऐसा भी न था। शराब पीकर उसने किसी से मारपीट की हो, ऐसा भी कभी न सुना गया।
वह तो अपनी ही तरह का एकमात्र नमूना था। ऊपरवाले ने भी उसे बना कर शायद अफसोस किया होगा। उसे ढाल कर वो सांचा ही तोड़ दिया होगा।
बल्लू का एक ऐसा ही किस्सा दुबई का भी है। डी-कंपनी के काम से काफी बड़ी फौज दुबई गई। उसमें गिरोह के छोटा राजन, सुनील सावंत उर्फ सावत्या जैसे दर्जन भर बंदे थे। वे दुबई के एक पंचतारा होटल में रुके। वहां काम के साथ मौज-मजे का पूरा इंतजाम था।
वहां फौज का कािंरदा बलजीत सिंह उर्फ बल्लू भी था। उस दोपहर गरमी कुछ अधिक ही थी। सबने तय किया कि होटल के तरणताल में कुछ देर मजे करें। वहीं ठंडी बीयर का मजा लें। गरमी से भी निजात मिलेगी, कुछ समय भी कटेगा। मजे करेंगे।
लिहाजा आठ-दस बंदे तरणताल में जा पहुंचे। सबने कच्छे पहने, और लगे डुबकियां लगाने। बीयर के दौर चलने लगे। वे लोग हल्के सुरूर में आ चुके थे। ठंडक भी मिल रही थी। सब मजे में ठहाके लगा कर एक-दूसरे से चुहलबाजियां कर रहे थे।
अचानक होटल के पिछले हिस्से के दरवाजे पर बल्लू प्रकट हुआ। वह एन तरणताल के मुहाने पर पहुंचता है। सरदार बल्लू वहां खड़ा होकर अपने ‘पवित्र जल’ से पूरे तरणताल को शुद्ध कर देता है। तरणताल में नहा रहे तमाम बंदों में हड़कंप मच जाता है। पानी में भगदड़ मच जाती है। जिसे जहां से बाहर निकलने का मौका मिलता है, तुरंत निकल भागता है।
राजन समेत कुछ बंदे भागते हुए सीधे बल्लू के पास जाते हैं। उसे पकड़ कर वहीं पिटाई अभियान शुरू हो जाता है।
‘साले बल्लू ये क्या कर रहा है। हम पूल में नहा रहे हैं, तू साले मूत रहा है।’
बल्लू को क्या पता कि वे क्यों उसे पीट रहे हैं। वो बड़ा ताज्जुब में है। वो बोलता है,
‘भाई ये क्या कर रहे हो भाई, मैं तो आप लोगों की हेल्प कर रहा हूं भाई, पानी कम था न, मैं तो पानी भर रहा हूं भाई’
बल्लू की सुताई और तेज हो जाती है। बेचारा बल्लू, उसे तो पता ही नहीं कि ये लोग क्यों ऐसे बौरा गए हैं। वह तो अच्छा करने गया था, उसी की फजीहत हो गई।
ऐ लो जी, ऐ वी कोई गल्ल होई:
– हवन करते हाथ जल गए जी।
(एपी की जुबानी)
(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)