विवेक अग्रवाल
हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।
किसी को निश्चित नहीं पता कि सुभाष सिंह ठाकुर ने कितनों को मारा है। लोग कहते हैं कि उसने अब तक कुल ४० लोगों को मारा होगा। कुछ मानते हैं कि वह हत्या का अर्धशतक पूर्ण कर चुका है। इनमें उसके और ‘डी’ कंपनी के विरोधी व बागी भी शामिल हैं। सुभाष सिंह को देखें तो बिल्कुल नहीं लगेगा कि घनी दाढ़ी-मूंछों, चमकीली आंखों और तेजोमय चेहरे वाला ये बंदा इतना खतरनाक सुपारी हत्यारा है।
सुभाष को गिरोह वाले एसटी या सुभाष भाई के नाम से पहचानते हैं। एसटी भूमिगत संसार में एक अचरज, एक जीवित किंवदंती और नए रंगरूटों के लिए एक आदर्श है। ६ फुटा, बलिष्ठ शरीर और चुंबकीय आकर्षण वाली आंखों के स्वामी, १०० किलो से अधिक वजनी एसटी को किसी ने अधिक बोलते नहीं पाया है। विपरीत स्थितियों में भी वह बला की शांति से काम करना और चुप रहना जानता है। उल्हासनगर के कई बाहुबली व दागदार राजनेताओं और महाराष्ट्र समेत देश के कई मंत्रियों से एसटी के गहरे संबंध हैं।
पहले सुभाष ‘डी’ कंपनी की सशक्त हमलावर बांह था। अदंरूनी विवाद के कारण वह अलग हुआ तो ‘डी’ कंपनी को खासा झटका लगा। अब वह किसी से हाथ नहीं मिला रहा, इसलिए सभी उससे चौकन्नें रहते हैं। एसटी के आपराधिक वैâरियर का आरंभ कालिया एंथोनी उर्फ एंथोनी वीर स्वामी जॉन के साथ हुआ था। कालिया खार का नामी गुंडा था, जिससे एसटी ने हत्या की कला सीखी थी।
पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक, १९८० के प्रारंभ में सत्यवान पांचाल हत्याकांड से वह पहली बार रोशनी में आया। इसके बाद उसने उपनगरों में अब्बास, जॉन, अय्यूब की हत्याएं कीं। एसटी को दक्षिण मुंबई में सबसे पहले पठान गिरोह ने पनाह दी। समद खान और आलमजेब से कामकाजी रिश्ता था। जब खतरा बढ़ा तो कुछ समय के लिए अमदाबाद रहा। यहां उसने बख्शी की हत्या की, फिर पॉल को मारा। फिर रमेश भोंगले उर्फ डॉ. रम्या को ठोंका, फिर बिपिन शेरे, अनिल सालवी, भरत पांढरे, दशरथ रहाणे को ‘दूसरी दुनिया’ भेजा।
जेजे अस्पताल में अरुण गवली के साथी शैलेष हलदणकर और विपिन शेरे को २३ सितंबर १९९२ को मारने के चक्कर में कुछ पुलिसकर्मी भी मारे गए। एसटी पकड़ा गया। निचली अदालत ने उसे फांसी की सजा सुना दी। हाई कोर्ट ने मृत्युदंड पर स्वीकृति की मुहर लगा दी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में अपील कर उसने मौत के फरमान से फिलहाल तो बचाव कर लिया।
सुभाष के साथ अली बुदेश भी जवानी का कुछ वक्त काट चुका है। अली ने जब बहरीन में दाऊद विरोधी सिंडिकेट बनाया तो एसटी ने भी साथ दिया था।
कुछ दिनों पहले तक एसटी को अहमदाबाद की अदालतों के चक्कर भी खूब लगाने पड़े। वहां भी उसके खिलाफ हत्या का मामला था। इसमें वह बरी हो चुका है।
वह कुछ समय मुंबई की ऑर्थर रोड जेल में बंद रहा। उसके खिलाफ बनारस में हत्या की कोशिश का मामला भी है। वहां पेशी के लिए एसटी को २००५ में मार्च के तीसरे सप्ताह में पुलिस ले गई थी। वहां से एक मामले में पेशी के लिए पुलिस आगरा ले गई। दिल्ली पुलिस को शेर सिंह राणा का साथ देने के सिलसिले की भनक मिली तो उन्होंने आगरा में सुभाष सिंह को धर दबोचा और पूछताछ के लिए दिल्ली ले गई।
एक अधिकारी के मुताबिक, १९८२ में एसटी को मुठभेड़ में छह गोलियां लगी थीं, लेकिन वह जिंदा बच गया। इस मुठभेड़ की तमाम तफसील तो हासिल नहीं है, लेकिन ये बात पुलिस अधिकारी भी मानते हैं कि सच है।
स्याह सायों के संसार में कहते हैं-
‘जो पुलिस का गोली खाकर बच गया, वो कभी गोली से नहीं मरता।’
(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)