मुख्यपृष्ठअपराधमुंबई का माफियानामा : फोर सीटर है क्या?

मुंबई का माफियानामा : फोर सीटर है क्या?

विवेक अग्रवाल

हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।

उन दिनों तमाम तस्करों में कस्टम्स अधिकारी दयाशंकर की खासी दहशत थी…
पत्नी से लेकर दुश्मन तक सभी उसे डीएस पुकारते थे…
क्या बखिया, क्या मस्तान, क्या दाऊद… सब डीएस से बच कर ही चलते थे…
…डीएस के मातहत उन दिनों एक क्लर्क बत्रा मुंबई के सहार हवाई अड्डे पर तैनात था। वह पुराना खिलाड़ी था। डीएस के कारण लोग उसकी बड़ी चिरौरी करते कि छोटा-मोटा माल पार करवा दे। वह अपने हिसाब से चुपचाप ये हरकतें कर भी गुजरता, कुछ पैसा बना लेता था।
एक बार सहार एयरपोर्ट पर छह कैरियरों का एक दल सिंगापुर जाने के लिए पहुंचा। उनमें से एक बत्रा को जानता था। उसने बत्रा से पूछा –
‘डीएस साब की ड्यूटी कब है?’
‘क्यों… ट्रिप पे जा रहा है?’
‘हां…’
‘कितने की खरीदी करेगा?’
‘१२ सौ – १५ सौ डॉलर का…’
‘अकेला है?’
‘और भी हैं साथ में…’
‘कितने?’
‘पांच और हैं…’
‘उनका कितना है?’
‘सबका मेरे बरोबर है…’
‘एडवांस देगा?’
कैरियर की आंखों में उम्मीदों के सैंकड़ों सितारे झिलमिला उठे। वह उत्साहित होकर बोला –
‘देंगे ना साब…’
‘चल…’
‘किदर?
‘किसी से मिलवाता हूं तुझे…’
बत्रा उसे एक बंदे के पास ले गया। बताया कि ये सब ‘सेटिंग’ करेंगे। वो आदमी बोला –
‘हां बोलो…’
‘साब माल के बारे में…’
‘समझा वो तो… कितने का लाओगे?’
‘सबका १५-१५ सौ डॉलर का होगा…’
‘अरे क्या यार… ये छोटा-मोटा काम करने का नर्इं… बड़ा काम करो… एकदम बिंदास… मैं हूं न इधर… १० का लाओ… २० हजार का लाओ… मैं क्रॉसिंग करवा के दूंगा…’
‘साब अभी तो छोटा ही है…’
‘ठीक है… अभी इंडियन है?’
‘है ना…’
‘तो १० अभी दो…’
‘१०० की पत्ती?’
‘अरे भाई १० हजार… रोकड़ा… काम होने पर १५ और लूंगा…’
‘ये तो ज्यादा है साब…’
‘बिल्कुल ज्यादा नहीं है… मैं तो पूरा एडवांस लेता हूं… वो तो बत्रा आया साथ में इसलिए कम ले रहा हूं… और छह लोग भी तो हैं…’
‘साब वापस आए तो आप किदर मिलेंगे?’
‘मैं कहीं भी मिला – न मिला… कोई फरक नहीं पड़ता… किसी भी अफसर के पास चले जाना॰..’
‘किदर से निकलें… ग्रीन चैनल से?’
‘ग्रीन से निकलो… रेड से निकलो… कोई बात नहीं… अफसर को बस बोल देना… फोर सीटर है क्या… क्या बोलोगे?’
‘फोर सीटर है क्या?’
‘गुड, फिर वो तुम्हें जाने देगा…’
वैâरियर की खुशी का ठिकाना न रहा। उसने जेब से १० हजार का बंडल निकाला और…
बत्रा के सामने ही बंदे को दिया। वह भागता हुआ साथियों के करीब पहुंचा। उन्हें पूरा किस्सा सुनाया। सब खुश हो गए। विमान में सवार हुए। सिंगापुर गए। १५ सौ तो बस बताने की बात थी। सबने खूब खरीददारी की। इतनी कि उठाते न बने। तीन दिन बाद सब साथ ही वापस लौटे। सभी पूरे वट से कस्टम्स में पहुंचे। अफसर ने वीजा-पासपोर्ट देखा और पूछा-
‘कितना है… डिक्लेयर करोगे कुछ?’
‘कुछ नहीं है साब…’
‘तो बैग खोलिए… जांच करेंगे…’
यह सुन कर छोटू सिटपिटाया। वो कस्टम्स अधिकारी की तरफ झुक कर कान में फुसफुसाया–
‘सर फोर सीटर है क्या?’
‘क्या फोर सीटर… बैग खोल…’
अफसर गरजा तो छोटू की हालत पतली हो गई। उसे तो ‘सेटिंग’ पर भरोसा था। सोचा अफसर कोडवर्ड भूल गया है। वो फिर बोला–
‘फोर सीटर है क्या?’
‘क्या फोर सीटर – टू सीटर लगा रखा है… तू तो सामान खोल… तेरी सीट देखता हूं मैं…’
अब छोटू का चेहरा देखने लायक था। उसने तुरंत अफसर को वैâरियर जीवन के अनुभव का स्वाद चखाया। मोलभाव कर ४,००० रुपए ड्यूटी चुका कर बाहर आया। अन्य साथी भी बाहर आए तो हर एक को १० से १५ हजार की चपत लग चुकी थी। सब गुस्से में बत्रा के पास पहुंचे।
‘क्यों बत्रा साब… किधर है तुम्हारा फोर सीटर… साला चारों तरफ से ले डाली हमारी…’
बत्रा रुआंसा सा बोला–
‘अरे यार चीटिंग हो गई हमारे साथ… वो तो फ्राॅड था साला… तीन–चार दिनों में दो पेटी माल बना कर गुल हो गया… अब सब मेरे ऊपर बिल फाड़ रहे हैं…’
वहां से सब बड़बड़ाते और कोसते रुखसत हुए। कसम खाई कि दुबारा सेटिंग के चक्कर में नहीं पड़ेंगे। और वो साला फोर सीटर… कहीं मिल गया न…
पूरी कहानी सुना कर छोटू ने कहा:
– वो साला तो एकदम मैटर कंपनी निकला सर… क्या सॉलिड भेजा था उसका खोपड़ी में।
(केवी की जुबानी)
समाप्त

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